Madras High Court: वन संरक्षण संशोधन बिल 2023 के लिए लोगों के सुझाव मांगने का रास्ता साफ़, मद्रास हाईकोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक

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मद्रास हाईकोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक
मद्रास हाईकोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक

Aaj Samaj (आज समाज),Madras High Court, नई दिल्ली :

1. राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद के साले साधु यादव ने कोर्ट में किया सरेंडर, कहा पहला अपराध है जज साहब, माफ कर दीजिए’,

राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद के साले और पूर्व सीएम राबड़ी देवी के भाई अनिरुद्ध प्रसाद उर्फ साधु यादव ने गोपालगंज की एमपी-एमएलए कोर्ट में सरेंडर कर दिया। चुनाव आचार संहिता उल्लंघन के तीन साल पुराने मामले में कोर्ट ने
बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के मामा और पूर्व सांसद साधु यादव को दोषी करार दिया और इस मामले में ₹1000 का जुर्माना लगाया।

अभियोजन पदाधिकारी आनंद शंकर शर्मा ने कहा कि पूर्व सांसद अनिरुद्ध प्रसाद उर्फ साधु यादव ने अदालत में गुहार लगाते हुए कहा ‘आदर्श आचार संहिता का यह पहला अपराध है, भविष्य में इस तरह के किसी आपराधिक गतिविधि में शामिल नहीं होंगे। इतना ही नही उन्होंने यह भी कहा कि आगे हमेशा कानून और एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करेंगे।

अदालत ने पूर्व सांसद की दलीलों को सुनने के बाद भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के तहत ₹1000 का जुर्माना लगाया।इसके बाद पूर्व सांसद के तरफ से जुर्माना राशि जमा कराया गया और फिर उन्हें अदालत ने नियमित जमानत देते हुए बरी कर दिया।

दरसअल 16 अक्तूबर 2020 को विधानसभा चुनाव के दौरान बसपा प्रत्याशी साधु यादव पर बिना अनुमति के जुलूस हजियापुर से निकाल कर मौनिया चौक की ओर ले जाया गया और इस दौरान पूरे शहर में नारेबाजी की गयी। उस समय नगर थाने में सदर प्रखंड के सीओ विजय सिंह के द्वारा आदर्श आचार संहित उल्लंघन की प्राथमिकी दर्ज करायी थी। इसी मामले में कोर्ट ने उन्हें समन जारी किया था।

2. 2020 दिल्ली दंगा मामला: अदालत ने पिता-पुत्र को सज़ा सुनाते हुए कहा बेटे को सही रास्ता दिखाने के बजाय खुद भयावह कृत्य किया

2020 दिल्ली दंगे मामले में दिल्ली की कड़कड़डुमा कोर्ट ने पिता मिठन सिंह और उसके बेटे जॉनी कुमार को 3 साल और बेटे को 7 साल कठोर कारावास की सजा सुनाई है। कड़कड़डुमा कोर्ट ने सजा सुनाते हुए कहा पिता ने बेटे को सही रास्ता दिखाने के बजाय खुद भयावह कृत्य किया।

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पुलस्त्य प्रमाचला की अदालत ने मिठन सिंह और उसके बेटे जॉनी कुमार को धारा-147 (दंगा करना) और धारा-436 (गृह आदि को नष्ट करने के आशय से अग्नि या विस्फोटक पदार्थ का दुरुपयोग) के तहत दोषी करार दिया था।

कोर्ट ने तल्ख़ टिप्पणी करते हुए कहा कि सांप्रदायिक दंगे लोक अव्यवस्था का सबसे हिंसक प्रारूप है जो समाज को प्रभावित करता है। कोर्ट ने कहा कि सांप्रदायिक दंगा वह खतरा है, जो हमारे देश के नागरिकों के बीच बंधुत्व की भावना के लिए एक गंभीर खतरा है।इन दोनों आरोपियों के खिलाफ खजूरी खास पुलिस ने दो एफआईआर दर्ज की थी।

