Aaj Samaj (आज समाज), Maratha Movement, मुंबई: महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण की मांग को लेकर जारी आंदोलन थमने का नाम नहीं ले रहा है। अगले साल लोकसभा चुनाव और फिर महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव होने हैं और इससे पहले राज्य में हिंसक होता मराठा आरक्षण आंदोलन शिंदे सरकार के लिए जहां परेशानी का सबब बन गया है, वहीं इससे राज्य में बने राजनीतिक माहौल को देखते हुए बीजेपी के दोनों हाथों में लड्ड दिख रहा है। मतलब बीजेपी को हर हाल में चुनावी फायदा मिलता दिख रहा है। हालांकि कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि मराठा आंदोलन आगामी लोकसभा चुनावों में बीजेपी के लिए मुश्किल खड़ी कर सकता है।
- राज्य में 48 लोकसभा और विधानसभा की 288 सीटें
- अब तक 20 में से 12 मुख्यमंत्री मराठा समुदाय से
मराठों की आबादी 30 से 33 ओबीसी 40 फीसदी
दरअसल महाराष्ट्र में मराठों की आबादी 30 से 33 फीसदी जबकि ओबीसी समुदाय की आबादी 40 फीसदी है। मराठा डॉमिनेंट रहे हैं इसलिए वे राजनीतिक प्रभुत्व भी रखते रहे हैं। यही कारण रहा है कि वर्ष 1960 में महाराष्ट्र के गठन के बाद से अब तक 20 में से 12 मुख्यमंत्री मराठा समुदाय से ही चुने जाते रहे हैं। मराठा समुदाय के बीच शिवसेना और एनसीपी का सियासी आधार है। देश के अन्य राज्यों के विपरीत ओबीसी पॉलिटिक्स का दौर मंडल के पहले ही शुरू हो गया था, लेकिन ओबीसी और मराठों के बीच में एक महीन सी रेखा है। बहुत से मराठे ओबीसी हैं और बहुत से सामान्य श्रेणी में आते रहे हैं। मंडल की राजनीति शुरू होने से बहुत पहले ही शरद पवार के रूप में महाराष्ट्र को ओबीसी सीएम मिल गया था। शरद पवार ओबीसी भी हैं और मराठा क्षत्रप भी हैं।
48 लोकसभा और 288 विधानसभा सीटों में 80-85 पर मराठा वोट निर्णायक
अगर दोनों को एकदम अलग करके मूल्यांकन करें तो महाराष्ट्र की 48 लोकसभा सीटों में से 20 से 22 सीटें और विधानसभा की 288 सीटों में से 80 से 85 सीटों पर मराठा वोट निर्णायक हैं। मौजूदा मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे भी मराठा समुदाय से हैं और डिप्टी सीएम भी अजित पवार भी मराठा हैं, इसलिए बीजेपी इन छत्रपों के चलते मराठी वोट साथ रहने की उम्मीद कर सकती है। राज्य की 48 लोकसभा सीट में से 11 विदर्भ इलाके में हैं और बीजेपी इनमें से 10 सीटों पर काबिज है। मराठा की 288 विधानसभा सीटों में 62 इसी क्षेत्र से हैं। ओबीसी डॉमिनेटेड इन सीटों पर बीजेपी की अच्छी पकड़ है।
अनशन पर बैठे मनोज जरांगे ने पानी-पीना भी छोड़ा
बता दें कि मराठा आरक्षण आंदोलन का नेतृत्व सामाजिक कार्यकर्ता मनोज जरांगे पाटिल कर रहे हैं और उन्होंने ‘सर्वदलीय प्रस्ताव’ को ठुकरा दिया है। वह बीते कुछ दिन से मराठा आरक्षण की मांग को लेकर भूख हड़ताल पर बैठे हैं और बुधवार को शिंदे सरकार की ओर से बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में पास पारित को ठुकराने के बाद उन्होंने गुरुवार को पानी पीना भी छोड़ दिया है। इसके बाद महाराष्ट्र की सियासत में हलचल और तेज हो गई है, क्योंकि उनके इस फैसले से आंदोलन और ज्यादा हिंसक हो सकता है।
फैसले में जितनी देर, उतनी कीमत चुकानी होगी: मनोज
मनोज जरांगे ने बुधवार को कहा, सभी राजनीतिक दलों की बैठक हुई, लेकिन मराठा आरक्षण को लेकर कोई नतीजा नहीं निकल सका। इसलिए अब से मैंने पानी पीना भी बंद कर दिया है। मनोज ने राज्य सरकार से कहा, आप कुछ मराठा युवाओं के खिलाफ मामला तो दर्ज कर सकते हैं, लेकिन आपको यह नहीं भूलना चाहिए कि मराठों की आबादी करीब 6 करोड़ है, इसलिए सरकार को फैसला करना ही होगा। फैसले में जितनी देर होगी, उतनी कीमत चुकानी पड़ेगी।
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