Mental journey to success: सफलता की मानसिक यात्रा

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मैं किशोर वय का था जब मुझे स्वर्गीय संत राम द्वारा अनूदित और विश्व प्रसिद्ध लेखक डेल कानेर्गी द्वारा लिखित पुस्तक हाउ टु मेक फ्रेंड्स एंड इन्फ्लुएंस पीपल का हिंदी अनुवाद लोकव्यवहार पढ़ने को मिली। मेरे जीवन पर इस पुस्तक का गहरा प्रभाव रहा है और मेरी सफलता में इस पुस्तक की शिक्षा का भी योगदानर हा है।
मेरे बड़े भाई राम कृष्ण खुराना ेमेरे पिताश्री के जीवन में घटी एक सच्ची घटना को बयान करते हुए एक कहानी लिखी और वह दैनिक हिंदुस्तान में छप गई तो वे लेखक बनगए। उनकी प्रेरणा से मुझे भी लेखक बनने का शौक चरार्या और मेरी कविताएं -कहानियां भी अखबारों में छपने लग गईं। उसके बाद संयोगवश हमें अंबाला छावनी स्थित कहानी लेखन विद्यालय के बारे में जानकारी मिली और फिर हमें विद्यालय के संस्थापक स्वर्गीय डा. महाराज कृष्ण जैन के दर्शनों का सौभाग्य मिला। डॉ. जैन ने भारतीय विश्व विद्यालयों से भी पहले पत्राचार पाठ्यक्रम के माध्यम से शिक्षा देना शुरू किया और भारत वर्ष में वे पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने कहानी, लेख आदि लिखना सिखाना शुरू किया। डॉ. जैन भी डेल कानेर्गी से खासे प्रभावित थे और वे अपने विद्यार्थियो ंको अक्सर लोक व्यवहार उपहार स्वरूप दिया करते थे। एकबार एक ग्रामीण अंचल से आये एक सज्जन ने भी जब कहानी लेखन महाविद्यालय से कहानी लिखना सीखना शुरू किया तो वे डॉ. जैन से मिलने आये और डॉ. जैन ने उन्हें भी लोक व्यवहार उपहारस्वरूप दी। कुछ माह बाद जब वे दोबारा डॉ. जैन से मिलने आए तो डॉ. जैन ने उत्सुकता वश उन से पूछा कि उन्होंने लोकव्यवहार पढ़ी या नहीं तो उन सज्जन का जवाब सुनकर मैं चकरा गया। उन्होंने बहुत सहजता से कहा कि यह किताब तो चालाकियों से भरी हुई है। उस समय मैं उनकी बात का मतलब समझ तो पाया पर उसने मेरी विचारधारा में कोई परिवर्तन नहीं किया।
समय बीता और मुझे कई और किताबें पढ़ने और उनसे सीखने का मौका मिला। जापानी मूल के अमेरिकी लेखक राबर्ट कियोसाकी की पुस्तकों रिच डैड, पुअर डैड, कैशफ्लो क्वाड्रैंट और हम आपको अमीर क्यों बनाना चाहते हैं? ने मेरी सोच को एक नई दिशा दी। संपन्न और आरामदायक जीवन जीते हुए राबर्ट कियोसाकी जब मोटे हो गए तो उन्होंने अपनी मानसिकता बदली और शीघ्र ही उन्होंने वजन घटा लिया। उनके मित्रों और प्रशंसकों न ेजब उनसे पूछा कि वजन घटाने के लिए उन्होंने क्या किया, यानी किस तरह की डाइटिंग की, किस तरह के व्यायाम किए तो उन्हों ने जवाब दिया कि हमें यह समझना चाहिए कि परिवर्तन दिमाग से शुरू होते हैं, या यूं कहें कि दिमाग में शुरू होते हैं। जब मैं मोटा हो गया था और मैंने अपना वजन घटाने का निश्चय कर लिया तो मैं जानता था कि मुझे अपन ेविचार बदलने थे और सेहत के बारे में खुद को दोबारा शिक्षित करना था। इसलिए मैंने जो किया वह उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना यह कि मैंने अपनी सोच को बदला। यही कारण था कि मैं न केवल वजन घटा सका, बल्कि उसे दोबारा बढ़ने से भी रोक सका। करने और होने के अंतर का यह बेहतरीन उदाहरण था कि खान- पान बदलने और व्यायाम शुरू करने से पहले राबर्ट कियोसाकी ने अपनी सोच को बदला।
