- जवाहरलाल शर्मा की चौथी पुस्तक “भारत-अतीत से आज” का भी किया विमोचन
Aaj Samaj (आज समाज),Monthly Poetry Seminar By Ankan Sahitya Manch Panipat, पानीपत : रविवार को अंकन साहित्यिक मंच की मासिक काव्य गोष्ठी का आयोजन आर्य कॉलेज, पानीपत में हुआ। इसकी अध्यक्षता डॉ. कमर रईस (सोनीपत) ने की। इसके मुख्य अतिथि व विशिष्ट अतिथि क्रमश: जवाहर लाल शर्मा व सुभाष भाटिया रहे। इसका मंच संचालन कमलेश कुमार पालीवाल ‘कमल’ ने किया। आज जवाहरलाल शर्मा की चौथी पुस्तक “भारत – अतीत से आज” का विमोचन भी किया गया। इस संबंध में मंच के संरक्षक डॉ.ए.पी.जैन ने बताया कि शर्मा एम.ए.एम एड.हैं, तीन शिक्षण संस्थाओं के संस्थापक हैं, बहुत सारे राजकीय व राष्ट्रीय स्तर के अलंकरणों से सम्मानित हैं, अंकन साहित्यिक मंच के संयोजक रहे हैं। उन्होंने विश्व के उत्कृष्ट वैज्ञानिक ( 2 भाग ) तथा “साहित्य साधना” भी लिखी। डॉ. जैन ने शर्मा को इसके लिए बधाई देते हुए आगे भी ऐसे प्रयासों के लिए शुभकामनाएं दी। उसके पश्चात साहित्य की गंगा बही।
प्रमुख रचनाकारों की प्रस्तुतियों की मुख्य पंक्तियां निम्न प्रकार रहीं
दुनिया में कितनी मक्कारियां हैं फिर भी यह खूबसूरत है, है ना, जीवन में कितनी दुश्वारियां हैं, फिर भी यह खूबसूरत है, है ना; एक शूल ही गुलाब की हिफाजत करता है, फिर तो जिंदगी कांटों घिरे फूल की किलकारियां है, इसलिए खूबसूरत है, है ना। – डाॅ.ए.पी.जैन
- गणतंत्र में गण क्यों पिस रहा है, क़तरा क़तरा ख़ून क्यों रिस रहा है; बेलगाम आजादी चाहने वालों सावधान, मुझे महाविनाश आता क्यों दिख रहा है। – सुभाष भाटिया
- मेरा जीवन कोरा कागज कोरा ही रह गया, और मेरे चावल चूहे खा गए, बोरा ही रह गया – कमलेश कुमार पालीवाल ‘कमल’
- भारत प्यारा देश हमारा, हमको लगता सबसे न्यारा, इसकी शान बढ़ाएंगे, सबसे आगे ले जाएंगे। – जवाहर लाल शर्मा
- छत पर मैं परिंदे को दाना खिला रहा हूं, वह मेरे बारे में सोचता होगा कि मैं कितना खुश नसीब हूं, वह मेरे लिए रब से दुआ करता होगा ए रब उसकी खाली झोली खुशियों से भर दे। – कवि मनोज मधुरभाषी (करनाल)
- ठोकरों में फिरता हूँ बुझने के बाद मैं, पूछता है कौन अब, दिन में चिराग़ को। – शकील चठेड़ी (सोनीपत)
- इससे ज्यादा वक्त क्या ढाएगा सितम, जिस्म बूढ़ा कर दिया और दिल जवान रहने दिया।- गुलशन सपड़ा
- शरीफों कि यह बस्ती है बग़ावत हो नहीं सकती बग़ावत हो जहां ‘भूषण’ शराफ़त हो नहीं सकती। – भारत भूषण वर्मा (असंध)
- है आह्लादित मन आज, गीत सब गाएं, आया अपना मनमीत, गले लग जाएं; चल डाल हाथ में हाथ, मीत है प्यारा, हम प्रेम रंग से सकल धरा सरसाएँ। – नरेश लाभ, पानीपत
- भगवान से देखो कितना डर रहा हूं मैं, तिजोरी और जेब दोनों भर रहा हूं मैं, मेरा भाई भूखा है तीन दिनों से, और चौथी बार पेट भर रहा हूं मैं। – डॉ. सुरेंद्र टुटेजा
- सुने जो किसी की नहीं, खुद को ही माने सही, ऐसे आदमी का कभी, संग नहीं कीजिए! जीत कर भरोसा फिर, पीठ पीछे वार करे, उससे किनारा कर, आप तज दीजिए! – धर्मेंद्र अरोड़ा ‘मुसाफिर’
- धरा पर श्याम तुमको आना तो होगा, प्रीत का नगर यहां बसाना तो होगा। – डॉ. कंचन प्रभाती
- औरत होने का मतलब यह नहीं कि तुम कोई और हो जाओ, तुम खुद सी रहकर भी मुकम्मल हो, आकांक्षाओं का भार ढोते-ढोते भूल यह न जाना कि तुम खुद ही हमसफ़ भी हो। – मानवी सिर्फ एक नज़र देखा मुझे, औरों को देखा बार-बार – अनिल गहलोत
- दिल अपना कोई तोड़े, तकलीफ तो होती है, तन्हा जो हमें छोड़ें, तकलीफ तो होती है। – अनूपिंदर सिंह अनूप
- रिश्ते टूट कर तो जुड़ भी सकते हैं, ठोकर खा कर के भी हम संभल सकते हैं; सांस दो छूटी एक बार भी महाबीर, तो लख चौरासी में भटकते रह सकते हैं। – महाबीर गोयल पट्टीकल्याणा
इन्होंने भी दी प्रस्तुतियां
उपरोक्त के अतिरिक्त सर्वश्री अशोक वशिष्ठ (करनाल), रमेश चंद्र पुहाल, नीरज शर्मा, नरेश गंभीर, मकर सिंह मित्रोलिया, जय श्री कृष्णा कौशल, पुनीत कौशल, मोहनलाल मुखीजा, चंद्रशेखर आजाद, सरदार गुरबेल सिंह,सरदार गुरुचरण फौजी, वंदना सपरा, उषा शर्मा कौशल, तानिया सपडा, महक सपड़ा, चिन्मय कौशल आदि ने भी अपनी प्रस्तुतियां दी।