‘Modi surname’ defamation case : मोदी सरनेम’ मानहानि मामला: राहुल गांधी ने पटना हाई कोर्ट में दाखिल किया हलफनामा, कहा मुकदमा दोहरे दंड के सिद्धांत से प्रभावित

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कांग्रेस नेता राहुल गांधी
कांग्रेस नेता राहुल गांधी

Aaj Samaj, (आज समाज),’Modi surname’ defamation case,दिल्ली : 

1.मोदी सरनेम’ मानहानि मामला: राहुल गांधी ने पटना हाई कोर्ट में दाखिल किया हलफनामा, कहा मुकदमा दोहरे दंड के सिद्धांत से प्रभावित

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ‘मोदी सरनेम’ विवाद मामले में पटना हाई कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया है। राहुल गाँधी ने अपने हलफ़नामे में कहा है कि पटना की अदालत में राज्यसभा सांसद सुशील मोदी की ओर उनके खिलाफ किया गया मानहानि का मुकदमा ‘डबल जियोपार्डी डॉक्टरिन’ (दोहरे दंड के सिद्धांत) से प्रभावित है।

इस हलफनामे में राहुल गाँधी ने कहा है कि उसी टिप्पणी के लिए सूरत की अदालत की ओर से उन्हें पहले ही दोषी ठहराया जा चुका है जो पटना कोर्ट में सुशील मोदी की ओर से दायर मानहानि शिकायत के केंद्र में है। हलफनामे में यह भी कहा गया है कि  अप्रैल 2019 में कोलार में एक चुनावी अभियान के दौरान जब ‘सभी चोर मोदी सरनेम साझा क्यों करते हैं’ कथित बयान दिया गया, जिसके बाद उनपर मुकदमा चला और सूरत कोर्ट ने उन्हें दोषी ठहराया और दो साल की सजा सुनाई, इसलिए पटना कोर्ट के समक्ष लंबित मामला दोहरे दंड के सिद्धांत से प्रभावित होगा जैसा कि सीआपीसी की धारा 300 और भारत के संविधान के अनुच्छेद 20 (2) के तहत प्रावधान है।

हलफ़नामे में संविधान के अनुच्छेद 20 (2) का जिक्र करते हुए कहा गया कि किसी भी व्यक्ति पर एक ही अपराध के लिए एक से ज्यादा बार मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है और दंडित नहीं किया जा सकता है। इतना ही नही सीआरपीसी की धारा 300 (1) न सिर्फ एक ही अपराध के लिए, बल्कि एक ही तथ्य पर किसी अन्य अपराध के लिए किसी व्यक्ति के मुकदमे पर रोक लगाती है। राहुल गाँधी ने हलफनामे आगे कहा कि दोनों मामलों में फर्क सिर्फ इतना है कि शिकायतकर्ता अलग-अलग हैं। 24 अप्रैल यानी यानी सोमवार को अदालत राहुल गाँधी की याचीका पर सुनवाई करेगा जिसमें उन्होंने पटना के एमएलए-एमपी कोर्ट के उस आदेश को रद करने की मांग की है, जिसमें कोर्ट ने उन्हें को 25 अप्रैल को मोदी सरनेम मामले में सदेह उपस्थित होने के लिए कहा है।

दरसअल भाजपा नेता सुशील मोदी ने 2019 में राहुल गांधी पर मानहानि का केस दर्ज करवाया था। सुशील मोदी ने आरोप लगाया कि राहुल गांधी ने मोदी को चोर कहकर पूरे मोदी समुदाय का अपमान किया है।

ऐसे ही मामले में इन 23 मार्च 2023 को गुजरात की सूरत कोर्ट ने राहुल गांधी को दो साल की सजा सुनाई थी। जिसके बाद राहुल गाँधी की संसद की सदस्यता समाप्त हो गई थी।

2.यदि मौत का कारण पता न हो तो शादी के 7 साल के भीतर ससुराल में सभी अस्वाभाविक मौत दहेज हत्या नहीं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने दहेज हत्या से जुड़े एक मामले में अहम फैसला सुनाते हुए कहा ,यदि मौत का कारण पता नहीं हो तो शादी के 7 साल के भीतर ससुराल में सभी अस्वाभाविक मौत को दहेज हत्या नहीं माना जा सकता है। जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस राजेश बिंदल की पीठ ने इस मामले में आरोपी को बरी करते हुए उपरोक्त टिप्पणी की। इस व्यक्ति को उत्तराखंड हाईकोर्ट ने सेक्शन 304बी (दहेज हत्या) और सेक्शन 498ए (क्रूरता) के मामले में दोषी ठहराते हुए 7 साल की सजा सुनाई थी।

