जंबूदीपे भारतखंडे में आदि काल से प्रेम चला आ रहा है। ईश्वरीय प्रेम का जिक्र करते ही सबसे पहले राधा कृष्ण का नाम आता है। इनके प्रेम का उदाहरण आज भी प्रासंगिक है। मगर मैं इनके प्रेम को सफल नहीं मानता। ये प्रेम, प्रेम तक ही सीमित रह गया। विवाह में परिणत नहीं हो सका। राधा और कृष्ण अपने, अपने प्रेम के साथ जिये मगर पति-पत्नी न हो सके। विवाह किसी और से, प्रेम किसी और से। दोनों के पति, पत्नियां जीवन भर इसी में कुढ़ते रहे होंगे कि उनकी पत्नी, पति किसी और से प्रेम करते हैं।
अब बात करते हैं श्रीराम सीता की। तो इनका प्रेम, विवाह पूर्व नहीं था, सीधे विवाह था। वो भी स्वयंवर वाला। वो तो चलिए श्रीराम अवतार थे। धनुष उन्हें ही तोड़ना था। मगर अगर धनुष बाइचांस किसी और से टूट जाता तो। खैर श्रीराम सीता का प्रेम, विवाह बाद का था। इसमें भी दोनों कभी चैन से रह नहीं पाये। विवाह के कुछ ही दिनों बाद वनवास। फिर अपहरण। फिर युद्ध। युद्ध के बाद वापस भी घर लौटे तो फिर कुछ दिनों में मामूली बात में अलग होना पड़ा। इस बार ऐसे अलग हुए कि फिर मिल न सके। यानि दोनों अवतारों की प्रेम कहानी काफी दुखांत रही।
फाइनली बाबा की बात। जय हो बाबा की। हमारे बाबा आदि शिव और आदि शक्ति के प्रेम का क्या बखान करूं। इनके प्रेम की अभिव्यक्ति ही तो सृष्टि है। खैर मुद्दे पर आते हैं। क्या अद्भभुत प्रेम कहानी है।। सती ने शिव को देखा। प्रेम करने लगीं। उनके कठिन प्रयासों से शिव ने उनका प्रेम निवेदन स्वीकार किया। दोनों का प्रेम, विवाह तक पहुंचा। इतना अटूट प्रेम कि विभिन्न कारणों से एक जन्म में अलग हुए तो दूसरे जन्म में फिर मिले। फिर प्रेम हुआ जो विवाह में फिर तब्दील हुआ। शंकर पार्वती की एक सुंदर सुखी आनंदमय गृहस्थी रही। शंकर के रूप में आदर्श प्रेमी और पति जिसने जन्म जन्म का साथ वाली परिभाषा को चरितार्थ किया। पार्वती के रूप में एक आदर्श प्रेमिका, पत्नी और मां। जिसने राजघराने से निकल कर जंगल पहाड़ आदि पर सामान्य गृहस्थी बसायी और विपरीत परिस्थितियों के बावजूद निभायी। गणेश और कार्तिकेय जैसे बच्चों का पालन पोषण कर बड़ा किया। जिन्होंने आगे चलकर अपने पिता की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए जगत कल्याण का काम किया।
ध्यान दीजिएगा श्रीराम, श्रीकृष्ण से जुड़े कौन से पर्व हैं। जन्मोत्सव, यानि श्रीरामनवमी और श्रीकृष्ण जन्माष्टमी जबकि बाबा के नाम का कौन सा पर्व है, शिवरात्रि यानि शंकर पार्वती के विवाह का उत्सव। बल्कि कहें कि प्रेम विवाह का पर्व।
श्रीराम और श्रीकृष्ण अपनी राजनीति कूटनीति और युद्ध नीति के लिए आज भी प्रासंगिक हैं। जबकि बाबा आम लोगों के बीच आम लोगों की तरह रहते हुए आनंदमय जीवन जीने के दर्शन और मोक्ष प्राप्ति के साधन बताते हैं। हमारी सनातन परंपरा में कन्यायें सोमवार का व्रत कर शंकर जैसा वर मांगती हैं न कि कृष्ण जैसा प्रेमी अथवा राम जैसा पति। जबकि दोनों राजघराने के युवराज थे। तभी तो मैं कहता हूं कि सफल प्रेम, विवाह और दांपत्य के आदर्श बाबा की जय हो माता की जय हो।
#राजीवतिवारीबाबा
#बाबाकीजयहो #नवयोग एक नये युग का आरंभ
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