अदालत ने अपने फ़ैसले में कहा कि सांप्रदायिक दंगों से न केवल जीवन और संपत्ति का नुकसान होता है बल्कि सामाजिक ताने-बाने को भी बहुत नुकसान होता है।

कोर्ट ने दोषियों के वकील की इस दलील को भी नकारा दिया कि अदालतें केवल मामले का निर्णय करने के लिए होती हैं, न कि समाज को संदेश देने के लिए होती हैं। दरसअल दंगों से जुड़े मामले में खजूरी खास पुलिस ने मिठन सिंह और उसके बेटे जॉनी कुमार के खिलाफ दो प्राथमिकी दर्ज की थी।

3. वन संरक्षण संशोधन बिल 2023 के लिए लोगों के सुझाव मांगने का रास्ता साफ़, मद्रास हाईकोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक

सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें मद्रास हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार की एक प्रेस विज्ञप्ति को जारी करने पर रोक लगा दी थी। इस विज्ञप्ति ने वन संरक्षण संशोधन बिल 2023 के लिए लोगों के सुझाव मांगे गए थे।

दरअसल, वन संरक्षण संशोधन बिल 2023 के लिए सुझाव सिर्फ हिंदी और अंग्रेजी में मांगे गए थे, जिसे लेकर आपत्ति थी। इसके बाद हाईकोर्ट में तमिल भाषा में जानकारी की याचिका दायर की गई और हाईकोर्ट ने प्रेस विज्ञप्ति पर रोक लगा दी थी। हाईकोर्ट के इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचीका दाखिल की गई थी।

सॉलिसिटर जरनल तुषार मेहता ने कहा अदालत को बताया कि लोकसभा सचिवालय सोमवार तक तमिल भाषा में बिल की कॉपी जारी कर देगा, जिससे याचिकाकर्ता की आपत्ति का भी समाधान हो जाएगा। सालीसिटर जनरल ने कहा कि हाईकोर्ट को विधायी प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।

वकील जी.थीरन थिरुमुरुगन ने सरकार की प्रेस विज्ञप्ति के खिलाफ याचिका में कहा था कि अगर संशोधन विधेयक या प्रेस विज्ञप्ति को स्थानीय भाषा (तमिल) में उपलब्ध नहीं कराया गया तो लोगों से सुझाव मांगने का उद्देश्य पूरा नहीं होगा। याचिकाकर्ता ने तमिल भाषा में विधेयक की प्रति उपलब्ध कराने की मांग की थी।

4 *बलिया की एमपी-एमएलए कोर्ट ने योगी सरकार के पूर्व मंत्री को सबूतों के अभाव में किया बरी*

उत्तर प्रदेश के बलिया जिले की विशेष एमपी-एमएलए अदालत ने उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री उपेंद्र तिवारी और तीन अन्य को सबूतों के अभाव में फेफना में राष्ट्रीय राजमार्ग को कथित रूप से अवरुद्ध करने से संबंधित 13 साल पुराने एक मामले में बरी कर दिया है।

अभियोजन पक्ष के अनुसार पांच अगस्त 2010 को फेफना थाने के तत्कालीन प्रभारी टीपी सिंह ने तिवारी, भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष देवेंद्र यादव व दो अन्य के खिलाफ धारा 143 (जानबूझकर गैर कानूनी जमावड़े में शामिल होने व परेशान करने) के तहत मामला दर्ज कराया था।

आरोप है कि फेफाना सीट से दो बार भाजपा विधायक रहे तिवारी ने विभिन्न मांगों को लेकर फेफना तिराहे पर भीड़ को एकत्रित कर प्रात: 7 बजे से 11 बजे तक राष्ट्रीय राजमार्ग को अवैध रूप से जाम कर दिया था।

विशेष न्यायाधीश तपस्या त्रिपाठी ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद साक्ष्य के अभाव में तिवारी समेत चारों आरोपियों को बरी कर दिया।

तिवारी योगी आदित्यनाथ सरकार के पहले कार्यकाल में खेल मंत्री थे।

5 *देश द्रोह कानूनः लॉ कमीशन की रिपोर्ट प्रेरक है, बाध्यकारी नहीं, सभी से बात कर लेंगे फैसला- मेघवाल*

केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने शुक्रवार को कहा कि राजद्रोह कानून (भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए) पर अंतिम फैसला लेने से पहले सरकार सभी हितधारकों के साथ विचार-विमर्श करेगी। मंत्री ने आगे कहा कि रिपोर्ट में की गई सिफारिशें प्रेरक हैं लेकिन बाध्यकारी नहीं हैं।

एक ट्वीट में मेघवाल ने कहा, “राजद्रोह पर विधि आयोग की रिपोर्ट व्यापक परामर्श प्रक्रिया के चरणों में से एक है। रिपोर्ट में की गई सिफारिशें प्रेरक हैं लेकिन बाध्यकारी नहीं हैं। अंतत: सभी हितधारकों से परामर्श के बाद ही अंतिम निर्णय लिया जाएगा।”

इससे पहले कानून व्यवस्था में राजद्रोह कानून की निरंतरता का समर्थन करते हुए, भारत के विधि आयोग ने कहा है कि आईपीसी की धारा 124ए को “आंतरिक सुरक्षा खतरों” के कारण और राज्य के खिलाफ अपराधों को रोकने के लिए बनाए रखने की आवश्यकता है, हालांकि, कुछ संशोधन हो सकते हैं। आयोग ने कानून मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट में कहा कि भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरे मौजूद हैं और नागरिकों की स्वतंत्रता तभी सुनिश्चित की जा सकती है जब राज्य की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए।

इसने आगे कहा कि सोशल मीडिया की भारत के खिलाफ कट्टरता का प्रचार करने और सरकार को नफरत में लाने में ‘विदेशी शक्तियों की पहल और सुविधा’ में कई बार ‘प्रसार’ भूमिका पाई जाती है। इसके लिए और भी जरूरी है कि धारा 124ए लागू हो। अनुच्छेद 19 (2) के तहत देशद्रोह को “उचित प्रतिबंध” कहते हुए, विधि आयोग ने कहा कि धारा 124ए की संवैधानिकता से निपटने के दौरान सर्वोच्च न्यायालय कह चुका है कि यह कानून ‘संवैधानिक’ था क्योंकि जिस प्रतिबंध को लागू करने की मांग की गई थी वह एक उचित प्रतिबंध था।

“यदि राजद्रोह को एक औपनिवेशिक युग का कानून माना जाता है, तो उस गुण के आधार पर, भारतीय कानूनी प्रणाली का पूरा ढांचा एक औपनिवेशिक विरासत है। मात्र तथ्य यह है कि एक कानूनी प्रावधान अपने मूल में औपनिवेशिक है, इस मामले को अपने आप में मान्य नहीं करता है। आयोग ने आगे कहा कि प्रत्येक देश को अपनी “वास्तविकताओं” से जूझना पड़ता है और राजद्रोह कानून को केवल इसलिए “निरस्त नहीं किया जाना चाहिए क्यो कि अन्य देशों ने भी ऐसा किया है।

विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में अनिवार्य प्रारंभिक जांच, प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों और सजा में संशोधन सहित प्रावधान में संशोधन के संबंध में कुछ सिफारिशें भी की हैं। “देशद्रोह कानून की व्याख्या, समझ और उपयोग में अधिक स्पष्टता लाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के केदार नाथ के फैसले को लागू करना। राजद्रोह और अन्य प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों के लिए प्राथमिकी दर्ज करने से पहले एक पुलिस अधिकारी द्वारा साक्ष्य का पता लगाने के लिए एक अनिवार्य प्रारंभिक जांच का आदेश दिया जाना चाहिए।”

भारत संघ ने सर्वोच्च न्यायालय को आश्वासन दिया कि वह धारा 124ए की फिर से जांच कर रहा है और अदालत ऐसा करने में अपना बहुमूल्य समय नहीं गंवा सकती है। उसी के अनुसार और 11 मई, 2022 को पारित आदेश के तहत, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों को धारा 124ए के संबंध में जारी सभी जांचों को निलंबित करते हुए कोई भी प्राथमिकी दर्ज करने या कोई भी कठोर कदम उठाने से परहेज करने का निर्देश दिया। इसके अलावा, यह भी निर्देश दिया थ कि सभी लंबित परीक्षणों, अपीलों और कार्यवाही को स्थगित रखा जाए।

