शिवरात्रि पर्व पर हर हर महादेव से गूंजे शिवालय राम संत सेवा समिति चंदू पार्क जगत पुरी में भक्तो का जलाभिषेक करने के लिए भारी तादाद में तांता लगा रहा महामंडलेश्वर श्री राम गोविंद दास महत्यागी जी महाराज ने भक्तो को जलाभिषेक व शिव पर चढ़ने वाली चीजों का महत्व बताया की हर वस्तु का अपना अलग महत्व है यहां तक की जलाभिषेक बेल पत्र व मांग धतुरे का शिव पुजन वह मनुष्य जीवन पर किया प्रभाव डालता है और क्यों जरूरी है शिवरात्रि पर भक्तो के लिए -शिवरात्रि पर बेलपत्र अर्पित करना।
शिवरात्रि पर बेलपत्र अर्पित करने का महत्व
महामंडलेश्वर राम गोविंद दास महात्यागी ने बताया कि बेलपत्र में तीन पत्तियां होती हैं और भगवान शिव त्रिनेत्र धारी है। ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक भगवान शिव को सावन के महीने में बेलपत्र चढ़ाने से वे अति प्रसन्न होते हैं और भक्तों की सारी मनोकामना पूर्ण करते है। उन्हें मनवांछित फल भी देते हैं। वैसे तो भगवान शिव भाव के भूखे हैं, परंतु बेलपत्र, जल, दूध और पंचामृत के द्वारा उनका पूजन कर उन्हें प्रसन्न किया जा सकता है। बेलपत्र का केवल धार्मिक महत्व ही नहीं है बल्कि इसका वनस्पति महत्व भी उल्लेखनीय है। बेलपत्र के चूर्ण को ग्रहण करने से कई सारे कष्ट भी दूर होते हैं।
लपत्र चढ़ाने के पीछे कई दंत कथाएं
भगवान शिव को बेलपत्र चढ़ाने के पीछे कई दंत कथाएं और रोचक कहानियां हैं। हालांकि बेलपत्र का वनस्पति महत्व भी कम नहीं है। त्रिदलम त्रिगुणाकारम त्रिनेत्रम च तृया युधम। त्रि जन्म पाप संवहारम बिल्वपत्रम शिवार्पणम।। इस श्लोक से स्पष्ट है कि भगवान शिव को बेलपत्र चढ़ाने से तीन जन्मों के पाप से मुक्ति मिलती है।
शिवरात्रि पर क्या है भांग का विशेष महत्व
शिव महापुराण के मुताबिक, अमृत पाने के लिए देवताओं और असुरों ने समुद्र का मंथन किया था। इसमें कई सारी चीजें निकली थीं जो देवताओं और असुरों के बीच में बांटी गईं। लेकिन जब समुद्र मंथन के दौरान जब हलाहल यानी विष निकला तो पूरी सृष्टि को बचाने के लिए देवताओं के कहने पर भगवान शिव ने उसे पी लिया, जिससे उनका कंठ नीला पड़ गया था और ये विष शिवजी के मस्तिष्क तक चढ़ने लगा। फिर वो व्याकुल होने लगे और अचेत हो गए।
भोलेनाथ को अर्पित किया
तब मां आदिशक्ति प्रकट हुईं और भोलेनाथ को बचाने के लिए भांग, धतूरा, बेल आदि जड़ी-बूटियों से बनी औषधियों से शिव को ठीक की। शिव के मस्तिष्त पर भांग, धतूरा और बेल पत्र रखा गया और जलाभिषेक किया गया। इससे धीरे-धीरे शिव के मस्तिष्क का ताप कम हो गया और उनकी व्याकुलता दूर हो गई। तब से भोलेनाथ को पूजा में भांग का भोग अर्पित किया जाने लगा।