Life and travel: जीवन और यात्रा

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पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली नहीं रहे। मेरी उसने मुलाकात 1989 में हुई थी। जेएनयू छात्र संघ के तत्कालीन महासचिव और बाद में बिहार से सांसद और केंद्र में मंत्री रहे दिग्विजय सिंह उनके मित्रों में थे। उनको अपने शोध के संदर्भ में जापान जाना था। विदाई के लिए दस-बारह लोगों की टी-पार्टी थे। अरुण जेटली और शुभ्रमण्यम स्वामी भी शरीक थे। घंटे-भर चले अनौपचारिक कार्यक्रम में भारत के विदेश सम्बंधों और अर्थिक स्थिति पर चर्चा हुई। दिग्विजय सिंह को सुखद जापान प्रवास की शुभकामनाएं दी गई।
उस समय अंदाजा लगाना मुश्किल था कि जिन विषयों पर ये लोग बात कर रहे हैं, उनमें ये तीनों ही कभी न कभी केंद्र सरकार में मंत्री भी होंगे। ये सोचा भी नहीं जा सकता था कि दिग्विजय सिंह असमय चल बसेंगे। अरुण जेटली जब चरम पर होंगे, स्वास्थ्य उनका साथ छोड़ जाएगा। उनको विनम्र श्रद्धांजलि। जीवन-मृत्य का क्रम चलता रहता है। जन्म के साथ हर्ष और मृत्यु के समय शोक का रिवाज है। एक तरह से देखें तो जीवन पृथ्वी ग्रह की यात्रा है। कुछ-कुछ कस्टमाईज्ड टूर की तरह। जहां जहां जाना है जाते रहते हैं। जिन-जिन से मिलना है, मिलते रहते हैं।
जैसे ही यात्रा की अवधि खत्म होती है, निकल लेते हैं। पीछे रह गए सगे-मित्रों-परिचितों को चले गए के नहीं होने की नई स्थिति के साथ जीने की आदत डालनी पड़ती है। पीड़ा की अनुभूति असमय मृत्यु के मामले में अधिक तीव्र होती है। अपेक्षा रहती है कि जन्म लेने वाले जीवन के चारों अवस्था का अनुभव करें। बचपन, युवा, प्रौढ़ एवं चौथेपन को प्राप्त हों। जो पहले आए हैं पहले जाएं। ऐसा होता नहीं है। डाक्टरों को भला हो जो दवाई-सर्जरी से लोगों की औसत आयु लम्बी खींचे जा रहे हैं। कहते हैं कि जो 2045 तक रह जाएंगे, उनके पास अमर होने का विकल्प होगा। ऐसा अंग-प्रत्यारोपण, नैनो-डॉट्स और मानव के मशीनीकरण से सम्भव होगा। वो एक अलग ही स्थिति होगी। तब की तब देखेंगे।
आंखों-देखा को कोई जवाब नहीं है। शिकागो के बारे में सोचता था कि ये अमेरिका का अपेक्षाकृत पिछड़ा शहर है और यहां गोली-बारी होती रहती है। लेकिन असल में ये एक निहायत की सुंदर शहर है। एकदम साफ-सुथरा। झील और पेड़-पौधों से भरा। मौसम ऐसा सुहाना कि थोड़ी-सी गर्मी पड़ी नहीं कि झमाझम बारिश शुरू हो जाती है। रिहायशी इलाके में कृत्रिम झील हैं। इसमें वर्षा का पानी इकट्ठा होता रहता है। व्यावसायिक इलाके, जिसे डाउनटाउन कहते हैं, आसमान-छूती शीशे और स्टील की इमारतों से भरे पड़ें हैं। यहां विश्व-स्तरीय यूनिवर्सिटियों की भरमार हैं। हर साल दुनियां भर से लाखों बच्चे इधर पढ़नें आते हैं। शहरीकरण और व्यवसाय के बारे में यहां से बहुत-कुछ सीखा जा सकता है। स्वच्छता और जल संरक्षण के क्षेत्र में ये काफी आगे हैं। प्रॉपर्टी-टैक्स अच्छी-खासी है लेकिन उस हिसाब से रख-रखाव भी है।