6 *’हिमाचल हाईकोर्ट का बड़ा फैसला- पिता के बाद बच्चों की नैसर्गिक अभिभावक मां ही है’

हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा है कि नाबालिग बच्चों की प्राकृतिक अभिभावक  पिता के बाद मां ही हो सकती  है। हिमाचल उच्च न्यायालय के  न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर ने पिछले साल 23 नवंबर को नालागढ़ के उप-मंडल मजिस्ट्रेट द्वारा पारित एक आदेश के खिलाफ दायर एक याचिका पर यह आदेश पारित किया। जिसमें उन्होंने दादा-दादी को निर्देशित किया कि नाबालिग बच्चों की कस्टडी मां को सौंपी जाए।

यह प्रकरण सोलन जिले की प्रीति देवी का है। प्रीति की शादी सोलन जिले की रामशहर तहसील के बहलम गांव के अमर सिंह से हुई थी। वैवाहिक विवाद के कारण प्रीति देवी और उसका पति अलग-अलग रह रहे थे। 17 जुलाई, 2022 को अमर सिंह ने आत्महत्या कर ली।

अमर सिंह के पिता दर्शन सिंह ने प्रीति देवी के खिलाफ पुलिस में मामला दर्ज कराया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उनके बेटे ने अपनी पत्नी की क्रूरता के कारण आत्महत्या की है। नतीजतन, 18 जुलाई को प्रीति को  गिरफ्तार कर लिया गया मगर 27 जुलाई को जमानत पर रिहा कर दिया गया। इस दौरान प्रीति के बच्चे  दादा-दादी के पास रहे।

जमानत पर रिहा होने के बाद प्रीति देवी ने अपने बच्चों की कस्टडी के लिए एसडीएम नालागढ़ की अदालत में अर्जी दाखिल की।  एसडीएम नालागढ़ ने अपने 23 नवंबर 2022 के आदेश में दादा-दादी को नाबालिग बच्चों की कस्टडी मां को सौंपने का निर्देश दिया था। एसडीएम नालागढ़ के आदेश के खिलाफ दादा-दादी ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
याचिकाकर्ता और प्रतिवादी के वकीलों को सुनने के बाद, अदालत ने कहा कि यह आरोप कि मां ने पति को आत्महत्या के लिए उकसाया, अभी तक साबित नहीं हुआ है।

इसके अलावा, उसे अपने नाबालिग बच्चों की कस्टडी के लिए अक्षम या अपात्र घोषित नहीं किया गया है। इसलिए, पिता की मृत्यु के बाद, मां ही नाबालिग बच्चों की संरक्षकता या हिरासत रखने वाली अगली व्यक्ति होती है।
हालाँकि, न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया है कि बच्चों की अभिरक्षा के लिए माँ का अधिकार पूर्ण नहीं है, लेकिन बच्चों के कल्याण के अधीन है और यदि उचित कार्यवाही के मामले में वह अक्षम पाई जाती है या बच्चों की अभिरक्षा या बच्चों के कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए अयोग्य पाई जाती है तो वह बच्चों को अपने पास रखने का अधिकार खो देगी।
सुनवाई के दौरान अदालत ने पाया कि मजिस्ट्रेट की अदालत में कार्यवाही का रिकॉर्ड भी उचित तरीके से नहीं रखा गया था।  “मजिस्ट्रेट द्वारा किस तारीख को किस आदेश को पारित किया गया था, यह इंगित करने वाला कोई अलग आदेश पत्रक भी नहीं था।

न्यायालय ने राज्य सरकार के मुख्य सचिव को व्यक्तिगत रूप से मामले को देखने और न्यायिक कार्यवाही करने वाले अधिकारियों द्वारा न्यायिक कार्यवाही के रिकॉर्ड का उचित रखरखाव सुनिश्चित करने का निर्देश दिया।

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