- जाट, दलित वोटरों को साधना आसान नहीं
National News | अजीत मेंदोला | नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव में जाति की राजनीति को मुद्दा बनाने वाली कांग्रेस की अब असल परीक्षा हरियाणा चुनाव में होगी। क्योंकि हरियाणा में सभी पार्टियां सोशल इंजीनियरिंग पर फोकस कर रही है।बीजेपी ने लोकसभा चुनाव के परिणामों से सबक ले सोशल इंजीनियरिंग पर पूरा फोकस किया है। बीजेपी ने जाट, ब्रह्मण, गुजर और ओबीसी नेताओं को अहम जिम्मेदारी दे तीसरी बार सरकार की वापसी के पुख्ता इंतजाम कर लिए हैं।
वहीं कांग्रेस अभी जाट और दलितों वाले फार्मूले पर चलती दिख रही है। राहुल गांधी खुद पिछड़ों की राजनीति कर रहे हैं।जिस तरह हरियाणा में हालात बनते दिख रहे हैं उससे लगता है असल झगड़ा जाट और दलित वोटरों को साधने का ही होगा। इंडियन नेशनल लोकदल ने आज मायावती की पार्टी बहुजन समाज पार्टी के साथ फिर से गठबंधन कर एक तरह से जाट , दलित वोटरों को साधने की कोशिश की है।
यूं कहा जा सकता है कि इनेलो और बसपा का गठबंधन सीधे तौर पर कांग्रेस के वोट बैंक को साधने की कोशिश करेगा।इनके अलावा जेजेपी की नजर भी जाट वोटरों पर रहेगी। आम आदमी पार्टी भी चुनाव लड़ने की तैयारी में है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और पूरे गांधी परिवार ने भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए आप नेता अरविंद केजरीवाल को जेल भेजे जाने की खिलाफत कर उन्हें साथ में रखा। हरियाणा में गठबंधन कर कुरुक्षेत्र की सीट आप को दी थी। लेकिन परिणाम आते ही कांग्रेस का केजरीवाल से मोह भंग हो गया और उनसे रिश्ता खत्म कर दिया। ऐसे में अब केजरीवाल की पार्टी भी सभी 90 सीटों पर लड़ेगी। हरियाणा में बहुकोणीय मुकाबला तय है।
बहुकोणीय मुकाबला होने पर भाजपा के पक्ष में अच्छी बात यह है कि उसका अपना वोट बैंक फिक्स रहेगा जबकि विपक्ष का बंटेगा। इसके बाद भी बीजेपी ने इस बार सोशल इंजीनियरिंग में कोई कमी नहीं रखी है। राजस्थान और उत्तर प्रदेश में बीजेपी की हार की एक वजह सोशल इंजीनियरिंग पर ध्यान न देना एक वजह मानी जा रही है। राजस्थान में जाट,गुर्जर और मीणा का वोट बीजेपी को नहीं मिला। इसी तरह यूपी में दलित और ओबीसी ने कुछ सीटों पर आरक्षण मुद्दे पर बीजेपी को वोट नहीं किया।
इसलिए बीजेपी ने हरियाणा में इस बार सोशल इंजीनियरिंग का ध्यान रख जाट को प्रदेश प्रभारी, मुख्यमंत्री ओबीसी का,प्रदेश अध्यक्ष ब्राह्मण और सह प्रभारी गुर्जर बनाया है। पंजाबी चेहरे के रूप में पूर्व सीएम और केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर हैं ही | इस स्थिति में बीजेपी मजबूत दिखाई देती है। हालांकि अब आरक्षण का मुद्दा कारगर होगा लगता नही है। असल चुनौती कांग्रेस के सामने यही है। लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी ने आम चुनाव में पिछड़ों की राजनीति की थी।
संविधान खतरे में है को मुद्दा इसीलिए बनाया था कि पिछड़ों का वोट मिले। हरियाणा जैसे राज्य में पिछड़ों और अल्पसंख्यकों की राजनीति का कार्ड कांग्रेस के लिए के लिए कितना कारगर रहेगा देखना होगा। वैसे भी कांग्रेस के सामने गैर जाटों को राजी करना भी मुश्किल टास्क होता है। क्योंकि बीजेपी के न चाहते हुए भी चुनाव जाट बनाम अन्य हो ही जाता है।चौटाला परिवार की पार्टियों की भी नजर जाट वोटरों पर ही रहती है। इसके साथ दलित वोटर को साधते हैं। ऐसे में कांग्रेस की जाति की राजनीति की असल परीक्षा हरियाणा में ही होगी।
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