घाटी में पूर्व मुख्यमंत्रियों उमर अब्दुल्ला, फारुख अब्दुल्ला, महबूबा मुफ़्ती के अलावा सज्जाद लोन, शाह फैसल के अलावा कई नेता और पूर्व विधायक भी नजरबंद हैं। वैसे सरकार की ओर से दावे किए जा रहे हैं कि जम्मू-कश्मीर के हालात सामान्य हैं, लेकिन ये दावे संदिग्ध ही प्रतीत हो रहे हैं।
जानकारों का कहना है कि सुरक्षा बलों के एक आतंरिक दस्तावेज से हैरान करने वाली जानकारी सामने आई है। दस्तावेज से पता चला है कि कश्मीर में पिछले दो महीने में पत्थरबाजी की 306 घटनाएं हुई हैं। इस दस्तावेज से यह भी पता चला है कि पत्थरबाजी की घटनाओं में सुरक्षा बलों के लगभग 100 जवान भी घायल हुए हैं। घायल हुए जवानों में सेंट्रल पैरामिलिट्री फोर्स के 89 जवान शामिल हैं। हालांकि जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने कहा है कि पथराव की छिटपुट घटनाओं को छोड़कर कश्मीर घाटी में माहौल शांतिपूर्ण रहा है और 2016 में बुरहान वानी की मौत के बाद जैसा माहौल था, वैसा इस बार नहीं है और उससे कहीं कम विरोध प्रदर्शन हुए हैं। लेकिन यह दस्तावेज इसे गलत साबित करता है। केंद्र सरकार ने 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटा दिया था और जम्मू-कश्मीर को दो राज्यों में बांट दिया था। तभी से वहां कई तरह की पाबंदियां लागू हैं। कश्मीर में इतने दिनों के बाद भी हालात सामान्य नहीं हो सके हैं। सभी हिस्सों में मोबाइल फोन नहीं हैं और इस वजह से लोगों को खासी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, राज्यपाल की ओर से घाटी में पर्यटकों की आवाजाही को खोलने के आदेश के बाद भी कोई पर्यटक यहां नहीं आया है। इसके अलावा बीडीसी चुनावों को लेकर भी राजनीतिक दलों के बीच कोई उत्साह नहीं है और बीजेपी को छोड़कर बाकी सभी राजनीतिक दलों ने घोषणा की है कि वे इस चुनाव में हिस्सा नहीं लेंगे। एक अंग्रेजी अखबार के मुताबिक, कश्मीर में तैनात अफसरों का कहना है कि केंद्र सरकार यह सोचती है कि इतने दिनों में कश्मीर में कोई बड़ी घटना नहीं हुई है और इसका मतलब हालात सामान्य हैं, लेकिन यह धारणा पूरी तरह गलत है। कुछ पुलिस अफसरों का कहना है कि घाटी में कई जगहों पर स्थानीय लोग अपनी दुकानों को खोलने के लिए तैयार नहीं हैं। जानकार बताते हैं कि अगर कश्मीर में लाशें नहीं मिल रही हैं तो इसका मतलब यह नहीं है कि हालात सामान्य हो गए हैं। उन्होंने यह भी कहा था कि हालात सामान्य होने का दावा करना पूरी तरह हकीकत से परे है। इससे पहले भी यह खबर आई थी कि लोग अनुच्छेद 370 को हटाये जाने से नाराज हैं और वे अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज रहे हैं। घाटी में लोग अपनी दुकानों को भी खोलने के लिए तैयार नहीं हैं।
आपको बता दें कि केंद्र ने अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले से पहले राज्य में बड़ी संख्या में जवानों को तैनात कर दिया था। इसके बाद राज्य के पूर्व मुख्यमंत्रियों फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ़्ती को हिरासत में ले लिया था और अभी तक ये तीनों प्रमुख नेता हिरासत में हैं। इस बीच, देश भर से केंद्र सरकार को कश्मीर को लेकर लोग खत लिख रहे हैं। देश के 284 प्रबुद्ध नागरिकों के एक समूह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को खत लिख कर कहा है कि कश्मीर की स्थिति अस्वीकार्य है। खत पर दस्तखत करने वालों में पत्रकार, अकादमिक जगत के लोग, राजनेता और समाज के दूसरे वर्गों के लोग भी शामिल हैं। खत में केरल हाई कोर्ट के उस फैसले का भी हवाला दिया गया है, जिसमें इंटरनेट को मौलिक अधिकार माना गया है। कश्मीरियों के साथ लगातार हो रही सख़्ती पर अब भारतीय तकनीकी संस्थान (आईआईटी) के 132 शिक्षकों, पूर्व छात्रों ने सरकार को खत लिखा है। खत में कहा गया है कि कश्मीरियों के साथ हो रही ‘क्रूरता’ खत्म हो। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, पिछले दो महीनों में सुरक्षा बलों ने पांच एनकाउंटर किये हैं जिनमें दो सुरक्षा कर्मियों को अपनी जान गंवानी पड़ी है और नौ घायल हुए हैं। स्पेशल पुलिस अफसर बिलाल अहमद की 21 अगस्त को एक आॅपरेशन के दौरान मौत हो गई थी। इन एनकाउंटर में 10 उग्रवादियों को भी मौत के घाट उतारा गया है। इसके अलावा दो बार सुरक्षा बलों पर ग्रेनेड फेंके जाने की और सुरक्षा बलों से हथियार लूटे जाने की घटनाएं हुई हैं।
केंद्र सरकार का यह भी दावा है कि घाटी में एक भी गोली नहीं चली है और न ही किसी एक व्यक्ति की इससे मौत हुई है लेकिन 11वीं कक्षा के एक छात्र असरार अहमद खान के परिजनों ने कहा है कि असरार पैलेट गन की गोलियों से घायल हुआ था और इसी वजह से 4 सितंबर को उसकी मौत हो गई थी। जबकि सेना ने इससे इनकार किया था और कहा था कि वह पत्थरबाजी की घटना के दौरान मारा गया था। कुछ ही दिन पहले एक अंग्रेजी अखबार ने खबर दी थी कि संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के भाषण के बाद कश्मीर में 24 घंटे के भीतर कुल 23 जगहों पर प्रदर्शन हुए थे। इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने जमकर नारेबाजी भी की थी। प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े। ये प्रदर्शन बाटापोरा, लाल बाजार, सौरा, चानापोरा, बाग-ए-मेहताब और कई दूसरी जगहों पर हुए। एक पुलिस अफसर ने बताया था कि कई प्रदशर्नकारी मस्जिदों में घुस गए और उन्होंने वहां से भारत के विरोध में नारेबाजी की और धार्मिक गाने बजाये। आॅल-वुमन फैक्ट-फाइंडिंग नाम की टीम ने हाल ही में कश्मीर की स्थिति का जायजा लिया था और राज्य के अलग-अलग हिस्सों में जाकर लोगों से मिलकर एक रिपोर्ट तैयार की थी। रिपोर्ट के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर में जिÞंदगी खौफ और पाबंदी में कैद है।
बहरहाल, सबके बावजूद जम्मू-कश्मीर में बीडीसी का चुनाव होने वाला है। भाजपा को छोड़कर तकरीबन सभी दलों के प्रमुख नेता नजरबंद हैं। इस स्थिति में इस चुनाव के मायनों पर सवाल खड़ हो रहा है। अब देखना है कि लोकतांत्रिक प्रणाली को सुदृढ़ बनाए रखने के लिए शासन-प्रशासन की ओर से क्या कदम उठाया जाता है।