***|| जय श्री राधे ||***
*** महर्षि पाराशर पंचांग ***
*** अथ पंचांगम् ***
****ll जय श्री राधे ll****
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दिनाँक:-11/06/2022, शनिवार
एकादशी, शुक्ल पक्ष
ज्येष्ठ
“””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””(समाप्ति काल)
*** दैनिक राशिफल ***
देशे ग्रामे गृहे युद्धे सेवायां व्यवहारके।
नामराशेः प्रधानत्वं जन्मराशिं न चिन्तयेत्।।
विवाहे सर्वमाङ्गल्ये यात्रायां ग्रहगोचरे।
जन्मराशेः प्रधानत्वं नामराशिं न चिन्तयेत ।।
तुला
आज का दिन आपके लिए प्रसन्नता दिलाने वाला रहेगा, क्योंकि आपके चारों ओर का वातावरण भी सुखमय रहेगा। ऐश्वर्य पर व्यय होगा। स्वास्थ्य कमजोर रहेगा। विवाद को बढ़ावा न दें। कीमती वस्तुएं संभालकर रखें। राजकीय कार्य में परिवर्तन के योग बनेंगे। आलस्य का परित्याग करें। आपके कामों की लोग प्रशंसा करेंगे। व्यापार लाभप्रद रहेगा। नई कार्ययोजना के योग प्रबल हैं। भाई बहनों से आप अपने मन की कुछ बातें भी शेयर करेंगे। व्यवसाय में आज आपको हर किसी पर भरोसा करने से बचना होगा, नहीं तो वह आपके भरोसे को तोड़ सकते हैं। विद्यार्थियों को शिक्षा में मनचाहे परिणाम मिलेंगे, जिसके कारण परिवार के सदस्य उनके लिए छोटी मोटी पार्टी का आयोजन कर सकते हैं। जो लोग रोजगार के लिए इधर उधर भटक रहे हैं, उन्हें आज कोई शुभ सूचना मिल सकती है। आप अपने मित्रों के साथ छोटी दूरी की यात्रा पर निकल सकते हैं।
तिथि——– एकादशी 05:44:52 तक
तिथि ————–द्वादशी 27:23:00
पक्ष———————— शुक्ल
नक्षत्र———– स्वाति 26:04:15
योग———— परिघ 20:44:47
करण——- विष्टि भद्र 05:44:52
करण————– बव 16:38:45
करण———– बालव 27:23:00
वार———————– शनिवार
माह————————– ज्येष्ठ
चन्द्र राशि——————- तुला
सूर्य राशि——————– वृषभ
रितु————————- ग्रीष्म
आयन—————— उत्तरायण
संवत्सर———————– नल
संवत्सर (उत्तर) ——————-राक्षस
विक्रम संवत—————- 2079
विक्रम संवत (कर्तक) ———-2078
शाका संवत—————- 1944
वृन्दावन
सूर्योदय————— 05:24:32
सूर्यास्त—————- 19:13:18
दिन काल————–13:48:45
रात्री काल————- 10:11:16
चंद्रोदय—————- 15:52:23
चंद्रास्त—————- 27:15:10
लग्न—-वृषभ 25°55′ , 55°55′
सूर्य नक्षत्र—————– मृगशिरा
चन्द्र नक्षत्र—————— स्वाति
नक्षत्र पाया——————- रजत
*** पद, चरण ***
रू—- स्वाति 09:16:23
रे—- स्वाति 14:54:45
रो—- स्वाति 20:30:40
ता—- स्वाति 26:04:15
*** ग्रह गोचर ***
ग्रह =राशी , अंश ,नक्षत्र, पद
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सूर्य=वृषभ 25:12 मृगशिरा , 1 वे
चन्द्र = तुला 07°23 , स्वाति , 1 रू
