Mythological history of yoga: योग का पौराणिक इतिहास

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युज्यते अनेन इति योग:! – जीवात्मा का परमात्मा से मिलन ही योग है जीवात्मा का परमात्मा से मिलन ही योग है और योग के इस संयोग में ब्रह्मांड की ऊर्जा को जीवात्मा की परमात्मा में समायोजित करने की प्रक्रिया ही योग है । अर्थात जब हम योग करते हैं तो हमारी आत्मा परमात्मा से जुड़ जाती है और चूंकि ब्रह्मांड की ऊर्जा का नियंत्रण परमात्मा के पास है तो उस ऊर्जा में से परमात्मा अपने से जुड़े हुए जीवात्मा को ऊर्जा प्रवाहित कर देता है इस प्रवाह की प्रक्रिया से जीवात्मा का शरीर में उर्जावान हो जाता है और तब ऐसा महसूस होता है कि हमें योग से ऊर्जा प्राप्त हुई है | हम समझते हैं कि योग एक दैवी विद्या है जिससे ब्रह्मांड की एनर्जी और सुपर नेचुरल पावर का विकेंद्रीकरण करने की प्रक्रिया है। योग शरीर, मस्तिष्क और आत्मा के शुद्धिकरण की विधा है और आत्मा से परमात्मा के मिलन का टूलकिट है। यूं तो हम सभी जानते हैं कि योग भारत की देन है और हमारे सनातन धर्म का हिस्सा है |

योग का आविर्भाव भगवान शंकर ने किया। भगवान शिव को आदि योगी माना जाता है और उन्हें योग का फाउंडर भी माना जाता है वह समस्त योगियों और योग विद्याओं के प्रथम शिक्षक थे | और योग की शिक्षा उन्होंने सर्वप्रथम सप्तऋषियों को दी उन्होंने ही शांतिपूर्ण साधना और अध्यात्म के बारे में सब को बताया। भगवान शिव कैलाश पर्वत पर एकांत में योग साधना किया करते थे और योग के द्वारा उन्होंने अपनी इंद्रियों को नियंत्रण में कर लिया था। शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि भगवान शिव ने योग और साधना का सबसे पहला ज्ञान अपनी धर्म पत्नी पार्वती को विवाह के पश्चात दिया | भगवान शिव ने कहा भी तो है अर्थात मिलन ही योग है जीवात्मा का यूनिवर्स से मिलन अर्थात जीवात्मा का परमात्मा से मिलन ही योग है | जब भगवान शिव ने योगा के रहस्य अपनी पत्नी को दिए वह आदि गुरु हो गए उन्होंने देवी पार्वती को योग के 84 आसन बताएं और उनका वैदिक परंपरा से क्या संबंध है यह भी समझाया |

यूं तो भगवान शिव ने योग के विशिष्ट रहस्यों को किसी को नहीं बताया।  लेकिन दया और करुणा की मूर्ति मां पार्वती से उनसे जनता का शारीरिक और मानसिक दुख देखा नहीं गया और जनता की भलाई के लिए और इस योग के चमत्कारिक रहस्य और साधना को बताने के लिए भगवान शिव से प्रार्थना की और कहा कि जनता के भले के लिए रहस्यमई योग की ताकतों को इस नश्वर संसार को बताएं | मां पार्वती के विशेष आग्रह पर भगवान शिव ने योग की शिक्षा केदारनाथ में सर्वप्रथम ज्ञान सप्तर्षियों को कांति सरोवर के किनारे दिया और वह रात जिस रात में उन्होंने यह शिक्षा दी वह भगवान शिव की जिसने वैवाहिक वर्षगांठ की महाशिवरात्रि के नाम से जाना जाता है तो हम इस तरीके से हम कह सकते हैं कि असली योग दिवस वास्तव में महाशिवरात्रि ही है |

