(Mahendragarh News) महेंद्रगढ़। वेद प्रचार मंडल एवं आर्य समाज के संयुक्त तत्वावधान में 21 जुलाई रविवार को आर्य समाज महेंद्रगढ़ के पावन प्रांगण में गुरु शिष्य की परंपरा के पावन पर्व गुरु पूर्णिमा के अवसर पर यज्ञ का आयोजन वेद प्रचार मंडल के जिला प्रधान डॉ. प्रेम राज आर्य की अध्यक्षता में किया गया। एडवोकेट मानव आर्य मुख्य यजमान व भूपेंद्र सिंह आर्य ने पुरोहित की भूमिका निभाई। यज्ञोपरांत आर्य समाज में वार्षिक उत्सव मनाने बारे मीटिंग की गई। जिसमें उत्सव 14 व 15 सितंबर को मनाने बारे, विश्व विख्यात भजन उपदेशक पंडित योगेश दत्त, विदुषी बहन अमृता आर्या दिल्ली व रेडियो सिंगर वैदिक तोप, महाशय नंदराम वैद्य को आमंत्रित करने के लिए सभासदों ने सहमति जताई।
अध्यक्ष ने इस अवसर पर बताया की धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन महाभारत के रचयिता महान ऋषि वेद व्यास जी का जन्म हुआ था, धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस शुभ अवसर पर पूजा-पाठ और दान-पुण्य का खास महत्व है। समय-समय पर इस धरती पर ऋषि-मुनि, संत-महात्मा जनों का आविर्भाव होता रहा हैं, अतः हमें अध्यात्म सम्पदा सामान्य परिश्रम से प्राप्त हो जाती हैं।
भूपेंद्र सिंह आर्य ने बताया कि युग दृष्टा, समाज उद्धारक, सत्य के पुजारी, योगी देव दयानन्द के हम विशेष ऋणी हैं क्योंकि उन्होंने लुप्त हुई वैदिक परंपराओं और मर्यादाओं के प्राचीन भंडार को तथा हमारा खोया हुआ स्वाभिमान को पुनः विश्व के सामने निर्भयता से प्रस्तुत किया है। उन्होंने डंके की चोट पर घोषणा की ‘वेद ईश्वरीय ज्ञान है और उनमें प्राणिमात्र के सर्वांगीण विकास का सम्पूर्ण ज्ञान-विज्ञान निहित है।
मानव समाज के उत्थान हेतु उन्होंने देश में घूम-घूम कर प्रवचन, व्याख्यान, शास्त्रार्थ आदि के माध्यम से मानव-समाज का महान उपकार किया हैं और अपनी लेखनी के माध्यम से अनेक अनमोल ग्रन्थों की रचना की। इन ग्रन्थों में महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने मानव की आदर्श दिनचर्या, व्यवहार, अनुशासन, राष्ट्रप्रेम, शिष्टाचार, धर्म, मोक्ष, पुनर्जन्म, कर्म फल सिद्धांत, मानव जीवन का साफल्य आदि का बड़ी ही सरलता से दिग्दर्शन कराया है। उपासना करके हम इश्वर के गुण कर्म स्वभाव को धारण करने का प्रबल पुरुषार्थ करते रहे।
मास्टर रघुनाथ सिंह आर्य ने बताया कि समाज और राष्ट्र में जो जो वेद विरुद्ध हैं, जहां-जहां पाखण्ड, मिथ्याचार, अंधश्रद्धा, हानिकारक तत्व हैं उसका निर्मूलन हेतु स्वामी जीने तीव्र लेखनी चलाई है l देव दयानन्द वेद और सत्य की पुनः स्थापना के लिए अपने वक्तव्य के द्वारा, शास्त्रार्थ द्वारा, शंका समाधान द्वारा तथा अपना यशस्वी जीवन द्वारा एक सामाजिक क्रांति लाई है। उन्होंने अज्ञान रूपी अंधकार से बचाकर वेद रूपी महान सूर्य का दर्शन करवाया है। उन्होंने भोगवादी संस्कृति से हटाकर सत्य ज्ञान रूपी अमृत का पान करवाया है। हम और सारा विश्व उनका ऋणी हैं क्योंकि उन्होंने समाज में व्याप्त गुरुडम से बचाया हैं। उन्होंने हममें स्थित पत्थर पूजा को छुड़वाई और इश्वर की सत्य वेद वाणी सुनवाई। अनेक शास्त्रार्थ करके उन्होंने छली-कपटी- स्वार्थी लोगों पर सत्य और वेद की ध्वजा फहराई । हमें एक आर्यसमाजी होने में गर्व हैं क्योकि हमारे प्यारे ऋषि ने स्वराज मंत्र का ब्युगल फूंका और पाप अत्याचार की लंका जलाई।
परमगुरु परमेश्वर के द्वारा प्राप्त ज्ञान को हम तक पहुंचाने वाले सभी ऋषियों, आचार्यों के प्रति कृतज्ञ पूर्वक सादर स्मरण। वेद ज्ञान को शुद्ध अर्थो को समझाने वाले गुरु महर्षि दयानन्द सरस्वती को गुरु पूर्णिमा पर्व पर कोटि कोटि नमन किया। इस अवसर पर बहन केसर आर्या, वीर सिंह मेंघनवास, विक्रांत डागर, बाबू रंगराव सिंह आर्य, इंस्पेक्टर जयप्रकाश माण्डोला, मुख्तार सिंह मालडा, इंद्राज आर्य मालडा, महेंद्र दीवान, सुभाष नंबरदार, किरोड़ी लाल आदि लोग उपस्थित रहे।
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