कुरूक्षेत्र की ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक विरासत का महत्व इसी से लगाया जा सकता है कि कौरवों एवं पाण्डवों के मध्य कुरूक्षेत्र का ऐतिहासिक युद्ध लड़ा गया जिसमें श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश देकर कर्म दर्शन का महत्व समझाया था। इस स्थान की प्राचीनता का बोध इसी से होता है कि ऋग्वेद एवं यजुर्वेद में अनेक स्थानों पर इस स्थल का वर्णन किया गया है। साथ ही पुराणों, स्मृतियों एवं वेद व्यास द्वारा रचित महाभारत महाकाव्य में भी इस स्थल का वर्णन किया गया है। हिन्दुओं का यह प्रमुख तीर्थ स्थल 1530 वर्ग किलीमीटर में फैला हुआ है, जिसमें कुरूक्षेत्र के साथ-साथ कैथल, करनाल, पानीपत एवं जिन्द क्षेत्र शामिल हैं। कौरवों एवं पाण्डवों के कुरू ने यहां तालाब खुदवाया था और उसी के नाम पर इस क्षेत्र का नाम कुरूक्षेत्र रखा गया।
ज्योतिसर कुरूक्षेत्र-पहोवा मार्ग पर थानेसर से 5 किलोमीटर पश्चिम में स्थित है। ज्योतिसर में ही भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। यहां स्थानानेश्वर नामक शिव मंदिर का भी अपना महत्व है जहां कृष्ण ने अर्जुन के साथ शिव की उपासना कर युद्ध में विजय होने का आशीर्वाद प्राप्त किया था। यह शिव का मंदिर कश्मीर के शासक ने बनवाया था। इस जगह पर एक मूर्ति बनी है जिसमें श्रीकृण रथ पर सवार होकर सारथी के स्थान पर खड़े हैं और अर्जुन को गीता का उपदेश दे रह हैं एवं अर्जुन हाथ जोड़े हुए विनम्रतापूर्वक खड़े हुए हैं। इस मूर्ति को 1967 में कांची कामा कोटि पीठ के शंकराचार्य द्वारा बनवाया गया था। यहां सायंकाल ध्वनि एवं प्रकाश का कार्यक्रम आयोजित किया जाता है।
महाभारत कालीन घटनाओं से जुड़ा बाण गंगा कुरूक्षेत्र जिले का महत्वपूर्ण स्थान है। यह स्थान कुरूक्षेत्र से 6 किलोमीटर दूर पहेवा जाने वाले मार्ग पर ज्योतिसर से कुछ पहले ही मुख्य मार्ग से जुड़ा हुआ एक मार्ग दयालपुरा गांव जाता है, में स्थित है। बताया जाता है कि अर्जुन के रथ के घोड़े लगातार भागने व घायल होने के कारण थक गये थे। जब श्रीकृष्ण ने अर्जुन को यह बात बताई तब अर्जुन ने इसी स्थान पर जमीन पर बाण चलाकर गंगा को प्रकट किया था और श्रीकृष्ण ने घोड़ों को पानी पिलाया और नहलाया था। एक अन्य कथानक के अनुसार शर-शैय्या पर लेटे भीष्म की प्यास बुझाने के लिए अर्जुन ने बाण से पृथ्वी फोड़कर पानी निकाला था और भीष्म की प्यास बुझाई थी। जिस स्थान पर पानी निकला था वहां आज एक कुआं बना दिया गया है। यहां भक्तों द्वारा मिट्टी के घोड़े अर्पित किये जाते हैं। यहीं पर बजरंग बली की विशाल प्रतिमा भी बनी हुई है। साथ ही शर-शैय्या पर लेटे हुए भीष्मपितामह की प्रतिमा भी बनी है।