सप्तर्षियों को ज्ञान देने के पश्चात भगवान शिव ने योग अपने अनन्य भक्त भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम जी को दिया |भगवान शिव ने परशुराम को योग, अस्त्र शस्त्र,  युद्ध विद्या और मल्ल विद्या आदि की शिक्षा दी तत्पश्चात भगवान शिव ने उन्हें योग, शरीर विज्ञान और आत्मरक्षा संयोजन की एक ऐसी विद्या दी जिसका नाम बाद में कलारीपट्टू प्रचलित हुआ | यह कलारी पट्टू कुछ और नहीं एक प्रकार का विशेष योग ही है जिसको आज की मॉडर्न भाषा में कुंग फू कराटे और जूडो कहते हैं |

योगा को जन-जन तक पहुंचाने का श्रेय भगवान परशुराम को ही जाता है ।  ज्ञातव्य है कि भगवान परशुराम ने अपनी सारी विद्याएं और योग एवं विभिन्न प्रकार की शिक्षाएं अपने शिष्यों को दीं उनके प्रमुख शिष्य भीष्म और कर्ण थे और यह सभी शिक्षाएं उन्होंने तत्कालीन राजधानी हस्तिनापुर में दी जो कि आज दिल्ली और दिल्ली के निकट के स्थान ही तो हैं इस तरीके से हम यह समझ सकते हैं कि संभवतः आधिकारिक रूप से योग की शिक्षाओं का सबसे बड़ा केंद्र भारतवर्ष में अगर कोई है तो दिल्ली और दिल्ली के नजदीक के ही माने जाएंगे | इसका क्षेत्र आधुनिक दिल्ली (कुरुक्षेत्र) के ईर्द-गिर्द था। इसकी राजधानी संभवतः हस्तिनापुर और  इन्द्रप्रस्थ और  इसके  आस पास के क्षेत्र में थी | जो आज के दिल्ली और  NCR को माना जा  सकता  है |

जनश्रुति है कि सप्त ऋषि ने यह योग का ज्ञान विषयों और ऋषि हिस्सों में बांटा और वही भगवान परशुराम ने यह ज्ञान जन सामान्य  को दिया कहा जाता है कि भारत के अधिकांश ग्राम उन्हीं के द्वारा बसाये गये। जिसमे कोंकण, गोवा एवं केरल का समावेश है। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान परशुराम ने तीर चला कर गुजरात से लेकर केरला तक समुद्र को पीछे धकेलते हुए नई भूमि का निर्माण कियाऔर इसी कारण कोंकण, गोवा और केरला मे भगवान परशुराम वंदनीय है।

महर्षि पतंजलि ने अनेकों योगासनों का अपनी पुस्तक में संकलन किया है । योग मानसिक शारीरिक और आध्यात्मिक शक्ति को बढ़ाता है और इन तीनों का समन्वय ही मनुष्य शरीर को स्वस्थ तन और मन प्रदान करता है और दीर्घायु देता है योगासन शरीर के प्रत्येक अंग पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं। इसके अतिरिक्त योग मानसिक स्वास्थ्य ,शांति और याददाश्त बढ़ाता है। योग मनुष्य को संपूर्ण स्वास्थ्य प्रदान करता है

हमारे देश का यह दुर्भाग्य है कि लगभग 800 सालों की विदेशी शासन ने इस सनातनी ज्ञान को हमारी आंखों से विस्मृत कर दिया | जिसकी वजह से हमारा अपना ज्ञान ही हमसे दूर और पराया हो गया आज आवश्यकता है | हमें अपने आप को योग बल से ऊर्जावान बनाने की जिससे ना केवल हम स्वस्थ रह सकें बल्कि सभी मिलकर एक स्वस्थ समाज का निर्माण कर सकें अब वह समय हैं  कि हमारी हज़ारों वर्षों से संकलित इस योग की धरोहर को हम और दुनिया समझ रही है इसके महत्व को समझ रहे हैं और इसका उपयोग भी कर रहे हैं। वस्तुतः योग ही विश्व को निरोग रहने का मूल मंत्र है।

लेखक

CA मनीष कुमार गुप्ता

पौराणिक इतिहासकार