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- Legally Story:सेक्स वर्कर से कथित रेप के मामले में मुंबई की अदालत ने चार आरोपियों को बरी कियामुंबई की एक अदालत ने सेक्स वर्कर से यौन उत्पीड़न और सामूहिक बलात्कार के 4 आरोपियों को यह कहते हुए बरी कर दिया कि पीड़िता ने अपनी शिकायत के समर्थन में विश्वसनीय बयान नहीं दिए। सत्र न्यायाधीश श्रीकांत भोसले ने कहा कि हालांकि किसी को भी केवल इसलिए जबरदस्ती संभोग करने का अधिकार नहीं है क्योंकि महिला एक सेक्स वर्कर है, लेकिन इस मामले में जबरन यौन संबंध बनाने के संबंध में अभियोजन पक्ष की कहानी पर संदेह है।अदालत ने कहा कि “पीड़िता दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत बयान दर्ज करते समय मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष पहली सूचना में अपने बयान के संबंध में भरोसेमंद और विश्वसनीय नहीं लगती है और अभियुक्तों द्वारा
जबरन यौन संबंध को लेकर उचित संदेह है।अभियोजन पक्ष का कहना था कि मई 2016 में, लगभग 1.30 बजे, एक ऑटो रिक्शा से नीचे उतर गया क्योंकि ड्राइवर को कथित तौर पर रास्ता नहीं पता था। उसने दूसरे ऑटो पर चढ़ने की कोशिश की जो उसके रास्ते में आ गया लेकिन इससे पहले कि वह ड्राइवर से बात कर पाती, ऑटो के अंदर से 2 लोगों ने उसे पकड़ लिया, उसका मुंह बंद कर दिया और उसे जबरन ऑटो में बैठा लिया। इसके बाद वे उसे जान से मारने की धमकी देकर एक कमरे में ले गए, उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया और अप्राकृतिक संबंध भी बनाए।उसके चिल्लाने की आवाज सुनकर चॉल में मौजूद लोग मौके पर आ गए और आरोपी वहां से फरार हो गया। मौके पर आई दो लड़कियों ने पीड़िता की कपड़ों से मदद की। फिर पुलिस पहुंची और पीड़िता की शिकायत के आधार पर प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज की। पुलिस ने एक ही दिन में चारों आरोपियों को गिरफ्तार करने में कामयाबी हासिल की। अतिरिक्त सरकारी वकील ने कहा कि अभियोजन पक्ष के सभी 10 गवाहों ने पीड़िता का समर्थन किया। इसलिए, बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि महिला एक सेक्स वर्कर था जिसे उन्होंने काम पर रखा था। भुगतान को लेकर विवाद हुआ तो पीड़िता ने उन पर झूठा मामला दर्ज करा दिया, यह तर्क दिया गया। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि निरीक्षण परेड के दौरान, पीड़िता उनमें से किसी की पहचान करने में सक्षम नहीं थी, भले ही अभियुक्तों को घटना के दिन ही उसे दिखाया गया था।
उन्होंने यह भी दावा किया कि पीड़िता ने दावा किया कि जिन दो लड़कियों ने उसकी मदद की। इसलिए कोर्ट ने कहा कि महिला सेक्स वर्कर होते हुए भी उसके साथ जबरदस्ती संबंध बनाने का अधिकार किसी को नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि महिला सेक्स वर्कर होते हुए भी उसके साथ जबरदस्ती संबंध बनाने का अधिकार किसी को नहीं है। हालांकि, यह पता लगाना जरूरी था कि क्या पीड़िता के बयानों कि उसके साथ यौन उत्पीड़न हुआ था, को स्वीकार किया जा सकता है या नहीं। न्यायाधीश ने कहा अभियुक्तों के कृत्यों और उनके द्वारा बल प्रयोग के बारे में विवरण देने वाला कोई अन्य बयान नहीं था। अदालत ने यह भी कहा कि कथित पीड़ित को लगी चोट या रक्तस्राव के संबंध में कोई चिकित्सा साक्ष्य नहीं था। इसके अलावा, “कोई चोट नहीं थी, कोई रक्तस्राव नहीं था, चोट का कोई सबूत नहीं था। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि चोट का कोई सबूत नहीं मिला जिससे बल प्रयोग का संकेत मिलता हो। अदालत ने अभियुक्त को बरी करते हुए कहा, “उपर्युक्त चिकित्सा साक्ष्य पीड़िता के बयान का समर्थन नहीं करते हैं कि जबरन संभोग किया गया था या उस पर कोई शारीरिक हमला किया गया था।
2. इनकम टैक्स की चोरी पकड़ने के लिए रेड डालने गाइडलाइन बनाने की गुहार लगाने के लिए दाखिल याचिका पर को रद्द करते हुए कहा है कि टैक्स चोरी करने के आरोपी के रिश्तेदारों और खास लोगों की जांच सही है। इस बारे में संसद ने जो कानून बनाया है वो सही है और उसमें संशोधन की गुंजाइश नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीची रवि कुमार की पीठ ने फैसले में आयकर नियमों में संशोधनों को जायज और न्याय संगत बताया। पीठ ने कहा कि दिल्ली हाईकोर्ट ने जांच के शाब्दिक अर्थ को काफी सीमित कर दिया था जबकि इसका अर्थ काफी व्यापक है। सीमित अर्थ से तो टैक्स चोर आसानी से बच निकलते हैं, लेकिन विधायिका यानी संसद ने 2015 में जिस नजरिए और मकसद से आयकर अधिनियम के 153सी में इन संशोधनों को अपनी मंजूरी दी थी वो काफी सशक्त और सख्त हैं।
बेंच ने कहा कि टैक्स चोरी करने वाला कोई भी बचना नहीं चाहिए क्योंकि संसद ने संशोधन करते हुए नियम में लिखित आरोपी से संबंध रखने वाला की जगह ‘आरोपी से जुड़ा हुआ है या जुड़ता प्रतीत है ‘ को मंजूरी दी। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि एक्ट की धारा-153 सी के तहत जो बदलाव हुआ है वह बदलाव की तारीख से पहले के मामले में भी लागू होगा यानी बदला हुआ कानून पहले के सर्च के मामले में भी प्रभावकारी होगा।
3. इनकम टैक्स की चोरी पकड़ने के लिए रिश्तेदारों के घर पर रेड डालना गैर कानूनी नहींः सुप्रीम कोर्ट
एक्ट की धारा-153सी में प्रावधान है कि इनकम टैक्स डिपार्टमेंट उस व्यक्ति के खिलाफ भी कार्रवाई कर सकता है जिसके बारे में सर्च के दौरान जानकारी मिली है। यानी जिसके खिलाफ सर्च ऑपरेशन चल रहा है और उस दौरान कुछ जानकारी तीसरे व्यक्ति के बारे में मिले तो उसके खिलाफ भी कार्रवाई का रेवेन्यू डिपार्टमेंट को अधिकार होगा। इस बदलाव के बाद विभाग को यह अधिकार मिल गया है कि वह ऐसे तीसरे व्यक्ति के खिलाफ भी कार्रवाई कर सकता है अगर सर्च में मिले मैटेरियल में उसका नाम आया है।
4. दिल्ली हाई कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला:बाथरूम में नहा रही महिला को देखने की झांकना, निजिता का उल्लंघन
दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा अगर कोई व्यक्ति बाथरूम में नहा रही महिला को देखने के लिए उसमें झांके तो इसे निजता के अधिकार का उल्लंघन हैं। जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि पवित्र धार्मिक स्थलों पर डुबकी लगाने की तुलना एक बंद बाथरूम से कतई नहीं की जा सकती जहां कोई महिला नहा रही हो। हालांकि, धार्मिक स्थलों पर भी यही अपेक्षा होती है कि ऐसी महिलाओं की तस्वीरें या विडियो न ली जाएं। अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में भी यह उसकी निजता पर हमला करने जैसा होगा। ऐसी स्थिति में भी किसी व्यक्ति को महिला की तस्वीर लेने का अधिकार नहीं है, जैसा की आईपीसी की धारा-354सी (ताक-झांक) के तहत कहा गया है।
हाई कोर्ट ने आरोपी सोनू की अपील ठुकराते हुए कहा कि अदालतें अपराधों के सामाजिक संदर्भ को नज़रअंदाज नहीं कर सकतीं। अदालत ने कहा पीड़िता के पास गरीबी की वजह से घर के अंदर बाथरूम की सुविधा नहीं थी। ऐसे में सोनू का बाथरूम के अंदर झांकना, जिसमें दरवाजे की बजाए सिर्फ़ एक पर्दा टंगा था, निश्चित रूप धारा-354सी के तहत अपराध माना जाएगा। कोर्ट ने कहा कि इस तरह की हरकत निश्चित रूप से एक महिला के लिए शर्मिंदगी की वजह बनती है और वह लगातार इस खौफ में रहने लगती है कि बाथरूम में नहाते हुए उसे कोई देख रहा होगा।
हाई कोर्ट ने उपरोक्त टिप्पणी सोनू उर्फ बिल्ला नाम के एक शख्स की अपील खारिज करते हुए कहा। उसे आईपीसी की धारा-354सी के तहत दोषी ठहराते हुए एक साल कैद की सजा 2000 रुपये के जुर्माने के साथ सुनाई गई थी, जिसे दिल्ली हाई कोर्ट ने भी बरकरार रखा। सोनू पर आरोप था कि पीड़ित महिला जब कभी अपने घर के बाहर बाथरूम में नहाने के लिए जाती थी, आरोपी बहाने से वहां आकर बैठ जाता और बाथरूम में पीड़ित को नहाते हुए देखने के लिए झांकता था।
5. कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा, कोर्ट्स में लंबित सरकारी मुकदमों को तेजी से निपटाने की कोशिशें जारी
कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने हाल ही में संसद में जानकारी कि विभिन्न न्यायालयों में पेंडिग मुकदमों को कम करने के उपाय किए जा रहे हैं। ताकि न्याय वितरण प्रणाली और अधिक बाधित न हो। जिन मामलों का निपटारा एक्जीक्यूटिव स्तर पर ही हो सकता हो उसे अनावश्यक कोर्ट में न भेजा जाए और इसके अलावा जहां मामले केवल जवाब दाखिल करने के हैं, वहां तत्काल जवाब इत्यादि देकर मामलों के निस्तारण पर जोर दिया जाए।
किरेन रिजिजू ने बताया कि 31 दिसंबर, 2022 तक, जिला और अधीनस्थ अदालतों में लंबित मामलों की कुल संख्या 4.32 करोड़ से अधिक है, जबकि 69,000 मामले सर्वोच्च न्यायालय में लंबित हैं और देश के 25 उच्च न्यायालयों में 59 लाख से अधिक मामले लंबित हैं।
उन्होंने बाताया कि शुरुआत में रेल मंत्रालय ने सभी स्तरों पर अदालती मामलों की प्रभावी निगरानी के लिए निर्देश जारी किए हैं।
कानून मंत्री किरण रिजिजू ने कहा, “क्षेत्रीय रेलवे और उत्पादन इकाइयों को उन मामलों की संख्या को कम करने के लिए प्रभावी कदम उठाने के लिए कहा गया है जिनमें सरकार एक पार्टी है और अदालतों का बोझ कम करती है, सभी अदालतों में लंबित मामलों को जल्द से जल्द अंतिम रूप देने और अदालती मामलों को लड़ने में होने वाले खर्च को कम करने के लिए भी निर्देश दिए गए हैं।”
