Mahashivratri 2022 Update : 12 घंटे का मनेगा उत्सव, जुड़ेंगे एक करोड़ लोग
आज समाज डिजिटल, नई दिल्ली:
Mahashivratri 2022 Update : आज पूरे देश में शिवरात्रि पर्व मनाया जा रहा है। सद्गुरु जग्गी वासुदेव के ईशा योग केंद्र तमिलनाडु में इसके लिए कई इंतजाम किए गए हैं। यह 12 घंटे तक मनाई जाएगी। महोत्सव एक मार्च की शाम छह बजे से शुरू होगा और अगले दिन सुबह 6 बजे तक चलेगा। इस प्रोग्राम में 170 देशों के 1 करोड़ से ज्यादा लोग हिस्सा लेंगे।
कई दिग्गज करेंगे परफॉर्म
ईशा योग केंद्र महाशिवरात्रि प्रोग्राम को सद्गुरु के यूट्यूब चैनल पर लाइवस्ट्रीम करेगा। साथ ही लोग वेबसाइट के माध्यम से प्रोग्राम से जुड़ सकेंगे। (Mahashivratri 2022 Update) प्रोग्राम अंग्रेजी, तमिल, हिंदी, तेलुगु, कन्नड़, मराठी सहित 16 भाषाओं में चलेगा। प्रोग्राम में पेपोन, मास्टर सलीम, हंसराज रघुवंशी, मंगली और शॉन रोल्डन जैसे कलाकार ईशा फाउंडेशन के बैंड साउंड्स आफ ईशा के साथ परफॉर्म करेंगे।
कोविड का प्रकोप, भक्तों की एंट्री बैन
कोरोना के कारण प्रोग्राम में भक्तों को एंट्री नहीं होगी। प्रोग्राम में सिर्फ वही शामिल हो सकेंगे, जिन्हें इनवाइट किया है। भक्त घर पर ही बैठकर टीवी और सोशल मीडिया पर प्रोग्राम देख सकेंगे। प्रोग्राम में आनलाइन या आफलाइन शामिल होने वाले लोगों को प्राण-प्रतिष्ठित रुद्राक्ष भी दिए जाएंगे। मान्यता है (Mahashivratri 2022 Update) कि महाशिवरात्रि की रात रीढ़ की हड्डी को सीधी रखते हुए पूरी रात जागते रहना और जागरूक रहना, शारीरिक और आध्यात्मिक जीवन के लिए बहुत फायदेमंद होता है। (Mahashivratri 2022 Update) महाशिवरात्रि के बाद यहां लगातार 7 दिनों तक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे।
ईशा योग के अनुसार शिव की परिभाषा
जिस विशाल खालीपन को हम शिव कहते हैं, वह असीम है, शाश्वत है। लेकिन चूंकि इंसान का बोध, रूप और आकार तक सीमित होता है, इसलिए हमारी संस्कृति में शिव के लिए बहुत तरह के रूपों की कल्पना की गई। शिव सब कुछ है, वे सबसे बदसूरत हैं, (Mahashivratri 2022 Update) और सबसे खूबसूरत भी हैं। वे सबसे अच्छे और सबसे बुरे हैं, वे सबसे अनुशासित भी हैं। तो शिव का व्यक्तित्व पूरी तरह जीवन के विरोधी पहलुओं से बना है।
यह है महाशिवरात्रि का महत्व
महाशिवरात्रि, अध्यात्म मार्ग पर चलने वालों और गृहस्थ लोग, दोनों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। गृहस्थ महाशिवरात्रि को शिव की शादी की सालगिरह की तरह मनाते हैं, लेकिन तपस्वियों के लिए यह वो दिन है जब शिव कैलाश के साथ एक हो गए थे, जब वे पर्वत की तरह निश्चल और पूरी तरह शांत हो गए थे। कृष्णपक्ष में हरेक चन्द्रमास का चौदहवां दिन या अमावस्या से पहले वाला दिन शिवरात्रि के नाम से जाना जाता है।
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