दरसअल इस मामले में महिला की मौत शादी के दो साल के भीतर ही हो गई थी। मामले में निचली अदालत ने व्यक्ति को दोषी मानते हुए 10 साल की सजा सुनाई थी। सजा के बाद व्यक्ति ने फैसले को उत्तराखंड हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने भी व्यक्ति को दोषी माना। हालांकि, कोर्ट ने व्यक्ति की सजा को घटा कर 7 साल कर दिया था। हाई कोर्ट के फैसले को व्यक्ति ने सुप्रीम कोर्ट में चुनोती दी।

सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को राहत देते हुए कहा कि महिला के पिता के बयान के अनुसार शादी के शुरुआती महीनों में दहेज में मोटरसाइकिल की मांग की गई थी। हालांकि, बयान से ऐसा कुछ साबित नहीं होता है कि मौत से तुरंत पहले इस तरह की कोई मांग की गई थी या नही। रिपोर्ट के अनुसार महिला की शादी 1993 में हुई और महिला की मौत जून 1995 में हुई थी। महिला के पिता ने चरण सिंह, देवर गुरमीत सिंह और सास संतो कौर के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी।

3. समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं पर सोमवार को होने वाली सुनवाई टली

समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं पर संविधान पीठ में सोमवार को होने वाली सुनवाई टल गई है। शुक्रवार देर रात सुप्रीम कोर्ट के द्वारा जारी सर्कुलर में कहा गया कि जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एस. रविंद्र भट की अनुपलब्धता की वजह से सोमवार को संविधान पीठ में सुनवाई नहीं हो सकेगी।

जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एस. रविंद्र भट दोनों ही न्यायाधीश उस संविधान पीठ का हिस्सा हैं, जो समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग संबंधी याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। इस संविधान पीठ में इन दोनों न्यायाधीशों के अलावा प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल हैं।

इसी गुरुवार को जस्टिस चंद्रचूड़ ने संकेत दिए थे कि उनकी अध्यक्षता वाली शीर्ष अदालत की पीठ सोमवार को एक घंटे पहले ही कार्यवाही शुरू करेगी। जस्टिस नरसिम्हा के साथ पीठ में बैठे जस्टिस चंद्रचूड़ ने उस वक्त कहा था, ‘हम थोड़ा जल्दी बैठेंगे, ताकि हम कुछ तात्कालिक मामलों को सुन सकें। संविधान पीठ को 10.30 बजे बैठना है। इसलिए अन्य मामलों के लिए हम 9.30 बजे बैठ सकते हैं।’

इससे पहले समलैगिंक विवाह को मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं का केंद्र सरकार ने विरोध किया था। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा कि सेम-सेक्स शादी एक शहरी संभ्रांत अवधारणा है जो  देश के सामाजिक लोकाचार से बहुत दूर है, ऐसे में इसे कतई मान्यता नही दी जा सकती है। केंद्र सरकार ने कहा विषम लैंगिक संघ से परे विवाह की अवधारणा का विस्तार एक नई सामाजिक संस्था बनाने के समान है। केवल संसद ही व्यापक विचारों और सभी ग्रामीण, अर्ध-ग्रामीण और शहरी आबादी की आवाज, धार्मिक संप्रदायों के विचारों और व्यक्तिगत कानूनों के साथ-साथ विवाह के क्षेत्र को नियंत्रित करने वाले रीति-रिवाजों को ध्यान में रखते हुए निर्णय ले सकती है।

4.जब सरकार मोबाइल डेटा निलंबित करती है तब सार्वजनिक वाईफाई तक पहुंच उपलब्‍ध कराने की मांग वाली याचीका पर पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार से जवाब मांगा

पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने शुक्रवार को एक याचीका पर सुनवाई करते हुए पंजाब सरकार और केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है, जिसमें सरकार द्वारा मोबाइल डेटा सेवाओं को प्रतिबंधित किए जाने पर सार्वजनिक रूप से वाई-फाई या ब्रॉडबैंड उपलब्ध कराने की मांग की गई है।

याचिकाकर्ता नीरज ने अदालत में यह तर्क दिया था कि मोबाइल इंटरनेट सेवाओं के निलंबन से नागरिकों के एक विशेष वर्ग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, जो इंटरनेट का उपयोग केवल मोबाइल डेटा सेवाओं का उपयोग करता है।

याचिकाकर्ता ने एक और तर्क दिया है कि जब मोबाइल डेटा को निलंबित कर दिया जाता है, तो लोगों (जो मोबाइल डेटा के माध्यम से इंटरनेट का उपयोग करते हैं) का इंटरनेट इस्तेमाल करने का मौलिक अधिकार अंततः प्रभावित होता है, जबकि दूसरी ओर, जिन लोगों की वाईफाई/ ब्रॉडबैंड तक पहुंच होती है, वे इंटरनेट का उपयोग कर सकते हैं, जिससे यह लोगों के दो लोगों के समूहों के बीच अनुचित वर्गीकरण का मामला बनता है।

