National News : मनमोहन सिंह नया इतिहास बना सकते थे, दस जनपथ के दखल से बिगड़ी सरकार की छवि

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Manmohan Singh could have created a new history
दिवंगत प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ।

(National News) अजीत मेंदोला।नई दिल्ली। पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह बहुत याद आएंगे।गैर राजनीतिक हो कर भी उन्होंने जो राजनीति की उसे भुला पाना आसान नहीं होगा।आर्थिक सुधारीकरण के जनक तो थे ही अलग कार्यशैली से भी उन्होंने प्रभाव छोड़ा। यूपीए शासन के पहले कार्यकाल में करोड़ों का किसानों का कर्जा माफ और मनरेगा जैसी शानदार योजनाओं ने सरकार की अलग छवि बनाई थी।लेकिन दूसरे कार्यकाल में दस जनपथ के करीबियों ने अगर उनके कामकाज में दखल नहीं दिया होता तो शायद तीसरी बार सरकार बना नया इतिहास लिख सकते थे।और कांग्रेस को शायद बुरे दिन नहीं देखने पड़ते।

अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी का भी जन्म भी शायद नहीं होता।राहुल गांधी को इन्हीं नेताओं ने आगे किया और राहुल से अध्यादेश फाड़ने जैसी ऐसी घटना हुई जिसका खामियाजा कांग्रेस आज तक भुगत रही है। दस जनपथ के इन करीबी नेताओं ने दखल दे ऐसी राजनीति की कि भ्रष्टाचार का सारा ठीकरा मनमोहन सिंह की सरकार पर फूटा।किया किसी और ने भुगता सरकार के मुखिया ने। दस जनपथ के करीबियों के ज्यादा दखल के चलते अन्ना हजारे का आंदोलन रहा हो या बाबा रामदेव का आंदोलन गलत फैसलों ने कांग्रेस और मनमोहन सिंह सरकार की छवि को बिगाड़ा।

2010 के कामनवेल्थ खेलों के आयोजन में हुए भ्रष्टाचार को मुद्दा बना विपक्ष ने मनमोहन सिंह की सरकार पर जो हमला बोला वह बढ़ता ही चला गया

इसी बीच निर्भया मामले को भी रणनीतिकार ठीक से हैंडल नहीं कर पाए।आंदोलनकारियों से जब बातचीत की जानी चाहिए थी लाठी चार्ज करवा दिया।इससे हालात बिगड़ गए। 2010 के कामनवेल्थ खेलों के आयोजन में हुए भ्रष्टाचार को मुद्दा बना विपक्ष ने मनमोहन सिंह की सरकार पर जो हमला बोला वह बढ़ता ही चला गया।भ्रष्टाचार के खिलाफ लोकपाल की गठन की मांग को लेकर अन्ना हजारे और उनके साथ कुछ लोग जब आंदोलन पर बैठे तो कांग्रेस के रणनीतिकारों ने उसे हल्के में ले लिया।2011 के शुरू में आंदोलन की शुरुआत हुई थी।इस आंदोलन के पीछे कई तरह की चर्चाएं होती हैं।कहा जाता है कि अन्ना हजारे को कांग्रेस ने धरने पर बिठाया था।क्योंकि बाबा रामदेव भी भ्रष्टाचार के खिलाफ लंबे आंदोलन की तैयारी किए हुए थे।

रणनीति थी कि रामदेव के आंदोलन को कमजोर करने की लेकिन मामला उल्टा पड़ गया। अति आत्मविश्वास और भूल कांग्रेस और सरकार को तब भारी पड़ी जब अन्ना के आंदोलन में अरविंद केजरीवाल अपने दल बल के साथ कूद पड़े।कांग्रेस के रणनीतिकारों को लगता था आंदोलन को जब चाहे उठा लेंगे।लेकिन तब तक पर्दे के पीछे से संघ ने आंदोलन की मदद करनी शुरू कर दी।बात बिगड़ता देख तब तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने केजरीवाल और कुछ आंदोलनकारियों से चर्चा कर समझौते का रास्ता निकाल लिया था।कमेटी बनाने को लेकर सहमति भी बन चुकी थी।लेकिन दस जनपथ के करीबी मंत्रियों और रणनीतिकारों ने पूरा खेल बिगाड़ दिया।

अजीत मेंदोला।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह समझ चुके थे कि इन लोगों ने बात बिगाड़ दी

मनमोहन सिंह के फैसले को साइड कर केजरीवाल और आंदोलनकारियों को एक तरह से आंखे और दिखा दी।तब दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं ने केजरीवाल को राजनीति करने की चुनौती दे दी। केजरीवाल ने चुनौती स्वीकार कर कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह समझ चुके थे कि इन लोगों ने बात बिगाड़ दी।आंदोलन ने बड़ा रूप धारण कर लिया।

बात यहीं खत्म नहीं हुई।इसके बाद बाबा रामदेव घोषणा के मुताबिक रामलीला मैदान में लोकपाल,कालाधन वापस लाने जैसी मांगों को लेकर आंदोलन में बैठ गए।मनमोहन सिंह ने रामदेव के मामले को देखने की जिम्मेदारी वरिष्ठ मंत्री प्रणव मुखर्जी को दी।लेकिन यहां पर भी पी चिदंबरम,कपिल सिब्बल जैसे दस जनपथ के करीबी मंत्रियों ने मुखर्जी को साइड कर अपने तरीके से बाबा रामदेव के आंदोलन को पुलिस से जबरन खत्म करवाने की कोशिश की।रामदेव को भेष बदल कर भागना पड़ा।पूरे देश में गुस्से की लहर फैल गई।

एक साथ कई मामले उठ खड़े हुए।कांग्रेस की छवि इतनी खराब हुई कि ईमानदार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की छवि पर भी असर पड़ा।अगर दस जनपथ के करीबी मंत्री मनमोहन सिंह और प्रणव मुखर्जी को अपने तरीके से मामलों को हैंडल करने देते तो कांग्रेस आज अस्तित्व की लड़ाई नहीं लड़नी पड़ती।मनमोहन सिंह अब इस दुनिया में नहीं रहे,लेकिन वह अपने अच्छे कामों के लिए हमेशा याद किए जाते रहेंगे।