इशिका ठाकुर,करनाल:
- करनाल में 11 दिसंबर को आयोजित होने वाले भगवान परशुराम महाकुंभ की भव्यता के लिए हुआ मंथन
भगवान परशुराम जी त्रेता युग (रामायण काल) में एक ब्राह्मण ऋषि के यहाँ जन्मे थे, जो भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं। पौरोणिक वृत्तान्तों के अनुसार उनका जन्म महर्षि भृगु के पुत्र महर्षि जमदग्नि द्वारा सम्पन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न देवराज इन्द्र के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को मध्यप्रदेश के इन्दौर जिला में ग्राम मानपुर के जानापाव पर्वत में हुआ। वे भगवान विष्णु के आवेशावतार हैं। महाभारत और विष्णुपुराण के अनुसार परशुराम जी का मूल नाम राम था किन्तु जब भगवान शिव ने उन्हें अपना परशु नामक अस्त्र प्रदान किया तभी से उनका नाम परशुराम जी हो गया।
राज्य स्तरीय सम्मेलन की सफलता के लिए मंथन किया
य़ह बात एचआईआईडीसी के चीफ कॉर्डिनेटर सुनील शर्मा ने करनाल में 11 दिसंबर को सेक्टर 12 में आयोजित होने वाले भगवान परशुराम महाकुंभ के निमित्त पीडब्ल्यूडी रेस्ट हाऊस में आयोजित प्रबुद्धजनों की बैठक में कही। इस दौरान बैठक में समाज के विकास एवं उत्थान पर मंथन किया गया। राज्य स्तरीय सम्मेलन की सफलता के लिए मंथन किया गया और जिम्मेदारी सौंपी गई।
यह भी कहा गया कि समस्त हरियाणा से बड़ी संख्या में करनाल के राज्यस्तरीय सम्मेलन में भागीदारी होगी। समारोह का न्यौता देते हुए करनाल ब्राह्मण सभा के अध्यक्ष सुरेंद्र शर्मा बड़ौता ने कहा कि समारोह में मुख्यमंत्री मनोहर लाल बतौर मुख्य अतिथि शिरकत करेंगे और ब्राह्मण समाज के सांसद, मंत्री व विधायक शिरकत करेंगे। उन्होंने कहा कि प्रस्तावित राज्यस्तरीय महाकुम्भ करनाल में किया जाएगा। सम्मेलन में मुख्य मांग ब्राह्मण कल्याण की होगी।
भगवान परशुराम जी के बारे में सर्व समाज को जानकारी होनी चाहिए
बैठक में शीशपाल राणा ने कहा कि भगवान परशुराम जी सर्व समाज के पूजनीय हैं, इसलिए इस महाकुंभ में सर्व समाज की भागीदारी होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि भगवान परशुराम जी के बारे में सर्व समाज को जानकारी होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि पितामह भृगु द्वारा सम्पन्न नामकरण संस्कार के अनन्तर परशुराम राम जी राम कहलाए। वे जमदग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य और शिवजी द्वारा प्रदत्त परशु धारण किये रहने के कारण वे परशुराम जी कहलाये। आरम्भिक शिक्षा महर्षि विश्वामित्र एवं ऋचीक के आश्रम में प्राप्त होने के साथ ही महर्षि ऋचीक से शार्ङ्ग नामक दिव्य वैष्णव धनुष और ब्रह्मर्षि कश्यप से विधिवत अविनाशी वैष्णव मन्त्र प्राप्त हुआ। तदनन्तर कैलाश गिरिश्रृंग पर स्थित भगवान शंकर के आश्रम में विद्या प्राप्त कर विशिष्ट दिव्यास्त्र विद्युदभि नामक परशु प्राप्त किया। शिवजी से उन्हें श्रीकृष्ण का त्रैलोक्य विजय कवच, स्तवराज स्तोत्र एवं मन्त्र कल्पतरु भी प्राप्त हुए। चक्रतीर्थ में किये कठिन तप से प्रसन्न हो भगवान विष्णु ने उन्हें त्रेता में रामावतार होने पर तेजोहरण के उपरान्त कल्पान्त पर्यन्त तपस्यारत भूलोक पर रहने का वर दिया। समारोह की भव्यता को लेकर कुलदीप कौशिक ने कहा कि ब्राह्मण समाज ज्यादा से ज्यादा संख्या में अपनी उपस्थिति दर्ज करेगा
इस अवसर पर मौजूद रहे
इस अवसर पर विकास शर्मा, दिनेश कुमार, ईश्वर चंद, हवा सिंह शर्मा, राजिंदर शर्मा, रमेश शर्मा, सत्यवान शर्मा, होशियार सिंह, रविदत्त शर्मा, केसी शर्मा, अनिल शर्मा, सज्जन अत्रि, पंकज शर्मा, मनीष शर्मा, विकास शर्मा, प्रवीन शर्मा, विनोद शर्मा, डॉ पवन शर्मा, आशीष शर्मा, ओमप्रकाश शर्मा, राजीव शर्मा, वासुदेव शर्मा, रघबीर शर्मा, सतीश शर्मा, कर्मवीर शर्मा समेत सेंकड़ों लोग मुख्य रूप से मौजूद रहे।
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