Aaj Samaj, (आज समाज),Mumbai High Cour, नई दिल्ली:
दिल्ली आबकारी नीति: उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के खिलाफ ईडी के आरोप पत्र किया पर अदालत 10 मई को करेगा सुनवाई।
दिल्ली आबकारी नीति से जुड़े कथित घोटाला मामले में आम आदमी पार्टी (आप) के नेता और पूर्व उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के खिलाफ ईडी के आरोप पत्र पर अदालत 10 मई को सुनवाई करेगा।10 मई को अदालत ईडी के आरोप पत्र पर संज्ञान भी ले सकता है। मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में प्रवर्तन निदेशालय मनीष सिसोदिया को आरोपी बनाया है। आबकारी नीति मामले में मनीष सिसोदिया 29 वें आरोपी हैं। ईडी ने मनीष सिसोदिया के खिलाफ दिल्ली के राउज एवेन्यु कोर्ट में ढाई हजार पेज से ज्यादा का आरोपपत्र दाखिल किया है।
ईडी ने दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री सिसोदिया को 9 मार्च को तिहाड़ जेल से गिरफ्तार किया था, जहां उन्हें केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा जांच की जा रही एक अलग मामले के सिलसिले में रखा गया था। वही सीबीआई ने 2021-22 के लिए अब रद्द की जा चुकी दिल्ली आबकारी नीति के निर्माण और कार्यान्वयन में कथित भ्रष्टाचार के सिलसिले में 26 फरवरी को आम आदमी पार्टी (आप) के नेता को गिरफ्तार किया था।
1942 से चल रहा था मुकदमा, मुंबई हाईकोर्ट ने अब किया फैसला, 93 साल की मिसेज डिसूजा को मिलेगा दो फ्लेटों का कब्जा*
बॉम्बे हाईकोर्ट ने देश की आजादी से पहले से लंबित संपत्ति विवाद मामले में 93 वर्षीय महिला को उसका हक दिलाने का फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को दक्षिण मुंबई के दो फ्लैट उसके मालिक को सौंपने का निर्देश दिया है। फ्लैट दक्षिण मुंबई में रूबी मेंशन की पहली मंजिल पर स्थित हैं और 500 वर्ग फुट और 600 वर्ग फुट के हैं।
28 मार्च, 1942 में तत्कालीन भारतीय रक्षा अधिनियम के तहत इमारत की मांग की गई थी, जिसने उस समय के ब्रिटिश शासकों को निजी संपत्तियों पर कब्जा करने की अनुमति दी थी।
न्यायमूर्ति आरडी धानुका और न्यायमूर्ति एमएम साथाये की खंडपीठ ने गुरुवार यानी 4 मई को दिए अपने आदेश में कहा था कि ब्रिटिश शासकों को संपत्ति देने वाली मांग को रद्द कर दिया गया था। 1946 में फ्लैट को उसके असली मालिक को सौंपने का निर्देश दिया गया था, जिसपर अमल नहीं किया गया।
ऐसी संपत्तियों पर वर्तमान में एक पूर्व सरकारी अधिकारी के कानूनी उत्तराधिकारियों का कब्जा है। डिसूजा ने अपनी याचिका में महाराष्ट्र सरकार और मुंबई के कलेक्टर को जुलाई 1946 के मांग आदेश को लागू करने और उन्हें फ्लैट का कब्जा सौंपने का निर्देश देने की मांग की थी। हालांकि, इसका वर्तमान में फ्लैट में रह रहे लोगों ने विरोध किया, जो एक डीएल लॉड नाम के व्यक्ति के कानूनी उत्तराधिकारी हैं। लॉड ब्रिटिश के समय सिविल सेवा विभाग में एक सरकारी अधिकारी थे।
93 वर्षीय मिसेज डिसूजा ने अचिका में दावा किया था कि मांग आदेश वापस ले लिया गया था, लेकिन फिर भी फ्लैट का कब्जा सही मालिक को नहीं सौंपा गया। याचिका में कहा गया कि इमारत के अन्य फ्लैटों को उसके मालिकों को वापस कर दिया गया है।
अदालत ने राज्य सरकार को फ्लैट खाली कराने के लिए आठ सप्ताह का समय दिया है। पीठ ने कहा कि फ्लैट को खाली कराकर उसके असली मालिक को जल्द से जल्द सौंप दिया जाए।
जाति आधारित जनगणना को लेकर बिहार सरकार फिर पहुंची पटना हाई कोर्ट, 9 मई को होगी सुनवाई*
बिहार में जातीय जनगणना के मामले में सुनवाई शीघ्र पूरा करने की अर्जी के साथ बिहार सरकार फिर हाईकोर्ट पहुंची है। सरकार नौ मई को हाईकोर्ट में अपील के साथ दलील रखेगी। सरकार के एडवोकेट जनरल पीके शाही ने इस मामले में जल्द सुनवाई करने की गुहार लगाई है। दरअसल, हाईकोर्ट ने गुरुवार को बिहार में जातिगत जनगणना पर रोक लगा दी थी।
