(Mahendragarh News) महेंद्रगढ़। वेद प्रचार मंडल एवं आर्य समाज महेंद्रगढ़ के संयुक्त तत्वावधान में वेद प्रचार मंडल जिला महेंद्रगढ़ के प्रधान डॉक्टर प्रेमराज आर्य की अध्यक्षता में एवं आर्य समाज के प्रधान पंडित भूपेंद्र सिंह आर्य के पुरोहित्व में आर्य समाज मुख्यालय महेंद्रगढ़ में 19 जनवरी रविवार को साप्ताहिक यज्ञ एवं सत्संग का आयोजन बड़ी धूमधाम से किया गया । जिसमें मुख्य यज्ञमान सतीश आर्य। ब्रह्मा के स्थान पर आर्य समाज के निशुल्क कानूनी सलाहकार वरिष्ठ अधिवक्ता धर्मवीर सिंह आर्य रहे ।
ब्रह्मा ने कहा कि यज्ञ का उद्देश्य केवल जल, वायु को शुद्ध करना ही होता तो इस उद्देश्य की पूर्ति तो कहीं पर भी यांत्रिक प्रक्रिया द्वारा अग्नि जलाकर उसमें घी व सामग्री को डालकर कर ली जाती किंतु यज्ञ का प्रयोजन केवल भौतिक ही नहीं अपितु आध्यात्मिक भी है। जो की भौतिक लाभों की अपेक्षा कहीं अधिक महत्वपूर्ण है । यज्ञ में जिन मंत्रों से आहुति दी जाती है उनसे पूर्व ओ३म शब्द का उच्चारण किया जाता है जो हमें बोध कराता है । “की सब सत्य विद्या और जो पदार्थ विद्या से जाने जाते हैं उन सब का आदि मूल परमेश्वर है “अर्थात हमारे पास जो भी धन, बल, विद्या समर्थ आदि है उन सब का उत्पादक, रक्षक, धारक स्वामी परमेश्वर है हम नहीं।
यज्ञ अग्नि हमें संकेत करती है कि प्रकाशित होवो, न केवल वस्त्र, पात्र, भवन वाहन, धन, संपत्ति आदि भौतिक पदार्थों से बल्कि सत्य, दया, प्रेम, संयम, त्याग, तप, सेवा, ज्ञान, विज्ञान से अपने अंतःकरण व आत्मा को भी प्रकाशित करो।
यज्ञ अग्नि हमें प्रेरित करती है कि तपो जलाओ किसको राग, द्वेष, ईर्ष्या, अहंकार, आलस्य, प्रमाद, स्वार्थ, मोह से संबंधित अपनी कुवासनाओं को जो हमें कुमार्ग पर प्रेरित करती हैं। और दुखी बनाती हैं।
यज्ञग्नि हमारे अंदर भावना भरती है कि रुको नहीं चलते रहो, बढ़ते रहो, बाधाएं आएंगी, कष्ट आएंगे, साथी छूट जाएंगे, असफलता भी मिलेगी, फिर भी हताश निराश न हो नया उत्साह, नई प्रेरणा, नए संकल्प लेकर उठो, बढ़ो तब तक चलते चलो, जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।
समस्त यज्ञ प्रक्रिया हमें यह संकेत करती है कि अपने जीवन के व्यवहार व विचारों में त्याग भावनाओं को जगाओ अपने लिए दूसरों का अन्याय पूर्वक ग्रहण मत करो बल्कि अन्यों के लिए अपना भी त्याग कर दो। प्रत्येक को अपनी ही उन्नति से संतुष्ट ने रहना चाहिए किंतु सब की उन्नति में अपनी उन्नति समझनी चाहिए।
यज्ञ में जो आहुति सुगंधिकारक, रोग नाशक, पुष्टि कारक, मिष्टी कारक पदार्थो की दे रहे हैं इसमें मेरा कुछ नहीं है। परमात्मा का दिया हुआ परमात्मा की आज्ञा में समर्पित कर रहे हैं। मनुष्य में त्याग की भावना जागृत होती है और देवत्व की और अग्रसर होने लगता है। इस अवसर पर परमपिता परमेश्वर से उत्तम श्रेष्ठ कोटि की विद्या, बुद्धि, धन, आयु, बल, ज्ञान व तेज प्रदान करने की प्रार्थना की शांति पाठ के साथ जय घोष के बाद यज्ञ संपन्न हुआ। इस अवसर पर बृहस्पति शास्त्री, सूबेदार मेजर दिलीप सिंह, डॉ. विक्रांत डागर, महेंद्र दीवान, किरोड़ी लाल आदि ने यज्ञ में आहुति दी।
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