(Mahendragarh News ) नारनौल। बाल अपराधियों के पुनर्वास और बच्चों को यौन अपराधों से बचाने के उद्देश्य को लेकर आज लघु सचिवालय में एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। नगराधीश मंजीत कुमार ने इस कार्यक्रम का शुभारंभ किया। कार्यशाला के दौरान इस विषय के विशेषज्ञों तथा अधिकारियों ने विस्तार के साथ चर्चा की। इस मौके पर विभिन्न प्रतिभागियों के सुझावों पर भी गहनता के साथ विचार विमर्श किया गया।
बाल अपराधियों के पुनर्वास और बच्चों को यौन अपराधों से बचाने को लेकर हुआ विचार विमर्श
जिला बाल संरक्षण इकाई की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जिला कार्यक्रम अधिकारी संगीता यादव ने कहा कि आधुनिकता के इस दौर में हमें अपनी भावी पीढ़ी को ने केवल सही दिशा दिखानी है, बल्कि उन्हें समाज में होने वाले अपराधों से भी बचाना है। गरीब व बेसहारा बच्चों का ख्याल रखना भी हम सबकी जिम्मेदारी है। ऐसे बच्चे ही इन अपराधों का अधिक शिकार बनते हैं।
उन्होंने कहा कि जेजे एवं पोक्सो एक्ट का महत्व बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। हमें इन अधिनियमों के बारे में जागरूकता फैलाने और इन अधिनियमों के क्रियान्वयन में सुधार करने की आवश्यकता है।
विधि-सह- परिवीक्षा अधिकारी राजकुमार कोठारी ने बताया कि जेजे एक्ट (जुवेनाइल जस्टिस एक्ट) का उद्देश्य बाल अपराधियों के पुनर्वास और सुधार के लिए कानूनी प्रावधानों को निर्धारित करना है। इस एक्ट के तहत, बाल अपराधियों का विशेष अदालतों में मुकदमा चलाया जाता है और उन्हें सुधार केंद्रों में भेजा जाता है।
पोक्सो एक्ट (प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेस एक्ट) का उद्देश्य बच्चों को यौन अपराधों से बचाना है। इस एक्ट के तहत, बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों को गंभीरता से लिया जाता है और दोषियों को सख्त सजा दी जाती है।
इस कार्यशाला में जेजे एवं पोक्सो एक्ट के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई, जिसमें इन अधिनियमों के प्रावधान, क्रियान्वयन और चुनौतियों पर विशेष ध्यान दिया गया। कार्यशाला में सरकारी अधिकारी, पुलिस अधिकारी, कानूनी विशेषज्ञ और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। प्रतिभागियों ने जेजे एवं पोक्सो एक्ट के बारे में अपने ज्ञान में वृद्धि की और इन अधिनियमों के क्रियान्वयन में सुधार करने के लिए प्रतिबद्धता व्यक्त की। इस मौके पर नशा मुक्ति केंद्र नारनौल के प्रोजेक्ट डायरेक्टर रोहताश सिंह रंगा ने नशा मुक्ति केंद्र नारनौल की गतिविधियों के बारे में जानकारी दी। इस मौके पर डीएसपी सुरेश कुमार, जिला समाज कल्याण अधिकारी अमित शर्मा, जिला बाल कल्याण अधिकारी राजेंद्र सिंह के अलावा अन्य विभागों के अधिकारी भी मौजूद थे।
इन तीन श्रेणियों में बंटा है पोक्सो एक्ट
भारत में बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों को बहुत गंभीरता से लिया जाता है और इसके लिए कठोर सजा का प्रावधान है। भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेस एक्ट (पोक्सो एक्ट), 2012 के तहत बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों को परिभाषित किया गया है और इसके लिए सजा के प्रावधान किए गए हैं।
1. यौन उत्पीड़न (सेक्सुअल असॉल्ट): इसमें बच्चे के साथ यौन संबंध बनाना, यौन क्रिया में शामिल होना, या बच्चे को यौन क्रिया में शामिल होने के लिए मजबूर करना शामिल है। इसके लिए 3 साल से 5 साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है।
2. यौन उत्पीड़न की गंभीर धारा (अग्रेवेटेड सेक्सुअल असॉल्ट): इसमें बच्चे के साथ यौन संबंध बनाना, यौन क्रिया में शामिल होना, या बच्चे को यौन क्रिया में शामिल होने के लिए मजबूर करना, जिसमें बच्चे को शारीरिक या मानसिक नुकसान पहुंचाया गया हो। इसके लिए 5 साल से 7 साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है।
3. यौन उत्पीड़न की सबसे गंभीर धारा (मोस्ट ग्रेव सेक्सुअल असॉल्ट): इसमें बच्चे के साथ यौन संबंध बनाना, यौन क्रिया में शामिल होना, या बच्चे को यौन क्रिया में शामिल होने के लिए मजबूर करना, जिसमें बच्चे की मृत्यु हो गई हो या बच्चे को गंभीर शारीरिक या मानसिक नुकसान पहुंचाया गया हो। इसके लिए उम्रकैद या मृत्युदंड और जुर्माना हो सकता है।