जीवन सांप-सीढ़ी का खेल है। कभी हम जीतते हैं तो कभी हमारी सारी सावधानियों और सारे प्रयत्नों के बावजूद कोई और बाजी मार ले जाता है। हम हमेशा ही जीतते या हारते नहीं रह सकते। ऐसे में अपनी हर हार पर यदि हम असंतुष्ट हो जाएं, खुद को गलत मान लें, साथियों अथवा परिवार के सदस्यों की नुक्ताचीनी करने लगें, तो हम हार के दुख से तो दुखी होंगे ही, उसके अलावा आपस में बहस बढ़ाकर हम कई नये दुखों को भी आमंत्रित करेंगे। असंतोष और असंतोष से उपजी चिंता हमें घुन की तरह खाती है अत: यह आवश्यक है कि दुखी होने के बजाए हम अपनी हार के कारणों का विश्लेषण करें और यह देखें कि उस हार को जीत में बदलने के लिए हम क्या कर सकते हैं या फिर उस हार से हुए नुकसान को कम करने के लिए क्या कर सकते हैं। जीवन के उतार-चढ़ाव जीवन की सच्चाइयां हैं। उन्हें समझने, उनका विश्लेषण करने, नई स्थितियों के अनुसार नई दिनचर्या तय करने में ही समझदारी है। इसमें कठिनाई तो होगी ही, जो अभाव बना है वह खलेगा भी, पर चूंकि उसे भरने का और कोई चारा नहीं है इसलिए हमें उस अभाव के साथ ही जीना सीखना होगा। यही जीवन का सच है। इसी तरह कभी हमारे साथ कोई अन्याय हो जाता है या हमसे कोई भूल हो जाती है तो जीवन के उन कमजोर क्षणों में धीरज रखकर कुछ समय गुजर जाने देना सदैव श्रेयष्कर होता है। कुछ समय के बाद जब मन निर्मल हो जाए, अपमान की चोट या अपराध बोध कुछ कम हो जाए तो यह सोचना चाहिए कि जीवन को संवारने के लिए अब क्या किया जाए। अपने साथ अन्याय होने पर खुद को कमजोर और असहाय मान लेना गलत है। अपमान में जलते रहकर मन पर बोझ डाले रखने से कुछ नहीं होता। इसके बजाए खुद को शक्तिशाली बनाकर योजनाबद्ध तरीके से अन्याय का प्रतिकार करना ही एकमात्र उपाय है। यदि भूलवश कुछ कदाचार हो जाए तो अपराध बोध से भरकर पछताने के बजाए उस कदाचार को भुलाकर जीवन में सदाचार उतार लेना ही सही हल है। एक भूल से सीख लेकर किसी दूसरी भूल से दूर रहने में ही बुद्धिमानी है। हम हमेशा से यह पाठ पढ़ते आये हैं कि लालच बुरी बला है। कई बार हमारी महत्वाकांक्षा लालच में बदल जाती है। महत्वाकांक्षी होना गलत नहीं है, किसी भी चीज की अति होना गलत है। जब हम महत्वाकांक्षी हों और इस हद तक चले जाएं कि सारी संवेदनाएं, रिश्ते-नाते, दोस्तियां आदि भूल जाएं और सिर्फ अपनी स्वार्थ सिद्धि में लग जाएं तो हो सकता है कि कुछ देर के लिए हम सफल हो जाएं, ज्यादा लाभ कमा लें, लेकिन उससे कई महत्वपूर्ण रिश्ते टूट जाएंगे, शुभचिंतक साथ छोड़ देंगे और दूरगामी लाभ से वंचित हो जाएंगे क्योंकि तब हमारे साथियों में हमारी छवि ऐसी बन जाएगी कि अपने स्वार्थ के लिए हम किसी भी हद तक जा सकते हैं। ऐसे में हर रिश्ता सिर्फ स्वार्थ और जरूरत पर आधारित होगा और वह लंबे समय तक नहीं चलेगा। हमारी आयु समय से मापी जाती है। हमारा जीवन एक-एक क्षण जोड़कर बनता है। समय की बबार्दी जीवन की बबार्दी है। गुजरा समय वापिस नहीं आ सकता। इसलिए उन्हीं कामों की ओर ध्यान दें जिन्हें करना आवश्यक है, लाभदायक है और सबके लिए मंगलकारी है। आडंबर, चिंता और लालच से बचना इसीलिए आवश्यक है। इसी में जीवन की सफलता और सार्थकता है।
[(लेखक मोटिवेशनल एक्सपर्ट हैं। यह इनके निजी विचार है।)]
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