5. मराठा आरक्षण:महाराष्ट्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव याचिका करेगी दायर

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने शुक्रवार को कहा कि मराठा आरक्षण पर पुनर्विचार याचिका खारिज होने के बाद महाराष्ट्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव पिटीशन दायर करेगी। मीडिया से बात करते हुए, मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा, “उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, महाधिवक्ता और अन्य मंत्रियों के साथ महत्वपूर्ण चर्चा हुई। हम जल्द से जल्द अदालत में एक क्यूरेटिव याचिका दायर करेंगे। हमने इस पर महाधिवक्ता को निर्देश दिए हैं। महाराष्ट्र सरकार मराठा समुदाय को न्याय दिलाने के लिए प्रतिबद्ध है।
दरसअल सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण को रद्द करने के फैसले पर पुनर्विचार की मांग वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया था। पांच जजों के संविधान पीठ ने अपने 5 मई 2021 का आरक्षण रद्द करने के फैसले को बरक़रार बरकरार रखा है। संविधान पीठ ने कहा कि रिकॉर्ड पर कोई त्रुटि नहीं मिली है, जिससे मामले पर फिर से विचार करने की जरूरत हो। सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस एस अब्दुल नजीर, जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस एस रवींद्र भट की संविधान पीठ ने यह फैसला सुनाया है।

महाराष्ट्र सरकार और याचिकाकर्ता विनोद नारायण पाटिल ने इस बाबत याचिका दाखिल की थी। सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में मराठा समुदाय को आरक्षण असंवैधानिक करार देते हुए कहा कि 50 फीसदी आरक्षण सीमा तय करने वाले फैसले पर फिर से विचार की जरूरत नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मराठा आरक्षण 50 फीसदी सीमा का उल्लंघन है। मराठा आरक्षण देते समय 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा पार करने के लिए कोई वैध आधार नहीं है, आर्थिक और सामाजिक पिछड़ेपन के आधार पर यह आरक्षण दिया गया था।

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पीजी मेडिकल पाठ्यक्रम में पहले किए गए दाखिले बने रहेंगे। पहले की सभी नियुक्तियों में भी छेड़छाड नहीं की जाएगी।

26 मार्च 2021 को मराठा आरक्षण  के खिलाफ दाखिल पुनर्विचार याचिकाओं पर 10 दिन की मैराथन सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।

6. कंझावला मामला: सत्र अदालत 25 मई को आरोपों पर दलीलें सुनेगी

दिल्ली की रोहिणी कोर्ट ने शुक्रवार को कंझावला हिट-एंड-ड्रैग मामले में आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ लगाए गए आरोपों पर दलीलें सुनने के लिए 25 मई की तारीख को सूचीबद्ध किया है। इस मामले में, दिल्ली पुलिस ने 1 अप्रैल को सात आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (एएसजे) नीरज गौर ने आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ आरोपों पर दलीलें सुनने के लिए मामले को 25 मई को सूचीबद्ध किया। प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश द्वारा आगे की सुनवाई के लिए मामला इस अदालत को सौंपा गया है। 18 अप्रैल को मजिस्ट्रेट कोर्ट ने संज्ञान लेकर मामले को आगे की कार्रवाई के लिए सत्र न्यायालय को सुपुर्द कर दिया।

अदालत ने 13 अप्रैल को मामले में दिल्ली पुलिस द्वारा दायर सात आरोपियों के खिलाफ 800 पन्नों की चार्जशीट पर संज्ञान लिया था। आरोपियों को चार्जशीट की कॉपी भी मुहैया कराई गई। आरोपी व्यक्ति दीपक खन्ना (26), अमित खन्ना (25), कृष्ण (27), मिथुन (26) और मनोज मित्तल को पुलिस ने 2 जनवरी को गिरफ्तार किया था।

दो अन्य सह-आरोपियों आशुतोष भारद्वाज और अंकुश को अदालत ने जमानत दे दी है। अमित खन्ना और भारद्वाज पर मोटर वाहन अधिनियम के नियमों के अनुसार भी मामला दर्ज किया गया। चार्जशीट के मुताबिक, अमित खन्ना, कृष्ण, मिथुन और मित्तल पर हत्या का आरोप लगाया गया है।

दरसअल 20 वर्षीय लड़की की स्कूटी की 31 दिसंबर और 1 जनवरी की दरमियानी रात को कार से टक्कर हो जाती है, जिसके बाद लड़की के कपड़े गाड़ी में फंस जाते हैं, गाड़ी उसे करीब 12 किमी तक घसीटती चली गई, जिससे उसकी मौत हो गई।

प्रारंभ में, आईपीसी की धारा 279 और 304 के तहत मामला दर्ज किया गया था, लेकिन बाद में, पुलिस ने मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) जोड़ दी थी।

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