हिंदू समाज में मुंडन संस्कार और किसी की मुत्यु पर बाल मुंडवाने की प्रथा वैदिक काल से चली आ रही है।जन्म के बाद बच्चे का मुंडन किया जाता है। इसके पीछे मुख्य कारण यह है कि जब बच्चा मां के गर्भ में होता है तो उसके सिर के बालों में बहुत से कीटाणु, बैक्टीरिया और जीवाणु लगे होते हैं। यह हानिकारक तत्व साधारण तरह से धोने से नहीं निकल सकते इसलिए एक बार बच्चे का मुंडन जरूरी होता है। अत: जन्म के 1 साल के भीतर बच्चे का मुंडन कराया जाता है। कुछ ऐसा ही कारण मृत्यु के समय मुंडन का भी होता है। जब पार्थिव देह को जलाया जाता है तो उसमें से भी कुछ ऐसे ही जीवाणु हमारे शरीर पर चिपक जाते हैं। सिर में चिपके इन जीवाणुओं को पूरी तरह निकालने के लिए ही मुंडन कराया जाता है।
हिन्दू धर्म में जब मुंडन संस्कार होता है या उपनयन संस्कार के समय भी मुंडन करवाने के बाद चोटी या चुंडी रखी जाती है। प्रत्येक हिन्दू को यह करना होता है। मुंडन संस्कार बच्चे की उम्र के पहले वर्ष के अंत में या तीसरे, पांचवें या सातवें वर्ष के पूर्ण होने पर उसके बाल उतारे जाते हैं और यज्ञ किया जाता है जिसे मुंडन संस्कार या चूड़ाकर्म संस्कार कहा जाता है। माना जाता है कि मुंडन के बाद बच्चें का सर पूरी तरह से खाली हो जाता है। जिससे सर और शरीर पर विटामिन डी यानी धूप की रोशनी सीधी पड़ती है, जिससे कोशिकाएं जागृत होकर नसों में रक्त परिसंचरण अच्छे से कर पाती है जिससे नए बाल बहुत अच्छे होते है।
हम सभी जानते हैं कि हिन्दू धर्म में चोटी रखने का महत्व है। वैदिककाल में महिलाएं और पुरुष सभी शिखा और चोटी धारण करते थे। असल में जिस स्थान पर शिखा यानी कि चोटी रखने की परंपरा है, वहां पर सिर के बीचो-बच सुषुम्ना नाड़ी का स्थान होता है। शरीर विज्ञान यह सिद्ध कर चुका है कि सुषुम्ना नाड़ी इंसान के हर तरह के विकास में बड़ी ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। सिर में सहस्रार के स्थान पर चोटी रखी जाती है अर्थात सिर के सभी बालों को काटकर बीचो-बीच के स्थान के बाल को छोड़ दिया जाता है। इस स्थान के ठीक 2 से 3 इंच नीचे आत्मा का स्थान है।