नारायण सेवा संस्थान का दिव्यांग और सामूहिक विवाह Mass Marriage Of Narayan Seva Sansthan

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Mass Marriage Of Narayan Seva Sansthan
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आज समाज डिजिटल, उदयपुर:
Mass Marriage Of Narayan Seva Sansthan: नारायण सेवा संस्थान के नि:शुल्क दिव्यांग और निर्धन युवक-युवती सामूहिक विवाह समारोह के दूसरे दिन रविवार को लियो का गुड़ा स्थित संस्थान के सेवा महातीर्थ में 21 जोड़ों ने फेरे लिए। मुख्य अतिथि पूर्व राज परिवार के सदस्य लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ थे। संस्थान संस्थापक पद्मश्री कैलाश मानव, कमला देवी अग्रवाल, अध्यक्ष प्रशान्त अग्रवाल, वंदना अग्रवाल और विशिष्ट अतिथियों संजय भाई दया-दक्षिणी अफ्रीका, सोहनलाल-एकता चढ्ढा और भरत सोलंकी-यूएसए की ओर से गणपति पूजन के साथ विवाह की पारम्परिक विधियां शुरू हुई।

खुशी देता है सेवा भाव से किया काम Mass Marriage Of Narayan Seva Sansthan

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मुख्य अतिथि लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ ने कहा कि सेवाभाव से किया काम खुशी देता है। यह भारतीय समाज की शुरू से विशेषता भी रही है। मेवाड़ तो हमेशा इस दिशा में आदर्श रहा है। उन्होंने कहा मेवाड़ इतिहास, संस्कृति और पर्यटन की वजह से दुनियाभर में पहचान रखता है। नारायण सेवा ने इस पहचान को और व्यापकता दी है। कैलाश मानव ने कहा कि जिन दिव्यांग भाई-बहनों ने अपनी नि:शक्तता को दुर्भाग्य मानते हुए अपनी गृहस्थी बसने की कभी कल्पना न की होगी, आज समाज के सहयोग और भव्यता से उनकी यह साध पूरी हो रही है।

सपना साकार होने पर खुशी अकल्पनीय: प्रशांत Mass Marriage Of Narayan Seva Sansthan

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संस्थान अध्यक्ष प्रशांत अग्रवाल ने कहा कि सपने देखना किसे अच्छा नहीं लगता और जब कोई अकल्पनीय सपना साकार हो उठता है तो उसकी खुशी को बयां करना भी आसान नहीं होता। ऐसे ही पलों को समेटे इस विशाल प्रांगण में 21 दिव्यांग जोड़ों ने जिंदगी की नई शुरुआत की है। ये जोड़े राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश सहित विभिन्न राज्यों के हैं। उन्होंने बताया कि पिछले 36 विवाहों में 2130 जोड़े अपना घर-संसार बसाकर खुश हैं। इन जोड़ों में कोई पांव से तो कोई हाथ से दिव्यांग है। किसी जोड़े में एक विकलांग है तो साथी सकलांग है। ऐेसा जोड़ा भी है जो दृष्टिहीन है।

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एक जोड़ा ऐसा भी: ज्योति बने संगीत के सुर Mass Marriage Of Narayan Seva Sansthan

दिव्यांगों के चेहरों पर मुस्कान सजाने वाले सामूहिक विवाह में गरीब परिवार का एक जोड़ा नेत्रहीन भी था। नीमच निवासी मोहन कोई काम सीखने की ललक लेकर दो वर्ष पूर्व जोधपुर गया था। वहां अंध विद्यालय में उसने दृष्टिहीन संगीत प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। अपनी प्रस्तुति से पहले पूजा के सुरों को सुन… उसके माधुर्य का कायल हो गया। पूजा को भी मोहन का गीत भा गया। प्रतियोगिता के बाद दोनों ही पहली मुलाकात में एक-दूसरे की ओर आकर्षित हो गए और परस्पर चाहने लगे। अपने-अपने घर लौटने के बाद घंटों मोबाइल पर भी बात होने लगी। दोनों के बीच जीवन का हमसफर होने की सहमति बनी और परिजनों को अपने निर्णय की जानकारी दी। परिवार की गरीबी विवाह के आयोजन में असमर्थ थे। कुछ ही माह पूर्व इन्होंने नारायण सेवा संस्थान से सम्पर्क किया।

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