हाईकोर्ट ने कहा था कि अब तक जो आंकड़े इकट्ठा किए गए हैं, उनको नष्ट न किया जाए। कोर्ट ने इस मामले में अगली सुनवाई दो महीने बाद यानी तीन जुलाई को तय की थी। मगर, बिहार सरकार का अदालत में कहना था कि जातिगत जनगणना का काम 80 फीसदी पूरा हो चुका है। ऑफलाइन काम करीब-करीब पूरा हो चुका है। इसी साल सात जनवरी से शुरू हुई जनगणना का काम 15 मई को पूरा होना तय था।
सरकार ने इस अभियान के लिए बिना कोई कानून बनाए पांच सौ करोड़ रुपये खर्च कर काम शुरू भी कर दिया। मगर, काम पूरा होने से ऐन वक्त पहले जातीय जनगणना मामला हाईकोर्ट में गया। पटना हाईकोर्ट ने इस पर रोक लगा दी। हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस वी चंद्रन की बेंच ने ये फैसला सुनाया था।
दरअसल, नीतीश सरकार लंबे समय से जातिगत जनगणना कराने के पक्ष में रही है। नीतीश सरकार ने 18 फरवरी 2019 और फिर 27 फरवरी 2020 को जातीय जनगणना का प्रस्ताव बिहार विधानसभा और विधान परिषद में पास करा चुकी है। हालांकि, केंद्र सरकार इसके खिलाफ रही है।
शिक्षा के नाम पर धर्मांतरणः यूपी पुलिस का सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा, गरीबों को पैसे और नौकरी का लालच देकर ईसाई बना रही एक यूनिवर्सिटी*
उत्तर प्रदेश पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में यह दावा किया है प्रयागराज की सैम हिग्गिनबॉटम यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर, टेक्नोलॉजी एण्ड साइंसेज (SHUATS) ने विदेशं से मिले 34 करोड़ से ज्यादा रुपये का इस्तेमाल गरीबों का इसाई धर्मांतरण के लिए किया है।
एसएचयूएटीएस के निदेशक विनोद बिहारी लाल, कुलपति राजेंद्र बिहारी लाल और अन्य आरोपियों को अदालत से किसी भी राहत का विरोध करते हुए उत्तर प्रदेश पुलिस ने कहा, ये सभी लोग समाज में हाशिए पर रह रहे हिंदू व मुस्लिमों को प्रलोभन के जरिये या जबरन ईसाई धर्म में परिवर्तित कराने में शामिल हैं। हलफनामे के अनुसार, एसएचयूएटीएस को जो स्रोत अमेरिका, जापान, नेपाल, अफगानिस्तान, श्रीलंका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जर्मनी व इराक 34 करोड़ से ज्यादा पैसा मिला है। इस पैसे का इस्तेमाल गरीब तबके के लोगों ईसाई बनाने में लगाते थे
यह धंदा 2005 से चल रहा है। विदेशों से मिली धनराशि ये राशि यीशु दरबार ट्रस्ट को स्थानांतरित की जाती थी। इसके बाद चर्च और वहां से चर्च के लोगों व ब्रॉडवेड हॉस्पिटल को रकम दी जाती रही। हलफनामे में यह भी कहा है कि विभिन्न जगहों पर तलाशी के दौरान प्रचार सामग्री व दस्तावेज जब्त किए गए, जिसमें ईसाई धर्मांतरण के लाभों के साथ लोगों को लुभाने के लिए उपयोग की जाने वाली वस्तुओं की सूची शामिल थी।
पुलिस के हलफनामे के अनुसार, प्रचार सामग्री में उल्लेख है कि ईसाई धर्म अपनाने पर 35 हजार रुपये दिए जाएंगे। इसके लिए प्रेरित करने पर बोनस भी मिलेगा। साथ ही, ईसाई धर्म का प्रचारक बनने पर 25 हजार मासिक वेतन व पांच से 10 लोगों का धर्मांतरण कराने पर और अधिक बोनस मिलेगा।
हलफनामे के मुताबिक, धर्म परिवर्तन की प्रक्रिया 40 दिन में पूरी होती है। मिशनरी अस्पतालों के रोगियों का धर्म परिवर्तन कराया जाता है। अस्पताल के कर्मचारी इस प्रक्रिया में शामिल होते हैं।
पुलिस का हलफनामे में दावा है कि इवेंजेलिकल चर्च ऑफ इंडिया, हरिहरगंज, फतेहपुर के पादरी ने अधिकारियों को बताया कि वह और उसके साथी हिंदुओं व मुसलमानों को प्रलोभन देकर धर्मांतरित कर रहे हैं। वे इस मकसद के लिए दस्तावेज में नामों का हेरफेर भी करते हैं।
आरोपियों की गिरफ्तारी पर सुप्रीम कोर्ट की है रोक…सुप्रीम कोर्ट ने एसएचयूएटीएस के कुलपति और निदेशक की गिरफ्तारी रोक लगा दी थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इन आरोपियों को अग्रिम जमानत देने से इन्कार किया था। आरोपियों ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। अब एक बार फिर यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है। सुप्रीम कोर्ट जल्द ही इसकी सुनवाई करेगा।
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