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Mythology: Why Ganapati is called Chintamani: पौराणिक कथा: गणपति को चिंतामणि क्यों कहा जाता है

पौराणिक कथा
गणपति को चिंतामणि क्यों कहा जाता है
गणपति को ज्ञान का देवता कहा जाता है। ये हमें अच्छी बुद्धि का वरदान देते हैं। गणपति को ‘विघ्नहर्ता’ भी कहा जाता है जिसका वस्तुत: अर्थ है ‘बाधाओं को दूर करने वाले’। आज हम यह जानेंगे कि गणपति को ‘चिंतामणि’ क्यों कहा जाता है। एक बार गण नाम का क्रूर राजकुमार था। वह गरीबों को परेशान करता और साधुओं की तपस्या में विघ्न डालता था। एक बार वह अपने मित्रों के साथ शिकार पर गया। उस जंगल में कपिल ऋषि का आश्रम था। ऋषि ने गण का स्वागत किया तथा उसे और उसके मित्रों को भोजन पर आमंत्रित किया। कपिल ऋषि के आश्रम को देखकर गण हंसने लगा और बोला ‘ आपके जैसा गरीब साधू इतने सारे लोगों के भोजन की व्यवस्था कैसे करेगा?’ इस पर ऋषि कपिल ने अपने गले के हार से ‘चिंतामणि (इच्छा पूर्ण करने वाला रत्न)’ निकाला और उसे लकड़ी के एक छोटे मेज पर रख दिया। गणपति को चिंतामणि क्यों कहा जाता है उन्होंने उस मणि को नमस्कार किया तथा प्रार्थना की तथा देखते की देखते वहां एक रसोईघर तैयार हो गया। प्रत्येक व्यक्ति को बैठने के लिए चंदन का आसन बन गया और प्रत्येक व्यक्ति को चांदी की थाली में कई स्वादिष्ट पकवान परोसे गए। गण और उसके मित्रों ने इस स्वादिष्ट भोजन का आनंद लिया। खाने के बाद गण ने कपिल ऋषि से जादुई रत्न मांगा परंतु ऋषि ने मना कर दिया क्योंकि वे गण के कू्रर स्वभाव से परिचित थे। अत: गण ने ऋषि के हाथ से बलपूर्वक वह रत्न हथिया लिया। उसके बाद ऋषि कपिल ने भगवान गणपति की आराधना की। गणपति ऋषि की भक्ति से प्रसन्न हुए तथा उन्होंने गण को शिक्षा देने का निर्णय लिया। गण ने विचार किया कि रत्न पुन: प्राप्त करने के लिए कपिल ऋषि उस पर हमला करेंगे अत: उसने ही कपिल ऋषि पर आक्रमण कर दिया। गणपति की कृपा से जंगल में एक बड़ी सेना तैयार हो गई और इस सेना ने गण के लगभग सभी सैनिकों को खत्म कर दिया। अब गणपति स्वयं युद्ध में उतरे। गण ने गणपति पर बाणों की बौछार से आक्रमण किया; परंतु गणपति ने हवा में ही बाणों को नष्ट कर दिया। उसके बाद गणपति ने अपना परशु (गणपति का अस्त्र) गण पर फेंका और उसे मार डाला। गण के पिता राजा अभिजीत युद्धक्षेत्र में आए और उन्होंने गणपति को नमस्कार किया। उन्होंने कपिल ऋषि को ‘चिंतामणि’ वापस कर दिया तथा गणपति से अपने पुत्र के लिए माफी मांगी तथा उसकी मृत्यु के बाद उसे मुक्ति देने की प्रार्थना की। दयालु गणपति भगवान ने उनकी प्रार्थना सुन ली। इस प्रकार गणपति ने चिंतामणि पुन: प्राप्त करने के लिए कपिल ऋषि की सहायता की और तब से उन्हें चिंतामणि भी कहा जाने लगा।

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