Makers of modern india: आधुनिक भारत के निमार्ता

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भारत सरकार ने सन 1984 में 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस घोषित किया। इस दिन सन 1863 को स्वामी विवेकानंद का जन्म हुआ था। कइयों के मन में ये सवाल होगा कि आखिर भारत सरकार ने उन्नीसवीं सदी के एक संन्यासी के जन्मदिन को युवा दिवस क्यों घोषित किया?
स्वामी विवेकानंद का जन्म अब के पश्चिम बंगाल में हुआ था। बचपन में इनका नाम नरेंद्रनाथ था। कहते हैं कि पूत के पाँव पालने में ही दिख जाते हैं। चंचल और नटखट इतने थे कि माता विनोद में कहती थी कि मैंने भगवान शिव से पुत्र मांगा था, उन्होंने अपना एक दूत-भूत इधर भेज दिया। इनके शिक्षक इनके स्मरण शक्ति एवं स्पीड-रीडिंग से अचंभित रहते थे।
वेस्टर्न फिलासफी और तर्क-शास्त्र का गहन अध्ययन किया। ब्रह्म समाज से प्रभावित थे। तर्क को अधिक महत्व देते थे। हिंदू धर्म के रूढ़िवादी विचारों के विरुद्ध थे। लेकिन जल्दी ही तर्क-वितर्क से ऊब गए। फिर स्वामी राम कृष्ण परमहंस के सानिध्य में आए। ईश्वर-साक्षात्कार को जीवन का उद्देश्य बना लिया। स्वामी परमहंस के मृत्यु उपरांत घर-वार छोड़ दिया, सन्यासी बन गए और अपना नाम स्वामी विवेकानंद रख लिया। दो साल तक एक फकीर की तरह पूरे देश का भ्रमण करते रहे। धर्म की जीवन में भूमिका और लोगों की गरीबी और उनके दुखों पर गहरा मंथन किया। बड़े से बड़े को अपनी बुद्धि का लोहा मनवाया लेकिन छोटे-से-छोटे भी सीखने में गुरेज नहीं किया। इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि बगैर गरीबी दूर किए धर्म की बात करना मिथ्या है।
भारत के गौरवशाली अतीत और हिंदूत्व के विशालहृदयता को विश्व-पटल पर रखने के लिए 30 साल की उम्र में 1993 में शिकागो के धर्म संसद में भाग लेने के लिए चल पड़े। पहुंचे तो आयोजकों ने ये कह कर मना कर दिया कि आप के पास किसी बड़े धार्मिक संस्था की सिफारिश नहीं है। हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी में ग्रीक के प्रोफेसर जे.डबल्य.ू राइट से मिले। वे स्वामीजी से इतने प्रभावित हुए कि धर्म संसद के आयोजक को चिट्ठी लिखी, स्वामीजी को नहीं बोलने देना सूरज को चमकने से मना कर देने जैसी बात है। ये बुद्धि में हम सारे प्रोफेसरों पर अकेले भारी हैं।
11 सितम्बर 1993 को स्वामी विवेकानंद शिकागो के धर्म संसद में बोले। हिंदू धर्म को दुनिया के सामने रखा। इसके सहिष्णुता और विश्व-बंधुत्व के मूल विचारों के बारे में बताया। इसके गौरवशाली अतीत पर रोशनी डाली कि कैसे ये बगैर किसी भेद-भाव के दुनियाँ भर के पीड़ितों और असहायों को हमेशा से प्रश्रय देता आया है । न्यू यॉर्क हेराल्ड अखबार ने लिखा ह्लस्वामी विवेकानंद धर्म संसद में सबसे बड़ी शख्सियत थे। उनको सुनने के बाद हमें ये बात बड़ी बेवकूफी की लगती है कि इतने विद्वान देश में ईसाई मिशनरी को भेजा जाय।ह्व