इसी तरह, राजस्व विभाग के तहत केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) और केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (CBIC) द्वारा कई उपाय पेश किए गए हैं। सीबीडीटी ने क्षेत्र के अधिकारियों को भी इसी आश्य का निर्देश देते हुए परिपत्र जारी किया है।इसी तरह, सीबीआईसी ने अपने क्षेत्र के अधिकारियों को निर्देश दिया है कि अपील के दो चरणों में मुद्दा खत्म हो जाने पर आगे अपील न करें। तथापि, यह निर्णय लिया गया है कि जिन मामलों में यह महसूस किया जाता है कि मामला आगे अपील के लिए उपयुक्त है, वहां उचित औचित्य और मुख्य आयुक्त के अनुमोदन पर तीसरी बार अपील दायर की जा सकती है। कानून मंत्री ने कहा कि सभी विभागों से कहा गया है कि अनावश्यक तौर पर कोई भी मामला न्यायालयों में लंबित न रखा जाए।
6. उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव मामला: हाईकोर्ट ने सरकार को चुनाव को लेकर दाखिल की गई आपत्तियों का निस्तारण करने को कहा
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तरप्रदेश में स्थानीय निकाय चुनाव को लेकर दाखिल की गई आपत्तियों का निस्तारण करने का सरकार को आदेश दिया है। इसके साथ ही कोर्ट ने इस मामले को लेकर दाखिल कई याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करने के लिए 15 मई की तिथि तय की है।
चीफ जस्टिस प्रीतिंकर दिवाकर एवं जस्टिस एसडी सिंह की खंडपीठ ने कानपुर के अभिनव त्रिपाठी की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश जारी किया है। मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता अनूप त्रिवेदी पेश हुए, उन्होंने कहा 30 मार्च को जारी अधिसूचना के खिलाफ आपत्ति छह अप्रैल को सरकार को भेज दी है परंतु उसकी आपत्ति पर विचार नहीं हो रहा है।
तो वही यूपी सरकार की तरफ से अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता रामानंद पांडेय ने सरकार छह अप्रैल की शाम तक के सभी आपत्तियों का निस्तारण करेगी। इतना ही नही उन्होंने यह भी बताया कि सरकार की तरफ से जारी की गई अधिसूचना में भी इस बात का उल्लेख किया गया है। कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद निर्देश दिया है कि सरकार छह अप्रैल तक प्राप्त सभी आपत्तियों को कानून के मुताबिक उसका निस्तारण करें। इसके साथ ही अदालत ने 15 मई को सुनवाई की अगली तारीख तय कर दी।
दअरसल उत्तर प्रदेश के अलग अलग जिलों से दाखिल इन याचिकाओं में सरकार द्वारा 30 मार्च को जारी अधिसूचना को
कई आधारों पर चुनौती दी गई है।
7. पति को ‘कायर और बेरोजगार’ कहना भी मानसिक क्रूरता, पति पत्नी से तलाक लेने का अधिकारी
अगर पत्नी अपने पति पर माता-पिता से अलग रहने और बात-बात पर पति को कायर और बेरोजगार कहती है तो यह क्रुएल्टी की श्रेणी में आता है। इन परिस्थितियों में पति पत्नी से तलाक मांगने का अधिकारी है।
हाल ही में कलकत्ता हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति सौमेन सेन और न्यायमूर्ति उदय कुमार की पीठ ने कहा कि एक भारतीय परिवार में एक बेटे के लिए शादी के बाद भी अपने माता-पिता के साथ रहना एक आम प्रथा है, और अगर उसका पति उसे अपने माता-पिता से अलग करने का प्रयास करता है, तो एक न्यायसंगत होना चाहिए।
