यमुनानगर : इन्कलाब मंदिर में शहीद राजगुरु का जन्मदिन मनाया

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प्रभजीत सिंह लक्की, यमुनानगर :
इन्कलाब मन्दिर में मंगलवार को क्रांतिकारी शहीद राजगुरु का जन्मदिन मनाया गया। इन्कलाब मन्दिर के संस्थापक एडवोकेट वरयाम सिंह ने कहा कि वीर क्रांतिकारी राजगुरू का जन्म 24 अगस्त 1908 में हुआ था। वाराणसी में पढाई के दौरान इनका संपर्क चंद्रशेखर आजाद से हुआ। वे आज़ाद से मिलकर इतने प्रभावित हुए कि इनको अपने दल में मिला लिया और खुद ही निशानेबाजी सिखाई। सांडर्स का वध करने में इन्होंने भगत सिंह तथा सुखदेव का पूरा साथ ही नहीं  दिया था, बल्कि पहली गोली भी उन्होंने ही मारी थी। जबकि चन्द्रशेखर आज़ाद ने छाया की भाँति इन तीनों को सामरिक सुरक्षा प्रदान की थी। इनके मन में कोई भी खतरे का काम करने के लिए उतावलापन रहता था। सांडर्स को मारने के बाद वे महाराष्ट्र आ गये। संघ के संस्थापक डा. हेडगेवार ने अपने एक कार्यकर्ता के फार्म हाउस पर उनके रहने की व्यवस्था की। जब दिल्ली की असेम्बली में बम फेंकने का निश्चय हुआ, तो राजगुरु ने चंद्रशेखर आजाद से आग्रह किया कि भगतसिंह के साथ उसे भेजा जाए, पर उन्हें इसकी अनुमति नहीं मिली। इससे वे वापस पुणे आ गये। राजगुरु स्वभाव से कुछ वाचाल थे। पुणे में उन्होंने कई लोगों से सांडर्स वध की चर्चा कर दी। उनके पास कुछ शस्त्र भी थे। क्रांति समर्थक एक सम्पादक की शव यात्रा में उन्होंने उत्साह में आकर कुछ नारे भी लगा दिये। इससे वे गुप्तचरों की निगाह में आ गये। पुणे में उन्होंने एक अंग्रेज अधिकारी को मारने का प्रयास किया; पर दूरी के कारण सफलता नहीं मिली।इसके अगले ही दिन उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया तथा सांडर्स वध का मुकदमा चलाकर मृत्यु दंड घोषित किया गया। 23 मार्च, 1931 को भगत सिंह और सुखदेव के साथ वे भी फांसी पर चढ़ गये। मरते हुए उन्हें यह संतोष रहा कि बलिदान प्रतिस्पर्धा में वे भगतसिंह से पीछे नहीं रहे। फांसी  के तख्ते पर झूल कर अपने नाम को हिंदुस्तान के अमर शहीदों की सूची में अहमियत के साथ दर्ज करा दिया।