National News : यूपी की तरह उत्तराखंड बीजेपी में भी रार

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UP News : यूपी में विपक्ष की अस्थिरता की कोशिशों को जल्द लगेगा विराम
UP News : यूपी में विपक्ष की अस्थिरता की कोशिशों को जल्द लगेगा विराम
  • सीएम धामी आए अपनों के निशाने पर

National News | अजीत मेंदोला | नई दिल्ली। उप चुनाव में हुई हार के बाद उत्तराखंड बीजेपी के अंदर भी दबा आक्रोश बाहर निकलने लगा है। शुरुआत पूर्व सांसद और पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने कर दी है। हालात कुछ उत्तर प्रदेश जैसे ही बनते जा रहे हैं। अंतर इतना भर है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ नाराजगी सीमित है जबकि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के खिलाफ पार्टी के भीतर ही भीतर हालात चिंताजनक हो चुके हैं। धामी जिन्हें पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी की सिफारिश पर मौका दिया गया था वह अब विवादों में घिरते जा रहे हैं।लोकसभा चुनाव में बीजेपी भले ही पांचों सीट जीत गई,लेकिन जीत का अंतर काफी घट गया।

इसके बाद मंगलोर और बद्रीनाथ के उप चुनाव पार्टी हार गई।हार की बड़ी वजह मुख्यमंत्री धामी और प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट दोनों के बीच तालमेल का अभाव और आपसी खींचतान बनी।सूत्र बताते हैं आलाकमान जल्द ही राज्य के नेताओं को दिल्ली तलब कर सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी रिपोर्ट मांग सकते हैं। मुख्यमंत्री धामी ने अपने बयानों और फैसलों से भी अपनों को काफी नाराज कर लिया है।सबसे अहम बात यह है कि वह क्षेत्रवाद में भी फंस गए हैं।

दरअसल उत्तराखंड में अभी हाल में मंगलोर और बद्रीनाथ सीट पर उप चुनाव हुए। एक तरह से धामी की यह पहली बड़ी परीक्षा थी।मंगलोर मुस्लिम बाहुल्य सीट थी इसलिए बीजेपी हार गई। लेकिन बद्रीनाथ की हार ने बड़ा संदेश दे दिया।मुख्यमंत्री धामी और प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने लोकसभा चुनाव से पूर्व बद्रीनाथ सीट पर दल बदल करवा कांग्रेस को झटका दिया। पार्टी लोकसभा का चुनाव जीत गई लेकिन प्रतिष्ठा वाला विधानसभा का चुनाव हार गई। कहते हैं धामी और भट्ट मान बैठे थे कि जीत तय है, लेकिन वहीं कांग्रेस ने पूरी ताकत झोंक दी। बद्रीनाथ की जनता ने एक तरह से तोड़फोड़ की राजनीति को टुकरा दिया। उत्तराखंड में तोड़ फोड़ और दल बदल का लंबा इतिहास रहा है।

अभी बीजेपी की सरकार में आधे मंत्री कांग्रेसी ही हैं। छोटा राज्य होने के चलते वहां पर भ्रष्टाचार की राजनीति का हमेशा बोलबाला रहा है। शराब और खनन माफिया हर सरकार में दखल रखते हैं। लेकिन धामी के सीएम बनने के बाद प्रदेश में अंकिता भंडारी हत्याकांड ने बीजेपी सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए। अंकिता हत्याकांड लोकसभा चुनाव में बड़ा मुद्दा भी बना। प्रधानमंत्री मोदी की छवि के चलते पार्टी लोकसभा की सीटें निकाल पाई।

धामी राज्य के पहले ऐसे मुख्यमंत्री बने जो अपना खुद का विधानसभा का चुनाव खटीमा से हार गए थे। लेकिन आलाकमान ने साफ सुथरी छवि मान उन्हें फिर सीएम बना उप चुनाव लड़वाया। एक तरह से दिल्ली ने मैसेज दे दिया कि धामी ही भविष्य के नेता हैं। सभी वरिष्ठ नेताओं को साइड कर दिया गया। लोकसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री रहे रमेश पोखरियाल निशंक और तीरथ सिंह रावत का टिकट काट दिया गया। बाकी नेता पहले ही साइड हो चुके थे। धामी के मुख्यमंत्री बनने के बाद से गढ़वाल की पूरी तरह से उपेक्षा कर दी गई।

धामी खुद कुमायूं के और केंद्र में मंत्री अजय टम्टा भी कुमायूं से। विपक्ष आरोप भी लगाता है कि गढ़वाल में विकास के मामले में भेदभाव होता है। जबकि 70 विधानसभा वाले उत्तराखंड में 42 सीट गढ़वाल से आती हैं। लोकसभा की तीन सीट गढ़वाल से हैं और कुमायूं से दो। धामी पर दिल्ली के आशीर्वाद के चलते डर से कभी कोई नेता खुल कर नहीं बोल पाया। लेकिन लोकसभा चुनाव के परिणामों और उप चुनाव की हार के बाद बदले हालातों में नेताओं की नाराजगी बाहर निकलने लगी है।

पूर्व सीएम तीरथ सिंह रावत ने बीजेपी की कार्यसमिति की बैठक में बीजेपी नेतृत्व और धामी को इशारों ही इशारों में खूब खरी खोटी सुनाई। उन्होंने एक तरह से संदेश दिया कि थोपने से काम नहीं चलेगा और कब कुर्सी चली जाए पता नहीं चलता। रावत धामी के मुकाबले काफी वरिष्ठ हैं। रावत ने जितने सवाल उठाए उतनी ही नेताओं ने ताली बजाई। जानकार मानते हैं कि उत्तराखंड के मामले में आलाकमान को जल्द दखल देना चाहिए। सीएम धामी दिल्ली में केदारनाथ मंदिर के शिलान्यास और वहां दिए भाषणों के बाद से विवादों में घिरे हुए हैं।

केदारनाथ मंदिर का फैसला तो वापस ले लिया लेकिन शेर की खाल में भेड़िए और चार धाम यात्रा पर दिए बयानों ने उनके विरोधियों को मौका दे दिया। इसके साथ प्रदेश के विकास और सड़कों के मामले में भी राज्य में नाराजगी बढ़ी है। खनन माफिया के चलते स्थिति चिन्ता जनक हुई है। उत्तराखंड के गठन के बाद से नारायण दत्त तिवारी ऐसे अकेले मुख्यमंत्री रहे जिन्होंने पूरे पांच साल अपना कार्यकाल पूरा किया।

बाकी कोई मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया। बीजेपी में तो स्थिति हमेशा आपस में टकराव वाली रही। कुमायूं और गढ़वाल वाला भेदभाव हमेशा बना रहा। धामी को पिछले कार्यकाल में उस समय कमान सौंपी गई जब चुनाव के लिए कुछ ही महीने बचे हुए थे। धामी से पूर्व त्रिवेंद्र सिंह रावत और तीरथ सिंह रावत राज्य के मुख्यमंत्री थे। 2022 के विधानसभा चुनाव के समय धामी सीएम थे, लेकिन चुनाव हार गए। प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता के चलते बीजेपी लगातार दो चुनाव जरूर जीती, लेकिन अब हालात चिंताजनक होते जा रहे हैं।

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