पीठ ने कहा कि छोटे घरेलू मुद्दों और वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करने से संबंधित चुनौतियों पर अहंकार के टकराव के अलावा, पत्नी द्वारा अपने पति को अपने परिवार से अलग होने का अनुरोध करने के लिए अनुचित कारण हैं।
पति अपनी एकमात्र वैवाहिक शांति के लिए अपने माता-पिता के घर से बाहर चला गया और किराए के मकान में रहने लगा ऐसा सर्वथा अनुचित है। अदालत ने कहा कि पत्नी का अपने पति को उसके परिवार से अलग करने का लगातार प्रयास उसके लिए यातनापूर्ण माना जाएगा।
संबंधित मामले में पति ने पत्नी पर मानसिक क्रूरता के आरोप लगाते हुए तलाक की अर्जी दाखिल की थी। जिसे निचली अदालत ने मंजूरी दे दी थी। पत्नी ने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील दाखिल की जिसे कलकत्ता हाईकोर्ट ने उपरोक्त आधार बताते हुए खारिज कर दिया। यानी पति की तलाक की अर्जी को हरी झण्डी दे दी।
8. मेरठ की जिला अदालत ने यूपी पुलिस के इंस्पेक्टर के खिलाफ जारी किया गिरफ्तारी वारंट
मेरठ की जिला अदालत ने यूपी पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स के एक इंस्पेक्टर के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया है। यह इंस्पेक्टर 2014 में राजस्थान से हरिद्वार जा रही रोड होल्ड अप मामले का गवाह था।
मिली जानकारी के मुताबिक अदालत ने इंस्पेक्टर प्रशांत कपिल को गिरफ्तार कर 17 अप्रैल से पहले पेश करने का हुक्म जारी किया है। इसे पहले इस इंपेक्टर को गवाही के लिए तीन बार समन भेजा जा चुका है। लेकिन वो तीनों बार कोर्ट के सामने पेश नहीं हुआ। उसके पेश न होने से न्यायिक कार्य में बाधा आ रही थी और अनाश्यक तौर पर केस लंबित हो रहा था।
अदालत ने इससे पहले इंस्पेक्टर प्रशांत कपिल का वेतन रोकने का आदेश यूपी पुलिस को जारी किया था।
अधिकारियों ने शनिवार को कहा कि यहां की एक स्थानीय अदालत ने यूपी पुलिस स्पेशल टास्क फोर्स की मेरठ इकाई के एक इंस्पेक्टर के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया है।
सहायक जिला सरकारी वकील प्रवेंद्र कुमार ने शनिवार को बताया कि कपिल को 2014 में लूट और हत्या के एक मामले में गवाह के तौर पर पेश होने की जरूरत है।
दरअसल, 2014 में, सशस्त्र डाकुओं ने एक बस चालक की गोली मारकर हत्या कर दी और राजस्थान से हरिद्वार जा रहे सभी तीर्थयात्रियों के गहने, बस यात्रियों से पैसे लूट लिए। इस काण्ड की विवेचना इंस्पेक्टर प्रशांत कपिल ने की थी।
9. मुंबई की वाशी कोर्ट बनी देश की पहली कागज़ रहित डिजिटल अदालत,हाई कोर्ट के जज गौतम पटेल ने किया उद्घाटन
महाराष्ट्र के नवी मुंबई में स्थित वाशी अदालत देश की पहली कागज़ रहित डिजिटल अदालत बन गई है। बॉम्बे हाई कोर्ट के जज गौतम पटेल ने वाशी में जिला और अतिरिक्त सत्र न्यायालय का उद्घाटन किया। इस मौके पर जस्टिस गौतम पटेल ने कहा कि नवी मुंबई का वाशी कोर्ट देश की पहली ऐसी अदालत बन चुकी है जहां सभी कार्य अब डिजिटल होंगे।
