(Mahendragarh News) महेंद्रगढ़। हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय (हकेवि), महेंद्रगढ़ में बुधवार को विभाजन की विभिषिका स्मृति दिवस का आयोजन किया गया। विश्वविद्यालय के इतिहास एवं पुरातत्त्व विभाग द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में बाबा मस्तनाथ विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. मार्कंडेय आहुजा मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। प्रो. मार्कंडेय आहुजा ने अपने संबोधन में कहा कि आज का दिन उन लोगों को याद करने का दिन है जो विभाजन के दौरान गुमनामी की मौत मरें। देश में आज तक ऐसा कोई स्मृति स्थल नहीं है जहां बंटवारे में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि दी जा सके। विभाजन की विभीषिका में न जाने कितने परिवार के परिवार उजड़ गए। आज समय है इस विभीषिका को याद करते हुए खुद को भविष्य में ऐसे किसी भी खतरे से बचाने का संकल्प लेने का। आयोजन में मुख्य संरक्षक के रूप में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. टंकेश्वर कुमार व संरक्षक के रूप में समकुलपति प्रो. सुषमा यादव उपस्थित रहीं।
कार्यक्रम की शुरुआत में फोटो प्रदर्शनी का विमोचन किया गया। इसमें विभाजन की विभीषिका के दंश को चित्रों के माध्यम से प्रदर्शित किया गया। इतिहास विभाग के विभगााध्यक्ष डॉ. नरेंद्र परमार ने कार्यक्रम की रूपेरखा प्रस्तुत करते हुए उसके इतिहास पर प्रकाश डाला। मुख्य अतिथि डॉ. मार्कंडेय आहुजा ने अपने संबोधन में विशेष रूप से लाहौर षडयंत्र और स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान का उल्लेख किया और बताया कि किस तरह से उस समय विभाजन का खेल खेला गया। इसे इतिहास का काला अध्याय बताते हुए उन्होंने विभाजन के दौरान देश के हालातों पर नेताओं, समाजसेवियों व समाज के प्रतिष्ठित लोगों की चुप्पी का भी उल्लेख किया। अपने संबोधन के अंत में डॉ. आहुजा ने जर्मनी, यहुदियों और स्वामी विवेकानंद का उल्लेख कर उनसे सीख लेकर देश को एक सूत्र में पिरोकर रखने की बात कही। उन्होंने कहा कि आने वाली पीढ़ी को यह सुनिश्चित करना है कि फिर से ऐसे किसी विभाजन को न झेलना पड़ा।
विश्वविद्यालय कुलपति प्रो. टंकेश्वर कुमार ने प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए कहा कि यह वह दर्द है जो उन्होंने व उनके परिवार ने स्वयं अनुभव किया है। उन्होंने मुख्य अतिथि व आयोजकों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि यह आयोजन सभी के लिए प्रेरणादायक है। आज समय समृद्धि पाने का ही नहीं है बल्कि स्वयं को सुरक्षित रखने का भी है। भारत विभाजन के दौरान जो हुआ वह अनुचित था और उससे बचा जा सकता था। जल्दबाजी में किया गया विभाजन लाखों लोगों की जान ले गया और परिवारों को ऐसा दर्द दे गया जो पीढ़ियों तक भुलाया नहीं जा सकता।
कुलपति ने विद्याथियों को इस आयोजन के माध्यम से विभाजन पर केंद्रित शोध के लिए भी प्रेरित किया ताकि भविष्य में ऐसे दर्द से बचा जा सके। इससे पूर्व में विश्वविद्यालय की समकुलपति प्रो. सुषमा यादव ने कहा कि हम देश का 78वां स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहे हैं लेकिन आज भी हम उन गुमनाम लोगों की कुर्बानी भूला नहीं पाए हैं। उन्होंने कहा कि विभाजन इतिहास का ऐसा काला अध्याय है, जिसे भुलाया नहीं जा सकता। आज इस दिन को मनाने के पीछे का उद्देश्य सही मायने में इस बंटवारे के कारणों को जानने-समझने और भविष्य में उन गलतियों की पुनरावृत्ति न होने देना है। कार्यक्रम के अंत में प्रबंधन अध्ययन विभाग की सहायक आचार्य डॉ. दिव्या ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया। आयोजन में मंच का संचालन पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग में सहायक आचार्य डॉ. नीरज कर्ण सिंह ने किया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के छात्र कल्याण अधिष्ठाता प्रो. आनंद शर्मा, शोध अधिष्ठाता प्रो. पवन कुमार शर्मा, प्रो. पायल कंवर चंदेल, डॉ. रश्मि तंवर, डॉ. अभिरंजन कुमार, डॉ. कुलभूषण मिश्रा, डॉ. विवेक बाल्यान सहित भारी संख्या में शिक्षक, विद्यार्थी व शोधार्थी उपस्थित रहे।