राबर्ट कियोसाकी के इस अनुभव का जिक्र मैंने बहुत वर्ष पहले भी किया था लेकिन कहानी लेखन महाविद्यालय में उस ग्रामीण सज्जन द्वारा डेलकानेर्गी की पुस्तक को चालाकियों से भरी हुई बताने और लेखों में राबर्ट कियोसाकी का उदाहरण देने के बावजूद मैं खुद करने औरहोने के अंतर को अपने जीवन में नहीं उतार पाया था। कुछ समय पूर्व जब मैं एक कार्यशाला में था तो एक चमत्कार की तरह करने और होने के अंतर मुझे न केवल पूरी तरह से समझ में आया बल्कि मेरी सोच बदली और अब यह मेरे जीवन में उतर गया है। अब मैं जानता हूं डेलकानेर्गी क्या कहना चाहते थे और हम उसे कैसे परिभाषित कर रहे हैं तथा राबर्ट कियोसाकी ने एक साधारण से उदाहरण से हमें क्या समझाना चाहा था। अब फ्लाई अनलिमिटेड वर्ल्ड वाइड परिवर्तन की मानसिक यात्रा पर ले चलने वाला ऐसा मंच है जो हमें करने और होने का अंतर समझाने के काम में जुटा है। आइये, इसपर जरा बारीकी से गौर करते हैं।
यदि हमें किसी व्यक्ति से कोई काम लेना हो तो हम बहाने ढूंढ़- ढूंढ़ कर उसकी प्रशंसा करते हैं, दरअसल वह प्रशंसा नहीं होती बल्कि वह चापलूसी है क्यों कि हम स्वार्थवश ऐसा कर रहे हैं। सामने वाला वह व्यक्ति हमें अच्छा लगे या न लगे, हम उसकी बड़ाई इसलिए करतेहैं क्योंकि हमें उससे अपना कोई काम निकलवाना है। यह हो सकता है कि जब हम उसकी प्रशंसा कर रहे हों तो हमारे मन में उसके प्रति द्वेष हो और असल में हम उससे नाराज हों, लेकिन अपने स्वार्थ की खातिर हम अपनी नाराजगी छुपाते हैं और झूठ-मूठ में उसकी प्रशंसा भी करते हैं, यह काम सिर्फ करने का उदाहरण है। जब हम अनमने मन से कोई अच्छा काम करें तो वह सिफ करना है, होना नहीं है। जब हम अपनी मानसिकता बदललेते हैं और जब हम लोगों को उसी रूप में स्वीकार करना आरंभ कर देते हैं और उनसे प्रेम करने की भावना विकसित कर लेते हैं, तो हमने अपनी सोच को बदला और हम एक बेहतर इंसान बन गये। यह सिर्फ करना नहीं है, होना है, यह परिवर्तन है और स्थाई है।
आज विज्ञान यह स्वीकार कर चुका है कि करने और होने का यह अंतर हमारा जीवन बदल सकता है। जब हमारी सोच बदलती है तो हम सफलता के नये सोपान तय करते हैं। आज हमें फ्लाई अनलिमिटेड वर्ल्डवाइड के एचएचपीपी फामूर्ले को समझने की आवश्यकता है जो हमें हैल्दी, हैपी, पीसफुल और प्रासपेरस, यानी, स्वस्थ, खुश, शांत और समृद्ध होने की राह दिखाता है, वरना यह भी जाना-माना सच है कि बहुत से अमीर लोग, सफल दिखने वाले लोग भी अपने जीवन में इतने परेशान होते हैं कि आत्महत्या तक का खतरनाक कदम उठा लेते हैं, और दुनिया को तब पता चलता है कि सफल दिखने वाला व्यक्ति असल में खुद कितना दुखी था। आज हम सबको स्वस्थ, खुश, शांत और समृद्ध बनने के एचएचपीपी फामूले पर अमल करने की आवश्यकता है। आमीन।

पीके खुराना