पू र्णिमा हिन्दू महीने का आखिरी दिन होता है, जिसको धार्मिक रूप से बहुत खास माना जाता है। हिंदू परंपराओं के अनुसार, पूर्णिमा तिथि को मांगलिक कार्य करना बेहद शुभ होता है और ऐसा करने से उस कार्य का शुभ फल प्राप्त होता है। मार्गशीर्ष माह का आखिरी दिन मार्गशीर्ष पूर्णिमा होता है। इस पूर्णिमा को दत्तात्रेय जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। दत्तात्रेय को भगवान विष्णु का अंश माना जाता है जिन्होंने अत्री ऋषि की पत्नी देवी अनुसूया की कोख से जन्म लिया।
सतयुग का आरंभ इस दिन हुआ
मार्गशीर्ष पूर्णिमा को बहुत खास माना जाता है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान और दान का बहुत खास महत्व होता है। जिस प्रकार कार्तिक, माघ, वैशाख आदि महीनों में गंगा स्नान शुभ माना जाता है उसी प्रकार मार्गशीर्ष में भी गंगा स्नान से विशेष फल प्राप्त होता है। इस दिन भगवान श्री सत्यनारायण की पूजा और कथा करना शुभ फलदायी होता है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा को बत्तीसी पूनम भी कहा जाता है। इस दिन घर में हवन करना भी बहुत शुभ होता है। इस वर्ष 12 दिसंबर गुरुवार को मार्गशीर्ष पूर्णिमा व्रत किया जाएगा। धार्मिक मान्यता के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा की तरह मार्गशीर्ष पूर्णिमा का भी विशेष महत्व होता है। इस दिन कई स्थानों पर श्रद्घालु आस्था की डुबकी पवित्र नदियों, सरोवर में लगाते है। कहते हैं मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन स्नान-दान से अमोघ फल प्राप्त होता है। भगवान श्री कृष्ण के अनुसार, इस माह प्रतिदिन स्नान-दान पूजा पाठ करने से पापों का नाश होता है और व्रत करने वाले की सारी मनोकामनायें पूर्ण होती हैं। सनातन धर्म में मानते हैं कि सतयुग का प्रारम्भ देवताओ ने मार्गशीर्ष मास की प्रथम तिथि को ही किया था। इस कारण भी यह धर्म के लिए अति पावन महीना माना जाता है। शास्त्रों में बताया गया है कि मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन दान करने से बत्तीस गुना फल प्राप्त होता है। अत: मार्गशीर्ष पूर्णिमा को बत्तीसी पूर्णिमा या बतीसी पूनम भी कहा जाता है।
पूजा विधान
मार्गशीर्ष पूर्णिमा को सबसे पहले नित्य पूजा से निवृत्त होकर नियम पूर्वक पवित्र होकर स्नान करें और सफेद कपड़े पहनें। अब आसन ग्रहण करने के बाद व्रत रखने वाला व्यक्ति ओम नमो नारायणा कहकर भगवान का आवाहन करे। तब गंध, पुष्प आदि भगवान को अर्पण करें। तत्पश्चात भगवान के सामने हवन करने के लिए अग्नि प्रज्जवलित करें और उसमें तेल, घी, बूरा आदि की आहुति दें। हवन की समाप्ति के बाद फिर भगवान का पूजन करें और अपना व्रत उनको अर्पण करें। इसके लिए श्री नारायण का ध्यान करते हुए कहें कि देव पुंडरीकाक्ष मैं पूर्णिमा को निराहार व्रत रखकर दूसरे दिन आपकी आज्ञा से भोजन करूंगा आप मुझे अपनी शरण दें।
इस प्रकार भगवान को व्रत समर्पित करके सायं काल चंद्रमा निकलने पर दोनों घुटने पृथ्वी पर टेक कर सफेद पुष्प, अक्षत, चंदन, जल से अर्ध्य दें। चंद्रमा का पूजन करते हुए उनकी ओर मुख करके हाथ जोड़कर प्रार्थना करें कि हे रोहिणी पति मेरा अर्ध्य आप स्वीकार करें, हे सोलह कलाओं से सुशोभित भगवान आपको नमस्कार है, आप लक्ष्मी के भाई हैं आपको नमस्कार हैं। इस दिन रात्रि को नारायण भगवान की मूर्ति के पास ही शयन करना चाहिए। दूसरे दिन सुबह ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान देकर विदा करें।
महत्व
इस दिन को दैवीयता का दिन माना जाता है। इस दिन ध्यान दान और स्नान विशेष लाभकारी होता है। इस दिन चन्द्रमा को अमृत से सिंचित किया गया था। अत: इस दिन चन्द्रमा की उपासना का खास महत्व होता है, इसलिए चंद्रमा की उपासना जरूर करनी चाहिए। इस पूर्णिमा को स्नान और दान करने से चन्द्रमा की पीड़ा से मुक्ति मिलेगी। साथ ही साथ आर्थिक स्थिति भी अच्छी होती जाएगी।
ेपूजा के लिए शुभ समय
समय के अनुसार बुधवार 11 दिसंबर 2019 को रात्रि 11 बजकर एक मिनट 21 सेकेंड से पूर्णिमा आरम्भ हो जाएगी और गुरुवार 12 दिसंबर 2019 को रात्रि 10 बजकर 44 मिनट 24 सेकेंड पर पूर्णिमा समाप्त हो जाएगी। लेकिन 12 दिसंबर को ही पूर्णिमा व्रत रखा जाएगा और पूजा, दान आदि भी किया जाएगा।
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