आज समाज डिजिटल, अंबाला:
Meeting Of Shiva-Parvati Is Shivratri: भारतवर्ष में को देवताओं की जन्मभूमि कहा जाता है। ग्रंथों व पुराणों में भगवान के अवतार, ऋषि-मुनि भी इसी पवित्र भूमि पर जन्म लेकर हमेशा इसकी स्वर्ण गाथा गाता रहा। भारत वर्ष के लिए अन्य देशों में भी महाशिवरात्रि का पावन पर्व धूमधाम व हर्षोल्लास से मनाया जाता है। भगवान शिव सबसे भोले भाले व गुस्से वाला देव माना जाता है, लेकिन जिस तरह से नारियल बाहर से सख्त और अंदर से बेहद कोमल होता है। भगवान शिवजी थोड़ी सी भक्ति से बहुत प्रसन्न हो जाते हैं, इसी कारण शिव सुर और असुर दोनों के लिए समान रूप से वन्दनीय हैं।
शिव का अर्थ है कल्याण, शिव सबका कल्याण करने वाले हैं। महाशिवरात्रि शिव की प्रिय तिथि है शिवरात्रि शिव और शक्ति के मिलन का महापर्व है। शिवरात्रि पर्व फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को मनाया जाता है। शिव पुराण के अनुसार सृष्टि के प्रारंभ में इसी दिन मध्यरात्रि भगवान शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था।
शिवपुराण में शिवजी के निष्कल (निराकार) स्वरूप का प्रतीक इसी पावन तिथि में प्रकट होकर ा्रह्मा और विष्णु द्वारा पूजित हुए थे। इसी कारण यह तिथि महाशिवरात्रि के नाम से विख्यात हो गई। इस दिन मां पार्वती और शिवजी की शादी के रूप में भी पूजा करके मनाया जाता है। माना जाता है जो भक्त शिवरात्रि को दिन-रात निराहार एवं सामर्थ्य द्वारा शिव-पूजन करने का संपूर्ण फल मात्र शिवरात्रि को तत्काल प्राप्त कर लेता है।
महाशिवरात्रि के दिन व्रत धारण करने वाले व्यक्ति द्वारा मंदिरों में जाकर मिट्टी के बर्तन में पानी भरकर, ऊपर से बेलपत्र, आक-धतूरे के पुष्प, चावल आदि डालकर शिवलिंग पर चढ़ाया जाता है। इस दिन भगवान शिव की शादी भी हुई थी, इसलिए रात्रि में शिवजी की बारात निकाली जाती है। रात में पूजन कर फलाहार किया जाता है. अगले दिन सवेरे जौ, तिल, खीर और बेलपत्र का हवन करके व्रत किया जाता है।
प्राचीन कैलाश मंदिर हाथी खाना की स्थापना सन 1844 ब्रिटिश काल में हुई थी। हाथीखाना मंदिर के शिवलालय में पूजा अर्चना करने के लिए दिल्ली, पंजाब, राजस्थान, हिमाचल, उत्तराखंड और उत्तरप्रदेश के कोने से भक्त पहुंचते हैं। मंदिर में दूरदराज क्षेत्रों से आए श्रद्धालु मत्था टेक कर आशीर्वाद प्राप्त करते है। इस मंदिर की मान्यता है कि सावन मास व महाशिवरात्रि पर विधि विधान से शिवलिंग पर जलाभिषेक करता है कर मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। सावन व फाल्गुन माह में कांवड़िये गंगोत्री और हरिद्वार से गंगाजल लाकर शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं। कोरोना जैसी महामारी को देखते हुए कांवड़ियों के जल भरने पर पाबंदी है। मंदिर परिसर में स्थापित नंदी व भगवान अर्धनारीश्वर के अलावा सभी देवी देवताओं की प्रतिमा स्थापित की गई है।
सेना क्षेत्र के अतंर्गत आने वाले रानी तालाब मंदिर बनाया गया था। 400 साल पहले छछरौली के राजा रणजीत सिंह का राज होता था। यह रियासत महाराजा पटियाला के अधीन होती थी। राजा रणजीत सिंह की पत्नी के शाही स्नान का स्थान होने से ही इस जगह का नाम ‘रानी का तालाब’ पड़ा था। रानी स्नान के बाद प्रतिदिन यहां बने शिव मंदिर में पूजा के लिए आया करती थी। इस प्राचीन मंदिर की देखरेख 1999 से सेना के सुपर्द कर दी गई थी। अब सेना का पुरोहित ही यहां पूजा पाठ आदि कार्य करता है। 1999 से पूर्व इस मंदिर की देखरेख साधू संत किया करते थे। यह मंदिर अब सेना की 77 आर्म्ड वर्कशाप की देखरेख में चल रहा है।
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