Mahendragarh News : बुजुर्गों के मन में आज भी समाया है चने के साग व नमक मिर्च का स्वाद

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Mahendragarh News : बुजुर्गों के मन में आज भी समाया है चने के साग व नमक मिर्च का स्वाद
सतनाली के गांव जवाहर नगर में चने की फसल।
  • चने की पैदावार गिरने से किसानों का नहीं रहा चने की खेती में रुझान

(Mahendragarh News) सतनाली। दक्षिण हरियाणा के अंतिम छोर पर बसे सतनाली क्षेत्र में पहले चने की पैदावार अच्छी खासी होती थी परंतु अब आशानुरूप पैदावार न मिलने के कारण किसानों का चने की खेती के प्रति मोहभंग हो गया है। चने की फसल ऐसी है जिसका प्रयोग घरों में बोए जाने के साथ ही हरे पौधे से ही शुरू हो जाता है। बुजुर्गों के मन में आज भी हरे चने का साग और नमक मिर्च की यादें ताजा है।

चना बोने के कुछ ससमय बाद जब चने कुछ बड़े हो जाते थे तो लोग उन्हें हरे रूप में तोडक़र इल्ली की तरह साग के रूप में खाते थे। वे अपने खेत में नमक मिर्च और लहसुन मिलाकर जेब में एक कागज में डालकर ले जाते थे। नमक मिर्च से खेत में बैठकर घंटों तक हरा साग खाते थे। जब मन भर जाता तो तोड़ कर अपने साथ लाते और घर में चटनी जिसे कुट्टी नाम से जाना जाता था बनाकर खाते थे।

जब छोटे थे तो हरे चने खाकर बहुत आनंद महसूस करते थे।

आज भी कुछ लोगों के जेहन में ये बातें रंगी बसी हुई हैं। गांव नावा निवासी ओंकार पडतलिया बताते हैं कि वे आज भी चने से इतने प्रभावित है तथा 3 से 4 एकड़ जमीन पर चने उगाते हैं। उन्होंने बताया कि जब छोटे थे तो हरे चने खाकर बहुत आनंद महसूस करते थे। अब तो लोग चने को भूलते जा रहे हैं। चने उगने के बाद किसान भूखा नहीं रहता था। किसान हरे साग को तोडकर, तत्पश्चात ठाट लग जाती उसको छोले के रूप में प्रयोग करते।

रोटी, चटनी, सब्जी खाटा का साग, रायता, कोफ्ता परांठे तथा विभिन्न रूपों में चने का प्रयोग करते थे

चटनी बनाकर छाछ के संग मजे से खाता था। सारा काम चने से करते थे रोटी, चटनी, सब्जी खाटा का साग, रायता, कोफ्ता परांठे तथा विभिन्न रूपों में चने का प्रयोग करते थे। तत्पश्चात चने बड़े होने पर होले बनाता था और उन्हें भी चाव से खाता था और पक जाते चने निकालकर न केवल विभिन्न रूपों में उसे रोटी आदि के रूप में प्रयोग करता था। खाने पीने के लिए भी जहां चने की रोटी, मेसी रोटी खाते थे वहीं देसी सब्जियों से बहुत ज्यादा साग बनाकर मन को ललचाते थे।

चना उस जमाने में प्रमुख रूप से उगाया जाता था। विवाह शादियों पर लड्डू बनाकर जब खाते तो एक आध दिन नहीं एक एक महीने तक लोग मजे से खाते थे। लेकिन समय में बदलाव के साथ ही अब तो लड्डू को विवाह शादियों तक में नापसंद किया जाने लगा है। कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि चने की जड़ों में गांठ होती है और इन पौधों की जड़ों में गांठों में सूक्ष्म जीव निवास करते हैं जो खेत की पैदावार बढ़ाते हैं।

किसान समय-समय पर दलहन जाति के पौधे जरूर उगाए जिससे पैदावार बढ़ जाती है। आज इन खेतों में चना उगाया जाए तो नहीं होता क्योंकि बारानी क्षेत्रों में ही जहां पानी की कमी होती वहीं पर चने पैदावार देते हैं अन्यथा नहीं दे पाते। सतनाली क्षेत्र में कहीं कहीं पर अब भी चने की खेती मिल जाती है परंतु आने वाले वर्षों में चने के बिजाई क्षेत्र में कमी आने की संभावना है क्योंकि आशानुरूप पैदावार न मिलने से किसानों का चने की खेती से मोहभंग होता जा रहा है।
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