(Mahendragarh News) महेंद्रगढ़। आर्य समाज महेंद्रगढ़ के साप्ताहिक यज्ञ एवं सत्संग कार्यक्रम का आयोजन आज 10 नवंबर को आर्य समाज के प्रधान भूपेंद्र सिंह आर्य की अध्यक्षता में व वीर सिंह मेंघनवास के यजमानत्त्व में किया गया। यज्ञ ब्रह्मा के रूप मे प्रोफेसर अशोक कुमार उपस्थित रहे। संसार रूपी यज्ञ के उत्तम निर्माता उस परमपिता परमेश्वर को नमन किया। जिसकी असीम अनुकंपा से यह कार्यक्रम प्रति सप्ताह हो पाता है।
भूपेंद्र सिंह आर्य ने बताया की सृष्टि के आदिकाल से प्रचलित यज्ञ हमारी उपासना पद्धति का अंग है। किया हुआ कर्म कभी निष्फल नहीं होता वैसे ही यज्ञ में डाली हुई आहुति और दिया हुआ दान कभी नष्ट नहीं होता। अपना-पराया, जड़-चेतन के भेद से ऊपर उठकर दूसरों को लाभान्वित करने के निमित्त यज्ञ में आहुति देकर याज्ञिक अपने भीतर परोपकार की सद्ववृति को जागृत करता है।
यज्ञादि, धर्म युक्त, वेदोक्त निष्काम, श्रेष्ठ कर्म हमें परमेश्वर की आज्ञाओं के अनुसार आसक्ति रहित होकर अपने स्वधर्म का पालन करते हुए जीवन व्यापन करना सिखाते है। वेदों में अग्नि परमेश्वर के रूप में वंदनीय है। यज्ञ को श्रेष्ठतम कर्म माना गया है। समस्त भुवन का नाभि केंद्र यज्ञ ही है। यज्ञ की किरणों के माध्यम से संपूर्ण वातावरण पवित्र व देवगम बनता है। वेदों का संदेश है कि शाश्वत सुख और समृद्धि की कामना करने वाले मनुष्य यज्ञ को अपना नित्य कर्तव्य अवश्य समझें। यज्ञ कुंड से अग्नि की उठती हुई लपटें जीवन में ऊंचाई की तरह उठने की प्रेरणा देती हैं।
यज्ञ में बोले जाने वाले मंत्र व्यक्ति की मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं। यज्ञ से ब्रह्मवर्चस की प्राप्ति होती है। यज्ञ में बोले जाने वाले हर मंत्र में शरीर को झंकृत करने की अपार शक्ति होती है। “परमपिता परमेश्वर से नाता जोड़ने का अनुपम माध्यम है यज्ञ”। यज्ञ लौकिक संपदा के साथ-साथ आध्यात्मिक संपदा की प्राप्ति का द्वार है। इस अवसर पर आर्य समाज के संरक्षक बृहस्पति शास्त्री, डॉ. विक्रांत डागर, बाबू रंगराव सिंह आर्य, प्राचार्य विजयपाल आर्य, महेंद्र सिंह दीवान, शिवांश आर्य, दीपक आदि आर्य जन उपस्थित रहे।
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