(Mahendragarh News) सतनाली। शनिवार को विधानसभा चुनावों के दौरान प्रशासन द्वारा व्यापक स्तर पर प्रबंध किए गए थे लेकिन मतदान प्रक्रिया के दौरान महिला सशक्तिकरण के दावे हवा हवाई होती नजर आई। मतदान के दौरान ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं घूंघट की ओट से बाहर नहीं निकल पाई। सतनाली खंड के पोलिंग बूथों पर महिलाएं घूंघट की ओट में वोट डालने के लिए पहुंची तथा पोलिंग एजेंट को भी उनकी पहचान नाम से ही करनी पड़ी। वोट का अधिकार प्रयोग करने लंबा-लंबा घूंघट निकालकर मतदान केंद्र आई महिलाओं की पहचान पीठासीन अधिकारियों के समक्ष परेशानी पैदा कर रही थी। राजपूत बाहुल्य क्षेत्र होने के कारण रूढ़िवादी परंपरा का यह प्रभाव सतनाली खंड में अधिक देखने को मिला। पुरुष प्रधान समाज के समक्ष औरतों के घूंघट निकालने की रूढ़िवादी परंपरा बेपर्दा उजागर हो रही थी। अवकाश का दिन होने के चलते मतदान केंद्रों पर महिलाओं की लंबी कतारें लगी हुई थी।
पोलिंग एजेंट के माध्यम से करनी पड़ी वोट डालने आई महिलाओं की पहचान
उनके मन में लोकतंत्र को सबल बनाने की उमंग, आंखों में भविष्य की चमक, मगर सिर पर घूंघट। यह घूंघट अपने ही समाज के अपनों से पर्दादारी की विडंबना के साथ 21वीं सदी में भी मध्यकालीन सभ्यता के अनुशरण को दर्शा रहा था। घूंघट की वजह से आंशिक ही सही, दिक्कत तो मतदान संपन्न कराने वालों को भी हुई। मतदाता पहचान पत्र से मैच करवाने के बदले अन्य औपचारिक सुबूत का सहारा लेना पड़ रहा था। एक पोलिंग बूथ के पीठासीन अधिकारी ने बताया कि हैं कि घूंघट में आई महिलाओं की पहचान एजेंटों से पूछकर की जाती रही है। जब एजेंट से पर्याप्त जानकारी मिल जाती है, तभी उन्हें मताधिकार के प्रयोग की इजाजत दी जाती है। वहीं पोलिंग एजेंट राजेश ने बताया कि बेशक महिलाएं घूंघट निकालकर आती हैं, मगर उनके साथ परिवार के सदस्य भी आते हैं। तकरीबन सभी जाने-पहचाने चेहरे होते हैं। वहीं जब युवाओं से इस बारे में प्रतिक्रिया जानी गई तो उनका कहना था कि अब समय बदल चुका है। बेशक पंचायती राज चुनावों में शैक्षणिक अनिवार्यता समाज के बेहतर निर्माण व विकास के लिए लागू किया गया है, लेकिन पहले वह समाज तो शिक्षित बने जिसने महिलाओं को लंबा घूंघट निकालने पर अपनी परंपरा के चलते विवश कर रखा है।