जस्टिस गौतम पटेल ने इस दौरान सभी वकीलों की वाशी कोर्ट को पेपरलेस (कागज़ रहित) डिजिटल बनाने में सहमत होने के लिए सराहना की। जस्टिस पटेल ने कहा कि ई-फाइलिंग और डिजिटल कोर्ट को शुरू करने में कई तिमाहियों से विरोध किया गया है, लेकिन वाशी कोर्ट में काम करने वाले अधिवक्ताओं ने इस विचार का समर्थन किया है। अधिवक्ताओं के इस समर्थन से अब वाशी की अदालत देश का पहला पेपरलेस डिजिटल अदालत बन गया है।
जस्टिस गौतम पटेल ने कहा- “अदालतों पर बोझ कम करने के लिए ई-फाइलिंग और डिजिटल कोर्ट का विचार पेश किया गया। एक बार जब अदालत का पूरा काम पेपरलेस हो जाएगा तो फैसले और भी तेजी से होंगे।”
वहीं अधिकारियों का मानना है कि वाशी में जिला और सत्र न्यायालय के शुरू होने से नवी मुंबई और आसपास के इलाकों के लोगों को मामले की सुनवाई के लिए अब ठाणे नही जाना पड़ेगा।
10. कानपुर की अदालत में 30 साल तक चला मुकदमा:कोर्ट ने दोषी को सुनाई 7 साल की सजा
कानपुर देहात की अदालत ने 30 साल पुराने भोगनीपुर में लूट की योजना बनाने में गिरफ्तार किए गए आफताब उर्फ नफीस को दोषी मानते हुए 7 साल की सजा सुनाई है। अदालत ने आफ़ताब पर 2 हजार रूपए का जुर्माना भी लगाया है।
अदालत ने प्राथमिकता के आधार पर सुनवाई करते हुए पुलिस की विवेचना और गवाहों के बयानों के आधार पर आफ़ताब को दोषी पाया। दरसअल 1993 में लूट की योजना बना रहे आफताब को भोगनीपुर पुलिस ने तमंचे व कारतूस के साथ गिरफ्तार किया था। गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने स्पेशल जज एंटी डकैती कोर्ट में आरोपी को पेश किया था। जहां से आरोपी जेल भेज दिया गया था। आरोपी के जेल भेजे जाने के बाद पुलिस ने आरोप पत्र दाखिल किया था।
11. ठग किरण पटेल को अहमदबाद क्राइम ब्रांच लाया गया, खुद को बताता था पीएमओ का अधिकारी
फर्जी पीएमओ अधिकारी बन धोखे से जम्मू कश्मीर पुलिस की सुरक्षा हासिल करने के मामले में गिरफ्तार गुजरात के ठग किरण पटेल को ट्रांजिट रिमांड पर अहमदाबाद क्राइम ब्रांच लाया गया है। किरण पटेल से मंत्री के भाई का बांग्ला हड़पने और अन्य कई मामलो में अहमदाबाद क्राइम ब्रांच किरण पटेल से तफ्तीश करेगी। किरण पटेल की पत्नी मालती भी क्राइम ब्रांच की हिरासत में है।
दरअसल किरण ने खुद को पीएमओ नई दिल्ली में अतिरिक्त निदेशक बताकर जम्मू-कश्मीर पुलिस से सुरक्षा हासिल कर कई ठिकानो की सैर की थी बाद में सच्चाई सामने आने के बाद जम्मू कश्मीर पुलिस ने किरण को गिरफ्तार कर लिया था। उसके पास से दस फर्जी विजिटिंग कार्ड और दो मोबाइल जब्त किए गए।किरण के खिलाफ आईपीसी की धारा 419,420,467,468, और 471 के तहत मामले दर्ज किए गए। बाद में गुजरात के अहमदाबाद में रहने वाले किरण की ठगी के कई कारनामे सामने आये। गुजरात के अलग अलग पुलिस थानों में पटेल के खिलाफ धोखाधड़ी से संबंधित पांच एफआईआर दर्ज की गई हैं, जिनमें से एक अहमदाबाद क्राइम ब्रांच द्वारा एक सीनियर सिटीजन के बंगले पर कब्जा करने की कोशिश के लिए दर्ज की गई है। इसी मामले में पुलिस किरण की पत्नी मालिनी पटेल को पहले ही गिरफ्तार कर चुकी है।
किरण को आज अहमदाबाद क्राइम ब्रांच कोर्ट में पेश कर पुलिस रिमांड की मांग करेंगे और पुलिस का मांगना है की किरण की पूछताछ और जांच के बाद इसकी ठगी के कई कारनामो पर से पर्दा उठ सकता है।
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