बुध =वृषभ 04 ° 07′ कृतिका ‘ 3 उ
शुक्र=मेष 21°05, भरणी ‘ 3 ले
मंगल=मीन 18°30 ‘ रेवती ‘ 1 दे
गुरु=मीन 11°30 ‘ उ o भा o, 3 झ
शनि=कुम्भ 01°33 ‘ उ o भा o ‘ 3 गु
राहू=(व) मेष 26°50’ कृतिका , 1 अ
केतु=(व) तुला 26°50 विशाखा , 3 ते
*** मुहूर्त प्रकरण ***
राहू काल 08:52 – 10:35 अशुभ
यम घंटा 14:03 – 15:46 अशुभ
गुली काल 05:25 – 07:08 अशुभ
अभिजित 11:51 -12:47 शुभ
दूर मुहूर्त 07:15 – 08:10 अशुभ
चोघडिया, दिन
काल 05:25 – 07:08 अशुभ
शुभ 07:08 – 08:52 शुभ
रोग 08:52 – 10:35 अशुभ
उद्वेग 10:35 – 12:19 अशुभ
चर 12:19 – 14:03 शुभ
लाभ 14:03 – 15:46 शुभ
अमृत 15:46 – 17:30 शुभ
काल 17:30 – 19:13 अशुभ
चोघडिया, रात
लाभ 19:13 – 20:30 शुभ
उद्वेग 20:30 – 21:46 अशुभ
शुभ 21:46 – 23:03 शुभ
अमृत 23:03 – 24:19* शुभ
चर 24:19* – 25:35* शुभ
रोग 25:35* – 26:52* अशुभ
काल 26:52* – 28:08* अशुभ
लाभ 28:08* – 29:25* शुभ
होरा, दिन
शनि 05:25 – 06:34
बृहस्पति 06:34 – 07:43
मंगल 07:43 – 08:52
सूर्य 08:52 – 10:01
शुक्र 10:01 – 11:10
बुध 11:10 – 12:19
चन्द्र 12:19 – 13:28
शनि 13:28 – 14:37
बृहस्पति 14:37 – 15:46
मंगल 15:46 – 16:55
सूर्य 16:55 – 18:04
शुक्र 18:04 – 19:13
होरा, रात
बुध 19:13 – 20:04
चन्द्र 20:04 – 20:55
शनि 20:55 – 21:46
बृहस्पति 21:46 – 22:37
मंगल 22:37 – 23:28
सूर्य 23:28 – 24:19
शुक्र 24:19* – 25:10
बुध 25:10* – 26:01
चन्द्र 26:01* – 26:52
शनि 26:52* – 27:43
बृहस्पति 27:43* – 28:34
मंगल 28:34* – 29:25
*** उदयलग्न प्रवेशकाल ***
वृषभ > 03:04 से 05:00 तक
मिथुन > 05:00 से 07:11 तक
कर्क > 07:11 से 09:30 तक
सिंह > 09:30 से 11:34 तक
कन्या > 11:34 से 13:50 तक
तुला > 13:50 से 16:05 तक
वृश्चिक > 16:05 से 18:26 तक
धनु > 18:26 से 20:26 तक
मकर > 20:26 से 22:12 तक
कुम्भ > 22:12 से 23:45 तक
मीन > 23:45 से 01:12 तक
मेष > 01:12 से 03:04 तक
विभिन्न शहरों का रेखांतर (समय)संस्कार
(लगभग-वास्तविक समय के समीप)
दिल्ली +10मिनट——— जोधपुर -6 मिनट
जयपुर +5 मिनट—— अहमदाबाद-8 मिनट
कोटा +5 मिनट———— मुंबई-7 मिनट
लखनऊ +25 मिनट——–बीकानेर-5 मिनट
कोलकाता +54—–जैसलमेर -15 मिनट
नोट– दिन और रात्रि के चौघड़िया का आरंभ क्रमशः सूर्योदय और सूर्यास्त से होता है।
प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है।
चर में चक्र चलाइये , उद्वेगे थलगार ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार करे,लाभ में करो व्यापार ॥
रोग में रोगी स्नान करे ,काल करो भण्डार ।
अमृत में काम सभी करो , सहाय करो कर्तार ॥
अर्थात- चर में वाहन,मशीन आदि कार्य करें ।