पर्यटक ट्रम्प टावर जरूर जाते हैं। मैं भी गया। एक फिलिस्तनी जोड़े की शादी थी। बराती गानों की धुन पर नाच रहे थे। आश्चर्य ये देखकर हुआ कि वे वहां भी वे फिलिस्तीनी झंडा लहरा रहे थे। सड़कें चौड़ी और सपाट थी। मोटरों की औसत स्पीड अधिक थी लेकिन लोग चक्कर काटती पुलिस के भय से ही ओवर-स्पीडिंग से बचते दिखे। अधिक शराब पीकर गाड़ी चलाने वालों के लिए फटाफट हथकड़ी और फौरन जेल का इंतजाम है। तीन-बार से अधिक पकड़े जाने पर ड्राइविंग लाइसेंस जब्त हो जाता है। गैर-नागरिकों को तो उनके देश डिपॉर्ट ही कर दिया जाता है। सरकार का मानना है कि गाड़ी चलाना आपका अधिकार नहीं है। अगर आप अपनी और औरों की जिंदगी खतरे में डालते हैं तो अपना बस्ता गोल समझें।
आबादी के हिसाब से देखें तो अमेरिका का भौगोलिक आकार काफी बड़ा है। मीलों चलते जाएं, मक्का और सोयाबीन की खेती देखने को मिलेगी। अगर एकाध-सौ करोड़ आदमी और भी आ जाएं तो यहां आसानी से अंट जाएंगे। अभी ही यहां चालीस लाख से अधिक अप्रवासी भारतीय रहते हैं। अधिकांश तमिलनाडु, आन्ध्र, गुजरात और पंजाब से हैं। होटल, पेट्रोल पम्प, दुकान और ट्रक के कारोबार में भारी संख्या में हैं। आपस में मिलते-जुलते रहते हैं। हर घर में भारत का टीवी चैनल चलता है। लोग अपने देश की पूरी खबर रखते हैं। एक समूह के तौर पर इनकी क्षवि तेज, भरोसेमंद और मेहनतकश की है।
इन्हें अपने बच्चों के अमेरिकी ढंग में रंग जाने का भय रहता है। अफसोस जताते हैं कि माता-पिता के प्रति इनके मन में वो खिंचाव नहीं है जो खुद उनमें है। कई तो अपने बच्चों को स्कूली एवं कॉलेज की पढ़ाई के लिए वापस भारत भेज देते हैं। हकीकत है कि यहां खुद कुछ करने का रिवाज है। अमीरों के बच्चे अगर अपने बाप की कमाई पर जीते हैं तो ट्रस्ट-फंड किड्स कहकर उनका मजाक उड़ाया जाता है। व्यवसाय में सुविधा के लिए कोई-कोई अंग्रेजी उपनाम भी रख लेते हैं। हरभजन हैरी हो जाता है, जसविंदर जस्सी तो आनंद एंडी। जो भी हो, खाली हाथ परदेस गए इन मेहनतकशों ने गजब का हाथ दिखाया है। अच्छा कारोबार है, समृद्ध इलाकों में रहते हैं और बड़ी गाड़ियों पर चलते हैं। दूसरों की मदद को हमेशा तत्पर रहते हैं।
अमेरिकी लोगों को बंदूक का बड़ा शौक है। हर घर में हर साइज की बंदूक मिल जाएगी। आॅटोमैटिक हथियारों को प्रतिबंधित करने की बात चल रही है लेकिन लोग इसे आत्मरक्षा के अधिकार से जोड़कर देखते हैं। जगह-जगह फायरिंग रेंज हैं। शहर-पुलिस से दूर देहाती इलाकों में लोगों के पास हजारों एकड़ में खेत हैं। वहां गोलियों की आवाज सुनाई पड़ती रहती है। लोग खुले में घातक हथियार से टारगेट प्रैक्टिस करते मिल जाएंगे।
(लेखक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी हैं।)