- यज्ञ प्राचीन समय से ही मानव जीवन का एक प्रमुख अंग रहा है : एडवोकेट धर्मवीर सिंह
(Mahendragarh News) महेंद्रगढ़। आर्य समाज मुख्यालय महेंद्रगढ़ के पावन परिसर में 27 अक्टूबर रविवार को साप्ताहिक यज्ञ एवं सत्संग का आयोजन वेद प्रचार मंडल जिला अध्यक्ष डॉक्टर प्रेमराज आर्य के ब्रह्मत्व मे तथा आर्य समाज के प्रधान भूपेंद्र सिंह आर्य के पुरोहित्त्व में किया गया। तत्पश्चात वीर बंदा बैरागी की जयंती पर उन्हें शत-शत नमन किया। उनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अपनी जिदगी विपरीत दिशा में जी।
किशोरावस्था में संत बनने वाला बंदा अपनी जिंदगी के बाद के सालों में सांसारिक जीवन की तरफ लौटे। ऐसे लोग कम देखने में आए हैं। जो बहुत कम समय में हिंदू धार्मिक ग्रंथों के अध्येता से एक बहादुर योद्धा और एक काबिल नेता में तब्दील हो गए हों। वरिष्ठ अधिवक्ता एवं आर्य समाज के निशुल्क कानूनी सलाहकार धर्मवीर सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि यज्ञ के बहुत से लाभ होते हैं। उनमें से वातावरण शुद्धि, अध्यात्मिक उन्नति और स्वास्थ्य लाभ प्रमुख हैं। यज्ञ प्राचीन समय से ही मानव जीवन का एक प्रमुख अंग रहा है।
प्राचीन समय मे प्रत्येक व्यक्ति विभिन्न उद्देश्यों के लिये यज्ञ करता था। आज के समय में जब वातावरण के प्रदूषण, रहन सहन और खाने पीने मे लापरवाही की वजह से मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, ऐसे मे चिकित्सा हेतू यज्ञ करना बहुत महत्वपूर्ण हो गया है। यज्ञ चिकित्सा एलोपैथी चिकित्सा से 1000 गुना अधिक प्रभावी है। यज्ञ चिकित्सा मे औषधियां अग्नि में भस्म होकर धुएं मे परिवर्तित हो जाती हैं तथा नाक के रास्ते फेफडों से होकर रक्त मे मिल जाती हैं। यह प्रक्रिया मुंह के रास्ते औषधि लेने से 100 गुना अधिक प्रभावीहोती है।
डॉ. प्रेम राज आर्य ने महर्षि दयानंद के निर्माण दिवस पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ऋषि दयानंद का योगदान कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है धर्म, राजनीति शिक्षा, शुद्धि आंदोलन, गुरुकुल, नारी उत्थान, कोई ऐसा विषय नहीं है जिसमें ऋषि ने एक निराली छाप न छोड़ी हो। पर्वतों में जैसे हिमालय की चोटि सबसे ऊंचाई वाली है वैसे ही महापुरुषों में महर्षि का जीवन अपने आप में अद्भुत है।
दुनिया के इतिहास में महर्षि दयानंद सरस्वती एक ऐसा निराला, अद्भुत, विलक्षण व्यक्ति था जो जीवन के अंतिम क्षणों मे अक्सर लोग बेहोशी मे कोमा में चले जाते हैं लेकिन महर्षि होश में गया, अपने विष दाता जगन्नाथ को क्षमा करते हुए गया, संध्या उपासना करते हुए गया, यज्ञ कुंड की अग्नि घरों से बुझने न देने, अपने पीछे आने को बोलकर, वेदों की ओर चलो, दीपावली के दिन मंगलवार के दिन इच्छा मृत्यु प्राप्त की। गुरुदत्त विद्यार्थी नास्तिक को आस्तिक बनाता हुआ गया। इस अवसर पर बाबू रंग सिंह आर्य, बहन केसर आर्या, डॉ. विक्रांत डागर, बृहस्पति शास्त्री, वीर सिंह मेघवनवास, डॉ. आनंद कुमार सुर्जनवास, महेंद्र सिंह दीवान, दीपक कुमार, किरोड़ी लाल आर्य आदि उपस्थित रहे।
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