उद्वेग में भूमि सम्बंधित एवं स्थायी कार्य करें ।
शुभ में स्त्री श्रृंगार ,सगाई व चूड़ा पहनना आदि कार्य करें ।
लाभ में व्यापार करें ।
रोग में जब रोगी रोग मुक्त हो जाय तो स्नान करें ।
काल में धन संग्रह करने पर धन वृद्धि होती है ।
अमृत में सभी शुभ कार्य करें ।
दिशा शूल ज्ञान————-पूर्व
परिहार-: आवश्यकतानुसार यदि यात्रा करनी हो तो लौंग अथवा कालीमिर्च खाके यात्रा कर सकते है l
इस मंत्र का उच्चारण करें-:
शीघ्र गौतम गच्छत्वं ग्रामेषु नगरेषु च l
भोजनं वसनं यानं मार्गं मे परिकल्पय: ll
अग्नि वास ज्ञान -:
यात्रा विवाह व्रत गोचरेषु,
चोलोपनिताद्यखिलव्रतेषु ।
दुर्गाविधानेषु सुत प्रसूतौ,
नैवाग्नि चक्रं परिचिन्तनियं ।। महारुद्र व्रतेSमायां ग्रसतेन्द्वर्कास्त राहुणाम्
नित्यनैमित्यके कार्ये अग्निचक्रं न दर्शायेत् ।।
11 + 7 + 1 = 19 ÷ 4 = 3 शेष
मृत्यु लोक पर अग्नि वास हवन के लिए शुभ कारक है l
*** ग्रह मुख आहुति ज्ञान ***
सूर्य नक्षत्र से अगले 3 नक्षत्र गणना के आधार पर क्रमानुसार सूर्य , बुध , शुक्र , शनि , चन्द्र , मंगल , गुरु , राहु केतु आहुति जानें । शुभ ग्रह की आहुति हवनादि कृत्य शुभपद होता है
शनि ग्रह मुखहुति
शिव वास एवं फल -:
11 + 11 + 5 = 27 ÷ 7 = 6 शेष
क्रीड़ायां = शोक , दुःख कारक
भद्रा वास एवं फल -:
स्वर्गे भद्रा धनं धान्यं ,पाताले च धनागम:।
मृत्युलोके यदा भद्रा सर्वकार्य विनाशिनी।।
प्रातः 05:44 तक समाप्त
पाताल लोक = धनलाभ कारक
*** विशेष जानकारी ***
* एकादशी व्रत (वैष्णव)
*चंपक द्वादशी
*रुक्मिणी विवाह (उड़ीसा)
*सर्वार्थ सिद्धि योग 26:04 तक
* श्रीजी पुष्प नौका विहार मथुरा जी
*** शुभ विचार ***
बंधनानि खलु सन्ति बहूनि प्रेमरज्जुकृतबन्धनमन्यत् ।
दारुभेदनिपुणोऽपिषण्डघ्निर्निष्क्रियोभवति पंकजकोशे ।।
।। चा o नी o।।
दुनिया में बाँधने के ऐसे अनेक तरीके है जिससे व्यक्ति को प्रभाव में लाया जा सकता है और नियंत्रित किया जा सकता है. सबसे मजबूत बंधन प्रेम का है. इसका उदाहरण वह मधु मक्खी है जो लकड़ी को छेड़ सकती है लेकिन फूल की पंखुडियो को छेदना पसंद नहीं करती चाहे उसकी जान चली जाए.
*** सुभाषितानि ***
गीता -: श्रद्धात्रयविभागयोग अo-17
अभिसन्धाय तु फलं दम्भार्थमपि चैव यत्।,
इज्यते भरतश्रेष्ठ तं यज्ञं विद्धि राजसम्॥,
परन्तु हे अर्जुन! केवल दम्भाचरण के लिए अथवा फल को भी दृष्टि में रखकर जो यज्ञ किया जाता है, उस यज्ञ को तू राजस जान॥,12॥
*** आपका दिन मंगलमय हो ***
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आचार्य नीरज पाराशर (वृन्दावन)
(व्याकरण,ज्योतिष,एवं पुराणाचार्य)
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