Modi saga is supreme: सर्वोच्च है मोदी गाथा

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 32 मिनट के भाषण में स्वदेशी और स्वदेशी निर्मित वस्तुओं पर जोर दिया गया था। उनके भाषण के बाद अनेक तरह कीअटकलें लगाई जाने लगी थी। उनके भाषण में आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए 20 लाख करोड़ रुपए के पैकेज की घोषणा की गई थी। इसके बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने विस्तार से इस बारे में प्रेस कांफ्रेंस की थी। उन्होंने आर्थिक सुधारों को लेकर कई पैकेजों की विस्तार से जानकारी दी थी।
प्रधानमंत्री का सारा ध्यान ‘स्थानीय के बारे में मुखर’ होने पर केंद्रित था और ब्रांडेड ‘माल’ में जाने के बजाए भारत से उत्पादित माल खरीदना ज्यादा जरूरी था। प्रधानमंत्री ने देशवासियों को आत्मनिर्भर बनने के लिए जो आग्रह किया था, वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, हमारे स्वतंत्रता संग्राम के शीर्ष नेताओं और उनके बाद के नेताओं के सपने को सच करने जैसा है। लेकिन ज्यादातर लोग, जो टीवी के सामने लगातार बैठे रहे या फिर रेडियो के माध्यम से सुन रहे थे, उनकी उम्मीदों पर पानी फिर गया। दरअसल, उन्हें उम्मीद थी कि मार्च महीने के अंत से लगातार लॉकडाउन के बाद सरकार किसी प्रकार की बड़ी घोषणा करेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उन्हें उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री के संबोधन के बाद आर्थिक स्थिति की सुविधा के लिए कुछ उपाय किया जाएगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं किया गया। इस तरह सरकार की नीति सामान्य कामकाज और व्यापार के लिए पूरी तरह से खराब हो गया।  हालांकि यह वर्तमान अनुमानों के अनुरूप नहीं है, और अब प्रवासियों के बहिर्गमन का लिए कोई जिक्र तक नहीं किया गया। भोजन या पानी के बिना इस भयंकर गर्मी में अपने गांव जाने के लिए वो दिन रात 24 घंटे संघर्ष करने के लिए मजबूर हैं। वास्तव में, छह वर्षों में पहली बार सोशल मीडिया के व्हाट्सएप पर असंख्य चुटकुलों और काटूर्नों के साथ प्रधानमंत्री के भाषण को लोग चटखारे ले रहे हैं। हास्य की दुनिया में किसी भी राजनीतिक संस्कृति का आंतरिक हिस्सा रहा है। यूनाइटेड किंगडम के पत्र पत्रिका में प्रमुख नेताओं पर इस तरह का एक अलग ही सोच है। अमरीका में काटूर्नों का अपने लिए विशिष्ट स्थान था तथा उनके राजनीतिक व्यंग्य तथा अन्य प्रमुख प्रकाशनों में उनकी जगह थी। आज के समय में भी  राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प प्रमुख अमेरिकी दैनिक समाचार पत्रों में विनोदी उपहास का स्रोत है।
हमारे प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कार्टूनिस्टों से आग्रह किया कि था कि वे उनके विचारों को बिना किसी दूसरी सोच के चित्रित करें। शंकर पिल्लै ने हमारे विरासत में राजनीतिक व्यवस्था के एक अति प्रतिष्ठित आलोचकों में से एक थे। उन्होंने अपनी यशस्वी पत्रिका शंकर के साप्ताहिक में नेहरू मेनन, मोरारजी देसाई और अन्य लोगों का हंसी-मजाक उड़ाया था। आर. के. लक्ष्मण इस शैली के पत्रकारों में अगुआ थे और उस समय के जमाने में उनके काटूर्नों को अमर कर दिया गया है और उनमें से बहुतों की राय अलग अलग चल रही थी।  