चार साल अमेरिका में रहे। वेदांत विचारधारा का प्रचार किया। तब से विदेश आना-जाना लगा रहा। जैसे गौतम बुद्ध ने हजारों साल पहले पूर्वी देशों को अहिंसा का पाठ पढ़ाया, स्वामी विवेकानंद ने पश्चिमी देशों में लोगों को विश्वास दिलाया कि धर्म कोई हो, ईश्वर एक है। हमारे शरीर में आत्मा रूप में ईश्वर बसते हैं। जीवन का उद्देश्य अपने अंदर के इस ईश्वरत्व को प्रकट होने देना है। असल नास्तिकता ईश्वर को नहीं मानना नहीं बल्कि अपने ऊपर ही विश्वास नहीं करना है। जिसमें अच्छे हैं उनमें श्रेष्ठ बनने एवं परहितकारी होने को जीवन का उद्देश्य बताया। वहां तो प्रतिष्ठित हुए ही। भारत लौटे तो लोगों ने इन्हें सिर-आँखों पर बिठाया। आत्म-विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य, आपदा-सहायता के क्षेत्र में दिन-रात लगे रहे। कभी अपनी चिंता नहीं की।
स्वामी विवेकानंद एक निर्भीक राष्ट्रवादी थे। उनका कहना था कि राष्ट्र सर्वोपरि है। इसका भविष्य इसके लोगों पर निर्भर करता है। उनको परिश्रम और आत्मविश्वास से अपने को कारगर बनाना चाहिए, ये संदेश गरीब-से-गरीब और कमजोर-से-कमजोर तक पहुँचना चाहिए। समाज सुधारक चार्ल्स ऐंड्रूज ने कहा ह्लस्वामी जी की निर्भीक देशभक्ति ने राष्ट्रवादी आंदोलन में एक नया रंग भर दिया। उन्होंने भारत में व्याप्त गरीबी की ओर सबका ध्यान खींचा और कहा कि इसे मिटाकर ही राष्ट्र को जागृत किया जा सकता है।ह्व
स्वामी जी का मंत्र था कि सफलता राजयोग – दृढ़ विचार और सतत कर्म – से मिलती है। कोई विचार लें। उसको अपना जीवन बनायें। उसी के बारे में सोचें। उसी का सपना देखें। उसी को जीएँ। आपका दिमाग, मांसपेशी, नाड़ियाँ, शरीर का हर अंग उसी विचार से भरा हो। यही सफलता का मार्ग है।
महज 39 साल की उम्र में 1902 में स्वामी विवेकानंद ने शरीर त्याग दिया। इतने छोटे जीवनकाल में भ्रमण, अध्ययन और अथक परिश्रम से वे भारत में राष्ट्रगौरव का भाव जगा गए। उस समय के सारे विचारक और लीडर उनके विचारों से प्रभावित थे। श्री अरविन्दो का कहना था कि स्वामी विवेकानंद ने भारत को आध्यात्मिक जीवन दिया। भारत के प्रथम गवर्नर-जेनरल राजगोपालाचारी का कहना था कि स्वामी जी भारत में राष्ट्रगौरव की अनुभूति पैदा कर इसको बचा लिया। नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने विवेकानंद को आधुनिक भारत का निमार्ता बताया। युवाओं के लिए उनसे बड़ा प्रेरक कौन हो सकता है? आश्चर्य नहीं कि एक कृतज्ञ राष्ट्र ने उनके जन्म दिन को राष्ट्रीय युवा दिवस घोषित किया है।
शिकागो में 11 सितम्बर 1893 के दिन स्वामी विवेकानंद ने धर्म संसद को संबोधित किया था। इस दिन को वर्ल्ड ब्रदरहुड डे की तरह मनाया जा सकता है। रायपुर, जहां स्वामी जी 1877-99 के दौरान परिवार के साथ रहे थे, के एयरपोर्ट का नाम स्वामी विवेकानंद एयरपोर्ट है। पश्चिम बंगाल का पुलिस अकादमी का नाम स्वामी जी के ऊपर है। शिकागो यूनिवर्सिटी में भारत सरकार ने स्वामी जी के नाम पर एक चेयर स्थापित किया है जहां उनके विचारों पर अध्ययन होता है। रविंद्र नाथ टैगोर का कहना था कि अगर आप अपने आपको और भारत को जानना चाहते हैं तो विवेकानंद को पढ़िए। इसमें सबकुछ सकारात्मक है, नेगेटिव कुछ भी नहीं।

(लेखक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी हैं।यह इनके निजी विचार हैं।)