प्रस्तुत की गई रचनाओं में से महत्वपूर्ण पंक्तियां निम्न प्रकार रही
वह तो जीने का भी हक़दार नहीं
— डॉ.कमर रईस (सोनीपत)
सजा कम नहीं होती कहीं डुबकी लगाने से,
घिनोने पाप से मुक्ति वो गंगाजल नहीं देगा।
— सोनू ‘संजीदा’
हवा महंगी हो गई खिड़कियों के शहर में,
पानी भी बिकने लगा मछलियों के शहर में।
— शमशेर दहिया ‘सनम ‘
नई चेतना का अंकुर फूटे, नए पथ पर अग्रसर रहें,
सबसे युवा देश है भारत, कुशल नव-यौवन आगे बढ़े।
— जवाहरलाल शर्मा
सब समझते ज़बान फूलों की,
बस यही दास्तां फूलों की;
कैद कर ली महक भी लोगों ने,
जान लेकर जवान फूलों की।
— अनूपिंदर सिंह ‘अनूप’
अधूरी एक कहानी के किसी किरदार जैसे हैं,
जहां खबरें दबाव में हम उस अखबार जैसे हैं।
— गुरमीत (करनाल)
जिस की ज़रूरत रूह की मूरत को बदल देती है
पुरी ना हब्श न जाने यह कितनों की सूरत बदल देती है।
— सुभाष भाटिया
मैं तुम्हें ढूंढने मोक्ष के द्वार पर ,
मैं रोज बुलाता रहा और उसे मनाता रहा;
मेरी कविता एक गीत में ढ़ल गई,
इसी मंच पर मैं उसे गुनगुनाता रहा।
— मनोज मधुरभाषी ( करनाल)
सुंदर है यह मधुवन यारों, गाओ गीत,
मुस्काती है देखो कलियां, सुन मनमीत;
जीवन तो है बहता झरना,हिय रख प्रीत
करना सबसे प्यारी बातें, यह जग की रीति।
— नरेश लाभ पानीपत
सारी अदबो हया तहस नहस हो गई,
गुफ़्तगू शुरू हुई और बहस हो गई।
— शकील जठेड़ी (सोनीपत)
अगर अपनी हो तो झोपड़ी भी अच्छी लगती है,
निरे पागल को भी अपनी खोपड़ी अच्छी लगती है;
खाने को तो रूखी सूखी भी खा लेते हैं,
अगर रोटी चौपड़ी हो तो अच्छी लगती है।
— सुरेंद्र धीमान ‘बापौली’
वह भी समय हमारा था घरों में चिट्ठी भेजी जाती थी
एक ही चिट्ठी में खैर खबर सब की पूछी जाती थी,
अपने घर के हर बंदे का भी हाल-चाल पूछते थे,
डाकिए की आवाज सुनकर खुश बहुत हो जाते थे।
— नीरू तनेजा
बहनों के लिए सिलेंडर सस्ता, भाइयों के लिए क्या?
वोट तो हम भी देते हैं हमें भी ब्लेंडर, व्हिस्की, बियर सस्ती चाहिए
— रमेश चंद्र पुहाल पानीपती
इन सब की प्रस्तुतियां भी सराही गई
फोटो फाइल 24 पीएनपी 8 -काव्य गोष्ठी के दौरान प्रसिद्ध कवि एवं साहित्यकार