चांद के बारे में सोचते ही हर किसी को चांद से जुड़े कुछ गीत जरूर याद आते हैं। चंदा मामा दूर के… गीत बचपन से जोड़ता है, तो चलो दिलदार चलो, चांद के पार चलो… गीत युवावस्था की याद दिलाता है। भारत का हर व्यक्ति इस समय चांद के पार जाने की प्रक्रिया के साथ अलग ही इश्क में डूबा है। उसे इश्क हो रहा है देश के वैज्ञानिकों से, जिन्होंने दुनिया के सामने पहले मंगलयान, फिर चंद्रयान के द्वितीय संस्करण के साथ अंतरिक्ष में अपनी श्रेष्ठता साबित की है। प्रज्ञान चांद पर जा रहा है, और लोगों के दिल पर चलो प्रज्ञान चलो, चांद के पार चलो… जैसे गीत का कब्जा है।
सोमवार दोपहर जब चंद्रयान-2 की यात्रा शुरू हुई, तो पूरा देश जश्न में डूब उठा था। चंद्रयान-2 को भारत में ही बना राकेट जीएसएलवी मार्क-3 अंतरिक्ष में लेकर गया है। रोवर प्रज्ञान चांद से भारत को जोड़ने में सीधी भूमिका का निर्वहन करेगा। प्रज्ञान की यह यात्रा हर भारतवासी को गर्व की अनुभूति करा रही है। इससे पूरी दुनिया में भारत की धमक तो बढ़ रही है, हमारे वैज्ञानिकों का हौसला भी बढ़ रहा है। ऐसे अभियान आम देशवासी को भी गर्व की अनुभूति कराते हैं।
चांद पर सूत कातती बुढ़िया की कहानियां सुनकर बड़ी हुई पीढ़ी अब अपने बच्चों को चांद पर हनीमून मनाने का उपहार देने का मन बनाने लगी है। चांद पर कॉलोनी बसाने की बात भले ही पश्चिम से आई हो, किन्तु भारत ने साबित कर दिया है कि वह किसी भी मामले में पश्चिम से पीछे नहीं है। आर्थिक दृष्टि से भी भारतीय अभियान खासे विशिष्ट होते हैं। हमने दुनिया में सबसे कम खर्चे पर मंगलयान भेजा है, वहीं अब चंद्रयान-2 ने इस अभियान में मील के पत्थर का काम किया है। यह अभियान हमारी ऊर्जा जरूरतों के साथ तमाम सामरिक जरूरतों को पूरा करेगा।
चंद्रयान जैसे अभियान भारतीय मेधा की श्रेष्ठता अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साबित कर रही है। वैसे भी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के वैज्ञानिकों ने अपने ऊपर होने वाले खर्च से अधिक कमाकर देने के मामले में भी नाम कमा रखा है। इसरो पर खर्च होने वाले हर एक रुपए के बदले भारत कम से कम डेढ़ रुपए तो कमाता ही है। इसके अलावा देश की तमाम वैज्ञानिक जरूरतें भी हमारे वैज्ञानिकों की मेधा से पूरी होती रहती हैं।
हाल ही में उड़ीसा में आए भीषण तूफान की सटीक जानकारी भारतीय वैज्ञानिकों के प्रयासों से ही मिल सकी थी। इसका परिणाम हुआ कि उड़ीसा में उससे निपटने के लिए पर्याप्त तैयारी की जा सकी। इससे जान-माल का तुलनात्मक रूप से कम नुकसान हुआ और बाद में भी उससे निपटना आसान हो सका।
एक बार फिर चंद्रयान-2 के साथ भारत चंद्रमा की सतह पर पहुंचने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाएगा। भारत चंद्रयान-2 के साथ चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर दस्तक देने जा रहा है और वहां पानी मिलने की संभावना अधिक होने के कारण भारत के हाथ यह अनूठी सफलता भी लगने की उम्मीद है। इन सफलताओं के साथ भारतीय वैज्ञानिक दुनिया भर में छा जाएंगे। हम अंतरिक्ष बाजार की बड़ी ताकत बन जाएंगे। पूरी दुनिया उम्मीदों से हमारी तरफ देख रही है और उम्मीद है कि हम इन सभी उम्मीदों पर खरे उतरेंगे।
स्वच्छ भारत अभियान जैसी भारतीय स्वच्छ परंपराओं के साथ अंतरिक्ष में सफाई भी इधर एक बड़ा मुद्दा बन गया है। अंतरिक्ष में पहुंचने वाले उपग्रहों की सफल यात्राओं के साथ वहां पहुंचने वाला कचरा भी अतंरराष्ट्रीय समस्या बन रहा है। एक आंकलन के अनुसार अंतरिक्ष में कचरा फैलाने के मामले में अमेरिका सबसे आगे है। वहां छह हजार से अधिक टुकड़े कचरे के रूप में पड़े हैं। ऐसे में अब इस कचरे के निस्तारण की दिशा में भी सकारात्मक काम की जरूरत है।
तो आइए चंद्रयान-2 की पूर्ण सफलता की कामना के साथ हम अंतरिक्ष में और व्यापक सफलताओं की कामना करें। भारतीय वैज्ञानिकों की इस सफलता के साथ अब देश अपने प्रधानमंत्री की लालकिले से की गई घोषणा के साथ आगे बढ़ने की तैयारी में है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त 2018 को लाल किले की प्राचीर से घोषणा की थी कि भारतीय स्वतंत्रता की 75वीं सालगिरह यानी 2022 तक भारतीय नागरिक हाथ में तिरंगा झंडा लेकर अंतरिक्ष की यात्रा करेंगे। उम्मीद है कि अगले तीन साल इस दिशा में काम वाले होंगे और भारत मानव को अंतरिक्ष तक पहुंचाने वाला देश बन जाएगा।
डॉ. संजीव मिश्र
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
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