बुद्धिमता मापने के तरीके बदलने होंगे

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sudhansu ji
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सुधांशु जी महाराज
नये विश्व के लिए योग्यता का आंकलन हृदय व आत्मबल बने इसीलिए अब वैज्ञानिक योग्यता के मापक बदलने पर जोर दे रहे हैं। वे मानने लगे हैं कि योग्यता विकास का मूल केन्द्र हृदय है। पहले बुद्धि फिर हृदय की योग्यता उच्चतम है, भारतीय सनातन विज्ञान में तो हृदय व आत्म स्तर की ही शक्ति बढ़ाने पर विशेष जोर दिया गया है। किसी भी समाज व संस्थान में कई तरह के व्यक्ति होते हैं, लेकिन तीन स्तर के व्यक्ति सामान्यत: मिल जायेंगे। एक पूर्ण बुद्धिजीवी होते हैं, जो केवल मस्तिष्क की बात करते हैं। एक भावुक इंसान, जो संवेदना वाली बाते करते हैं। एक वर्ग ऐसा है जो शरीर तक ही सीमित रहता है। पर एक व्यक्तित्व और है, जो मस्तिष्क एवं हृदय दोनों का एक साथ प्रयोग करके निर्णय लेता है। यह वर्ग भी समाज का विशेष धरोहर होता है। जटिल समस्याओं का समाधान इन्हीं से सम्भव बनता है।

बौद्धिक शक्ति
कुछ वे विशेष विशेष लोग भी हैं, जिनके पास बौद्धिक शक्ति आईक्यू , भावनात्मक शक्ति ई आई क्यू और साथ में व्यवहारिक एस ई क्यू तीनों होते हैं। ऐसे लोग निर्णय लेने व समस्या को समझने, उसका मानवीय हित में समाधान निकालने में सक्षम होते हैं। यद्यपि सम्बन्धों और व्यवहार की दुनिया में जिनका आई क्यू ठीक है वे ही बहुत सभ्य माने जाते हैं। बावजूद कोई बौद्धिक क्षमता से विकसित व्यक्ति अच्छी डिग्रियां जिसके पास हैं, वह दूसरों को अक्सर समझना बहुत कम चाहता है। अपनी ही बात सामने रखता है, उसे किसी की संवेदना से जैसे लेना-देना ही नहीं, वह किसी से काम लेना नहीं जानता, काम कराना नहीं आता, ऐसा व्यक्ति बस आदेश देना जानता है। ऐसे अधिकांश लोग अपने कार्यक्षेत्र में अब फेल होते देखे जाते हैं। दूसरी ओर कुछ लोगों के पास अच्छी डिग्री नहीं है, फिर भी व्यवहार में सबसे ज्यादा सफल हैं। ये स्तर के व्यक्ति होते हैं।
आत्मा में ही उच्चतम स्तर की योग्यता
यद्यपि समाज में वर्तमान में व्यक्तित्व नापने का डिग्री वाला पैमाना ही रखा गया है। ऊँची कक्षा पास कर ली, चीजों के बारे में जान लिया तो वह योग्य व्यक्ति मान लिया जाता है। कोरी डिग्रीधारी वाले ये व्यक्ति लोक व्यवहार की दुनिया में फेल होते देखे जा रहे हैं। इसीलिए अब वैज्ञानिक योग्यता के मापक बदलने पर जोर दे रहे हैं। वे मानने लगे हैं कि योग्यता विकास का मूल केन्द्र हृदय है। पहले बुद्धि फिर हृदय की योग्यता उच्चतम है, भारतीय सनातन विज्ञान में तो हृदय व आत्म स्तर की ही शक्ति बढ़ाने पर विशेष जोर दिया गया है। वैसे मनुष्य के पास आत्मा में ही उच्चतम् स्तर की योग्यता है। आत्मा वाली योग्यता के एक उदाहरण गांधी जी हैं, जो शरीर शक्ति में कमजोर इंसान, पर वे सारी दुनिया के सामने खड़े हुए और दुनिया को अपने पीछे चला सके। सुकरात को लें, जिसके विचारों से वहां की युवा पीढ़ी क्रांतिकारी बनी। सुकरात से घबराकर जब उन्हें मृत्यु दण्ड पर जहर पिलाया गया, तो आत्मा की योग्यता ही थी कि मृत्यु पर वे शांत रहे और कहा तुम मेरी शांति और आनन्द को नहीं छीन सकते। प्लेटो ने लिखा कि मैंने अपने गुरु सुकरात को देखा, वह व्यक्ति पूरी दुनिया का मनोबल बनाने और बढ़ाने के लिए दुनिया में आये, वह सबको जगाने आये। उन्होंने अपने मरण को भी अमृत बना दिया। वास्तव में इनके भी आई क्यू, ई आई क्यू व एस ई क्यू तीनों में अद्भुत समन्वय जो था।
आत्मिक शक्ति
खास बात कि आत्मिक बल से सम्पन्न लोगों के मुख से जो निकलता है, उसके पीछे आत्मिक शक्ति होती है। यह शक्ति अलग-अलग परिस्थिति में अलग-अलग रूप धारण करती और समाधान देने में सफल होती है। ईसा मसीह, स्वामी दयानन्द, रामकृष्ण परमहंस आदि भी इसी उच्च स्तर वाले थे। अंतिम समय में दयानन्द गांधी जी को मारा गया। पर उनके मुख से हे राम, हे राम के अतिरिक्त और कुछ नहीं निकला। उन्होंने अपने आक्रमणकारी की तरफ आंखें नहीं तरेरीं। वह ऐसी आत्मा थी, जो शांति में अपने सबसे ऊंचे स्थान पर पहुंची थी। ऐसी आत्मायें जो आत्मिक उच्च स्थान तक पहुंच जाती हैं, वे अपनी शक्ति में, अपनी शांति में, अपने आनंद में स्थित होकर जीती हैं, यही किसी समाज के असली व्यक्तित्व होते हैं। जिनके उपस्थिति मात्र से समाज सहज, सरल, सौम्य, मधुर, शान्त और सहिष्णु बन जाता है। हर समस्या के दौर में समाज ऐसे लोगों से समाधान की आशा करता है। आज के विश्व के लिए पुन: ऐसे व्यक्तियों की जरूरत है, जो आई क्यू, ई आई क्यू एवं एस आई क्यू के समुच्चय हों।