Maharashtra Elections: राहुल गांधी के लिए महाराष्ट्र जीतना जरूरी, चूके तो कांग्रेस में मचेगी भगदड़

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Maharashtra Elections: राहुल गांधी के लिए महाराष्ट्र जीतना जरूरी, चूके तो फिर मचेगी कांग्रेस में भगदड़
Maharashtra Elections: राहुल गांधी के लिए महाराष्ट्र जीतना जरूरी, चूके तो फिर मचेगी कांग्रेस में भगदड़

Rahul Gandhi Maharashtra Assembly Elections,. अजीत मेंदोला, (आज समाज), नई दिल्ली: महाराष्ट्र में बुधवार को होने वाली वोटिंग कांग्रेस और उनके सर्वोच्च नेता राहुल गांधी के लिए बहुत अहम है।क्योंकि महाराष्ट्र में भी अगर कांग्रेस और उसके सहयोगी सरकार बनाने से चूके तो सबसे ज्यादा असर राहुल और कांग्रेस पर ही पड़ने वाला है। वोटिंग से काफी कुछ संकेत मिल जाएंगे कि परिणाम वाले दिन 23 नवंबर को क्या होने जा रहा है।इन चुनाव के तीन माह बाद बिहार और दिल्ली में चुनाव होने हैं। हार से कांग्रेसियों में हताशा फैलेगी। जिससे इन राज्यों के कुछ और नेता पार्टी भी छोड़ सकते हैं।

झारखंड में हार का कांग्रेस पर बहुत असर नहीं 

यही नहीं कर्नाटक,तेलंगाना और हिमाचल जैसे राज्यों पर भी संकट आ सकता है।महाराष्ट्र में कांग्रेस की जीत ही स्थिति को संभाल सकती है। हालांकि झारखंड का चुनाव भी अहम है,लेकिन वहां पर हार हुई तो वह हेमंत सोरेन सरकार की होगी।कांग्रेस पर बहुत असर नहीं पड़ेगा,लेकिन तीन माह बाद होने वाला बिहार चुनाव जीतने इंडिया गठबंधन की राह मुश्किल कर देगा।

कांग्रेस के लिहाज से अच्छी नहीं बताई जा रही रिपोर्ट

हरियाणा के बाद कांग्रेस और राहुल गांधी का बहुत कुछ महाराष्ट्र में दांव पर लगा है।वोटिंग से पहले महाराष्ट्र को जानने वालों की रिपोर्ट कांग्रेस के लिहाज से अच्छी नहीं बताई जा रही। जो रिपोर्ट आ रही हैं उनमें महाविकास आघाड़ी में सबसे ज्यादा सीट कांग्रेस की आएंगी ,लेकिन सबसे बड़ा झटका उद्धव ठाकरे की पार्टी को लग सकता है।झटका शायद इस तरह का हो सकता है कि कांग्रेस,उद्धव और शरद पंवार की पार्टी बहुमत के करीबी ही न पहुंच पाए। ऐसे में कौन कहां जाएगा कह पाना मुश्किल है।

बहुमत न आने पर मोल तोल

बहुमत न आने पर साथ चुनाव लड़ रहे सहयोगी ही बीजेपी से मोल तोल भी कर सकते हैं।कई तरह की कयासबाजी महाराष्ट्र को लेकर शुरू हो गई है।हरियाणा में हुई हार के बाद कांग्रेस खुल कर बोलने से बच रहे हैं।हरियाणा के बाद महाराष्ट्र में भी राहुल गांधी ने ही अपने हिसाब से फैसले किए। हरियाणा में राहुल गांधी स्थिति को समझ ही नहीं पाए या उन्हें समझने ही नहीं दिया गया। उनके करीबियों ने जो समझाया वही समझा।इसलिए राहुल ने सब कुछ पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर छोड़ दिया।उनके हिसाब से टिकट बांटे। हुड्डा और शैलजा की आपसी लड़ाई को गंभीरता से नहीं लिया जिसके चलते पार्टी चुनाव हार गई।

एक दशक से आपसी लड़ाई से जूझ रहा था हरियाणा 

हैरानी की बात यह है कि हरियाणा पिछले एक दशक से आपसी लड़ाई से जूझ रहा था।राहुल मस्त थे।जबकि आपसी लड़ाई के चलते कांग्रेस जीता जा सकने वाला राजस्थान हार गई थी।महाराष्ट्र में पहले ही कई दिग्गज कांग्रेसी पार्टी छोड़ चुके थे।जो पार्टी में रह गए थे उनमें से अधिकांश ने आलाकमान को चेता दिया था कि उद्धव ठाकरे को साथ लेने में कोई फायदा नहीं है।अकेले लड़ने में फायदा है।चुनाव बाद गठबंधन करना ठीक रहेगा। लेकिन राहुल गांधी उद्धव ठाकरे को छोड़ना नहीं चाहते थे।

ठाकरे को लेकर आमजन में सहानुभूति

कांग्रेस के कुछ चुनिंदा रणनीतिकारों को लगता था कि ठाकरे को लेकर आमजन में सहानुभूति है। उसका उन्हें लाभ मिलेगा। ये किसी ने आंकलन नहीं किया कि संगठन संभालने वाले एकनाथ शिंदे के साथ कार्यकर्ता भी शिफ्ट हो गए। उद्धव ठाकरे के साथ कार्यकर्ता नहीं नेता रह गए थे। संजय राउत प्रवक्ता बन नुकसान ही कर रहे थे। बीजेपी ने अपने तरीके से संयुक्त हो कर चुनाव को मैनेज किया वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस भ्रमित रही।

उद्धव ठाकरे की अपनी राजनीति

शरद पवार चुपचाप लगे रहे। उद्धव ठाकरे की अपनी राजनीति रही। बीजेपी ने महाराष्ट्र के चुनाव को हिंदुत्व की पिच पर खेल ठाकरे को फंसा दिया।महाविकास आघाड़ी अपने आप फंस गया।मंगलवार वोटिंग के बाद पता चल जाएगा कि हिंदू वोट ठाकरे को कितना प्रतिशत मिलता दिख रहा है।

बाकी 23 नवंबर को परिणाम बता देंगे ठाकरे कहां खड़े है।लेकिन परिणाम महाविकास आघाड़ी के पक्ष में नहीं आए तो राहुल गांधी सबके निशाने पर आ जाएंगे।लोकसभा चुनाव के बाद राहुल को विपक्ष ने स्वीकार लिया था,लेकिन अनुकूल परिणाम नहीं आने पर सवाल खड़े होंगे।पार्टी में भी बेचैनी हो सकती है।उनकी बहन प्रियंका गांधी वायनाड में फंसी हुई है।क्योंकि जीत उस हिसाब की नहीं होगी जो वह चाहती थी।राहुल के लिए कांग्रेस को एक जुट रखने के लिए फिर बड़ी ताकत लगानी होगी।दिल्ली और बिहार में कांग्रेस में सेंध लगाना आसान हो जाएगा।

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