Maharishi Valmiki Jayanti 2024 : विश्वविख्यात आदि काव्य रामायण के प्रणेता महर्षि वाल्मीकि

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Maharishi Valmiki Jayanti 2024 : विश्वविख्यात आदि काव्य रामायण के प्रणेता महर्षि वाल्मीकि
Maharishi Valmiki Jayanti 2024 : विश्वविख्यात आदि काव्य रामायण के प्रणेता महर्षि वाल्मीकि

Maharishi Valmiki Jayanti 2024 | आचार्य दीप चन्द भारद्वाज | महर्षि वाल्मीकि का जन्म त्रेता युग में आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन हुआ था। वाल्मीकि जी का जन्म महर्षि कश्यप और अदिति की नौवीं संतान वरुण और चर्षणी के घर हुआ । इसलिए संपूर्ण भारतवर्ष में यह तिथि महर्षि वाल्मीकि जयंती के रूप में विख्यात है। वाल्मीकि जी एक आदर्श संत, श्रेष्ठ शिक्षक एवं गुरु माने गए हैं।

Acharya Deep Chand Bhardwaj
Acharya Deep Chand Bhardwaj

सनातन संस्कृति के सुप्रसिद्ध धार्मिक ग्रंथ रामायण के रचयिता होने के साथ-साथ संस्कृत साहित्य के प्रथम कवि होने का गौरव महर्षि वाल्मीकि को प्राप्त है। रामायण को आदि काव्य और महर्षि वाल्मीकि को आदि कवि की उपमा दी गई है।

महर्षि नारद की प्रेरणा से वाल्मीकि जी का हृदय परिवर्तन हुआ उसके पश्चात वे साधना और आध्यात्मिकता के पथ पर अग्रसर हुए। आत्म जागृति की अनुभूति के उपरांत उन्होंने रामायण ग्रंथ में श्री रामचंद्र के विराट दिव्य गुणों को प्रस्तुत किया। प्रेम में आसक्त दो क्रौञ्चथ पक्षियों में से जब एक को शिकारी ने अपने बाण से मार दिया तब उस कारूणिक दृश्य को देखकर महर्षि वाल्मीकि के मुख से अनायास श्राप के रूप में यह श्लोक निकला-

“मा निषाद प्रतिष्ठा त्वमगमः शाश्वती समाः।
यत्क्रौञ्च मिथुनादेकम् अवधी काममोहितम्।। “

वाल्मीकि जी के मुखारविंद से निकला यह श्लोक ही आदि काव्य रामायण का आधार बना। वाल्मीकि जी ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप और साधना की। कहा जाता है कि बाल्मीकि जी अपनी साधना में इतने तल्लीन हो गए थे कि इनको इस बात का बोध भी नहीं रहा कि उनके शरीर के ऊपर दीमकों की मोटी परत जम चुकी है।

इस कठोर साधना से बाहर आने के उपरांत ही इनका नाम वाल्मीकि पड़ा। ब्रह्मा के आशीर्वाद और प्रेरणा से इन्होंने राम के जीवन की स्वर्णिम गाथा को श्लोकों में गुम्फित करके अमर ग्रंथ रामायण की रचना प्रारंभ की। 24000 संस्कृत के श्लोकों से परिपूर्ण और सात कांडों में विभक्त वाल्मीकि जी ने भगवान श्री रामचंद्र के दिव्य विराट व्यक्तित्व को प्रस्तुत किया। वाल्मीकि जी ज्योतिष तथा खगोल विद्या के भी प्रखंड विद्वान थे।

रामायण में वाल्मीकि जी ने राजा से लेकर रंक तक के सामाजिक, पारिवारिक,आध्यात्मिक कर्तव्यों का निर्वहन किया है। भगवान श्री राम को इन्होंने साक्षात धर्म के अवतार के रूप में चित्रित किया है। कलात्मक विशिष्टताओं के धनी वाल्मीकि जी ने अपने पात्रों को अपना प्रवक्ता बनाया है।

राम, भरत, लक्ष्मण, सीता, सुमित्रा, सुमंत, जटायु,शबरी, हनुमान इन सभी पात्रों के माध्यम से आदि कवि ने मानवीय गुणों के गौरवमयी आदर्श को प्रस्तुत किया है। अपने इस उत्कृष्ट ग्रंथ में महर्षि ने सामाजिक समरसता, मानव गौरव, भ्रातृत्व की विराट भावना को सर्वप्रथम प्रस्तुत किया।

रामायण में भारतीय संस्कृति के उत्कृष्ट नैतिक मूल्यों का प्रतिबिंब दृष्टिगोचर होता है। ज्ञान, विद्या, कर्तव्य, व्यवहार, नीति, निस्वार्थ कर्म, बंधुत्व, त्याग, धर्म, भक्ति की शिक्षा इस ग्रंथ के स्वाध्याय से स्वतः ही प्राप्त हो जाती है। संस्कृत के मर्मज्ञों ने वाल्मीकि की रामायण को प्रामाणिक ग्रंथ स्वीकार किया है।

इसी ग्रंथ से प्रेरणा प्राप्त करके तथा इसकी विषय वस्तु को आधार मानकर संस्कृत साहित्य में अनेकों कवियों ने महाकाव्य, खंडकाव्य तथा नाटकों की रचना की।

महर्षि वाल्मीकि के इस आदि काव्य में धर्म, अध्यात्म नीति तथा मानव जीवन निर्माण की समस्त सामग्री वर्णित है। वाल्मीकि के इस अमर ग्रंथ रामायण में परिवार, समाज, राष्ट्र के सर्वांगीण कल्याण के सूत्र निहित हैं। यह ग्रंथ भारतीय सनातन संस्कृति के उत्कृष्ट सांस्कृतिक तथा नैतिक मूल्यों का संवाहक ग्रंथ है।

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