कानून सरगनिसेनी है। फैसला न्याय को नहीं बताता। प्रशासन नामक शब्द नागरिकों की मुश्कें कसता है। उसका अर्थ है सेवा, लेकिन नहीं करता। लोकसेवक विनम्र लगता है लेकिन दबंग होता है। जनता को परलोक तक भेज देता है। लोकसेवक का अर्थ साहब हो गया है। जांच नामक शब्द लोकप्रिय है। केदारघाटी का भयानक हादसा, सुभाषचंद्र बोस की संदिग्ध मृत्यु, बिलासपुर के पेंडारी में सरकारी नसबंदी शिविर में चौदह गरीब महिलाओं की मौत, बस्तर के सुकमा के निकट चौदह सुरक्षाकर्मियों को नक्सलियों द्वारा गोलियों से भून दिया जाना और कांग्रेस के महत्वपूर्ण नेताओं की नक्सलियों द्वारा हत्या की जांच घोषित हुई। काला धन, कोलगेट, टू जी स्पेक्ट्रम वगैरह मामलों की जांच हुई। निकला कुछ नहीं। जांच का सरकारी अर्थ है जनता मुंह बंद करे। जनता बोलेगी तो उसकी आवाज की नसबंदी कर दी जाएगी।
गिरफ्तारी नामक शब्द पुलिस तक को चिढ़ा रहा है। नेताओं के लिए लेकिन गिरफ्तारी शगल है। नेता पुलिस अधिकारी से ठिठोली करते साथ साथ चाय पीते हैं। फिर खुद गिरफ्तारी देते हैं। मानो पुलिस को भीख दे रहे हों। जेल पहुंचने के पहले छोड़ दिए जाते हैं। पुलिस निजी बस आपरेटरों से जबरिया ली गई बसों में उन्हें बिठा देती है। यह तफरीह है या गिरफ्तारी। माफी नामक शब्द विनयशील था। माफी मांगते चेहरे पर हवाइयां उड़ती थीं। लोग माफी मांगकर समाज के सामने शर्मसार होते रहते थे। अब माफी मांगना जनता को लाठी मारना है। साध्वी कहलाती असभ्य मंत्री ने अश्लील और उत्तेजक भाषा में अपराध किया। पार्टी के कहने पर माफी मांगने का अभिनय करते कहा खेद प्रकट करती हूं। चेहरा फिर भी आत्मविश्वास से दमदमाता रहा। नेता पहले कहते हैं मेरे कहने का ऐसा आशय नहीं था। फिर भी किसी को ठेस पहुंची हो तो माफी मांगता हूं।
नौकरशाह शब्द अद्भुत है। जनता का नौकर है लेकिन होता जनता का शाह है। ये शाह मूंछों पर ताव देते जनता के पैसे की डकैती करते अरबपति हो जाते हैं। नौकरशाह विदेशी बैंकों में काला धन जमा करते हैं। अपनी अज्ञात कमाई से होटल, कारखाने, सिनेमाघर, रहायशी कॉलोनियां वगैरह बनवाते हैं। सेवा नियमों की धज्जियां उड़ाते कई शादियां भी करते हैं। मंत्री माननीय कहलाते हैं जबकि करम तो ऐसे हैं कि होते नहीं हैं। विकास नामक शब्द सबका बाप निकला। प्रधानमंत्री नारा लगाते हैं, सबका साथ, सबका विकास। सबका शब्द का अर्थ है। वे करोड़ों हैं जिन्हें साथ देना है। दूसरे वे सैकड़ों हैं जिनका विकास होना है। पहले वाले सब में जनता, किसान और आदिवासी हैं। जमीनें छिन जाने पर भी चुप रहना है। मजदूर हैं। नौकरी से निकाले जाने पर भी हायतौबा नहीं मचानी है। विद्यार्थी हैं। मां के गहने और पिता के प्रॉविडेंट फंड की मदद से निजी संस्थाओं में दाखिला लेते हैं। युवतियां हैं। बलात्कार होने पर भी उन्हें खाप पंचायतों के हुक्म से बलात्कारी से विवाह करना है। अंबानी, अदानी, पुलिस, राजनेता, लुटेरे, साधुओं, नौकरशाह, क्रिकेट खिलाड़ी, फिल्म अभिनेता, डकैत वगैरह सैकड़ों का यदि सबको साथ नहीं मिलेगा तो करोड़ों का विकास कैसे होगा। शहीद नामक शब्द मर रहा है। देशभक्त पहले मरते। उन्हें शहीद कहकर लोग कंधों पर लादते। देश के लिए बलिवेदी पर चढ़ने वाले को जवानों को शहीद कहकर उनके कपड़े, बेल्ट, टोपी, तमगे, जूते कुत्तों से चटवाए जाते हैं। कचरा ढोने वाली मोटरों में उनकी लाशों का पार्सल बनाकर परिवारों को भेजा जाता है। नाक नामक शब्द की आजादी के बाद मौत हो गई है। कुछ वर्ष पहले नेता, नौकरशाह, नगरसेठ खतरनाक कहलाते थे। हाल के वर्षों में उन्होंने अपने हाथों अपनी नाक काट ली है। अब वे केवल खतर रह गए हैं। ईमानदारी, त्याग, सदाचार, चरित्र, नैतिकता वगैरह उनके साथ मर गए हैं। नाक पंचक में जो कटी थी।
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