Madhya Pradesh: साध्वी हर्षा रिछारिया ने बाबा महाकाल की भस्म आरती में लिया भाग

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Madhya Pradesh: साध्वी हर्षा रिछारिया ने बाबा महाकाल की भस्म आरती में लिया भाग लिया
  • महादेव की कृपा के बिना नहीं होता कुछ : साध्वी

Harsha Richhariya At Baba Mahakal, भोपाल: साध्वी हर्षा रिछारिया ने बाबा महाकालेश्वर की विश्व प्रसिद्ध भस्म आरती में भाग लिया है। उन्होंने वहां नंदी मंडपम में बैठकर दिव्य वातावरण का अनुभव करने के साथ ही भक्ति में लीन होकर बाबा से अपने निरंतर आशीर्वाद के लिए प्रार्थना की। बता दें कि बाबा महाकालेश्वर मंदिर मध्य प्रदेश के प्राचीन शहर उज्जैन में शिप्रा नदी के किनारे स्थित है।

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प्रयागराज से लौटने के बाद यह मेरा दूसरा दर्शन

प्रसिद्ध महाकालेश्वर मंदिर में दर्शन के अपने अनुभव को साझा करते हुए हर्षा रिछारिया ने ंने कहा, प्रयागराज से लौटने के बाद यह मेरा दूसरा दर्शन है। उन्होंने कहा, यह अपने आप में एक अवर्णनीय अनुभव है। भस्म आरती में फिर से शामिल होना वास्तव में विशेष लगता है। साध्वी ने कहा, महादेव की कृपा के बिना कुछ भी नहीं होता है।

‘भस्म आरती’ बाबा महाकालेश्वर का एक प्रसिद्ध अनुष्ठान

साध्वी ने बताया कि और भी कई भक्तों ने अलसुबह से ही मंदिर में भगवान शिव का आशीर्वाद लेने के लिए कतारों में लगना शुरू कर दिया और विशेष ‘भस्म आरती’ में भाग लिया। ‘भस्म आरती’ यानी भस्म से अर्पण यहां (बाबा महाकालेश्वर) का एक प्रसिद्ध अनुष्ठान है। यह सुबह 3:30 से 5:30 के बीच ‘ब्रह्म मुहूर्त’ के दौरान किया जाता है।

पूरी होती हैंभक्तों की मनोकामनाएं

बाबा महाकालेश्वर की भस्म आरती को दिव्य और रहस्यमय माना जाता है और ब्रह्म मुहूर्त के दौरान किए जाने वाले पवित्र अनुष्ठान को देखने और बाबा महाकाल से आशीर्वाद लेने के लिए दूर-दूर से भक्त महाकाल मंदिर में एकत्रित होते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो भक्त श्रावण मास में बाबा महाकाल की भस्म आरती में भाग लेता है, उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। भस्म आरती में भाग लेने वाले भक्त की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

ब्रह्म मुहूर्त में खोले जाते हैं बाबा महाकाल के पट

मंदिर के पुजारी के अनुसार, परंपरा के अनुसार ब्रह्म मुहूर्त में बाबा महाकाल के पट खोले गए। उसके बाद भगवान महाकाल को दूध, दही, घी, शक्कर और शहद से बने पंचामृत से पवित्र स्नान कराया गया। इसके बाद भांग और चंदन से बाबा महाकाल का श्रृंगार किया गया। उसके बाद ढोल-नगाड़ों और शंख की थाप के बीच अनूठी भस्म आरती और धूप-दीप आरती की गई।

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