राजिंदर पुरी, सुधीर दार, आबू अब्राहम और सुधीर तैलांग अनेक व्यंगपूर्ण उपहास और विनोद के साथ अपनी एक अलग पहचान बनाए हुए हैं।  पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी किसी भी अन्य समकालीन नेता की तुलना में अधिक औपचारिक प्रतीत हो रहे हैं। कई बार वे अपने काटूर्नों को बड़े गर्व से बताते रहते हैं। कुछ टेलीविजन चैनलों में अभिनव घटनाओं को हल्का सा दशार्या गया है।इसलिए किसी प्रकार की हंसी-मजाक करना राजनीतिक संवाद का एक अभिन्न अंग है और वह नेता की हैसियत, उपलब्धियों और प्रतिबद्धता का द्योतक नहीं है। वर्तमान संदर्भ में मोदी इस देश में सबसे बड़े नेता हैं।
जहां तक आरएसएस के एजेंड़े के नजदीक मुद्दों पर मोदी के जोर देने के बारे में सवाल है, इसमें न तो कोई बात गलत है और न ही सरकार की रणनीति में आमूल-चूल बदलाव है। इस असाधारण कर लगाने वाले आर्थिक समय के अंतर्गत, साफ तौर पर, बुने हुए माल को बढ़ावा देने की इच्छा है। यह अनुमान लगाया जा रहा है कि मोदी ने ऐसा इसलिए कहा था ताकि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के स्तर तक पहुंच सकें, क्योंकि कुछ प्रमुख संघ-पदाधिकारी अपनी सरकार द्वारा शुरू किए गए कदमों से जाहिर तौर पर बेचैनी महसूस कर रहे थे। विडंबना यह है कि इन सभी मतभेदों का उद्भव उस समय हुआ जब मध्यप्रदेश की सरकार और उनके वफादारों-शिवराज सिंह चौहान, जो मुख्यमंत्री  की हैसियत से लौटे थे, के लिए सक्रिय सहायता दी गई। पार्टी के भीतर के कुछ प्रधानमंत्री के आलोचकों ने यह गलत प्रभाव पैदा किया कि मोदी शिवराज सिंह चौहान के पक्ष में नहीं थे बल्कि वे शायद कुछ अन्य नेताओं को पसंद करते थे। बहरहाल, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने भाजपा नेताओं को निर्देश दिया कि वह या चुनाव लड जाए या फिर से नियुक्त चौहान, जो पहले एक लोकप्रिय और सफल मुयमंत्री रहे हैं, चौहान को सर्वसम्मति से चुना गया। जिस बात पर ध्यान देने की जरूरत है वह यह है कि मोदी को चौहान से कोई समस्या क्यों हो सकती थी, जो उनके नेतृत्व को कोई खतरा नहीं दिखती। दूसरी बात, अगर मोदी ने नामजद किया होता तो यह कैसे संभव था कि आरएसएस उन्हें सत्ता की बागडोर संभालने से रोके? तीसरे, संघ ने खुद मोदी को महत्वपूर्ण काम सौंपे हैं, जिनका विकास उन्हें अपने अधिकार के तहत एक प्रमुख नेता के रूप में करने में मदद मिली। 2013 में राष्ट्रीय स्वयं संघ ने अन्य वरिष्ठ भाजपा नेताओं के दावों को विपरीत प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी को पद संभालने का निर्णय लिया।
अपनी ओर से प्रधानमंत्री ने 2014 और 2019 के संसदीय चुनावों में उत्कृष्ट ढंग से वितरण किया है और भाजपा की अप्रत्याशित प्रगति को तेज किया है। जहां तक लोकप्रियता की बात है, वे भाजपा के हर नेता को पीछे छोड़ चुके हैं और इसमें कोई संदेह नहीं कि हमारे बच इंदिरा गांधी के बाद उन्होंने एक प्रधानमंत्री के रूप में पूरी बागडोर  अपने नियंत्रण में की है।


पंकज वोहरा
(लेखक द संडे गार्डियन के प्रबंध संपादक हैंं।)