Legally Speaking News: लंच-डिनर और ब्रेक फास्ट वाले रेस्टोरेंट्स में  हुक्का बार चलाने की अनुमति नहीं दी जा सकतीः मुंबई हाईकोर्ट

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Aaj Samaj, (आज समाज),Legally Speaking News, नई दिल्ली:

1.क्रिकेटर मोहम्मद शमी की पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की याचिका, पत्नी ने लगाए गंभीर आरोप

तेज गेंदबाज मोहम्मद शमी की पत्नी हसीन जहां ने क्रिकेटर और उनके भाई के खिलाफ वैवाहिक क्रूरता और उत्पीड़न के मामले में सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। अपनी याचिका में हसीन जहां ने कलकत्ता हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी है, जिसमें शमी के खिलाफ जारी गिरफ्तारी वारंट पर सत्र न्यायालय की रोक को बरकरार रखा गया था। मोहम्मद शमी की पत्नी हसीन जहां ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका में दावा किया है कि 2018 में शमी और उनके भाई ने उन पर क्रूरता, उत्पीड़न और शारीरिक हमला किया। इस जोड़े ने 2014 में शादी की थी। अधिवक्ताओं नचिकेता वाजपेयी, दीपक प्रकाश और दिव्यांगना मलिक के माध्यम से दायर याचिका के मुताबिक, शमी की पत्नी ने उनके कथित रूप से “अवैध विवाहेतर संबंध” पर “आपत्ति” की थी और आरोप लगाया था कि शमी दूसरी महिलाओं के साथ यौन गतिविधियों में लिप्त थे।

दरसअल मार्च 2018 में यह मामला तब और बढ़ गया था जब जहां के अलीपुर में उसके पति और उसके भाई द्वारा कथित तौर पर मारपीट की गई थी। पत्नी ने आरोप लगाया कि उसने जब इसके खिलाफ आवाज उठाई, तो उसके पति और उसके परिवार के सदस्यों द्वारा उसके साथ मारपीट और उत्पीड़न किया गया, जिसने उससे लगातार दहेज की मांग की।

दरसअल इस मामले में अलीपुर की अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत की तरफ से 29 अगस्त 2019 को शमी के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया था। हालांकि, शमी ने इस फैसले को सत्र न्यायालय के सामने चुनौती दी और सत्र न्यायालय ने गिरफ्तारी वारंट और पूरे मामले में आगे की प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी। इसके बाद हसीन जहां ने कलकत्ता हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन उच्च न्यायालय ने भी गिरफ्तारी वारंट पर लगी रोक को हटाने से इनकार कर दिया था।

2. ‘द केरला स्टोरी’ फिल्म की रिलीज पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार, 5 मई को रिलीज़ होगी फ़िल्म

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को फिल्म ‘द केरला स्टोरी’ की रिलीज को चुनौती देने वाली एक याचीका पर सुनवाई से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को कहा कि वो हाई कोर्ट में याचीका दाखिल करें। कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि हर मामले में राहत के लिए सुप्रीम कोर्ट सीधे नही आ सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा हम सुपर हाई कोर्ट नही बन सकते। यह कहते हुए कोर्ट ने याचिकाकर्ता को हाई कोर्ट में याचीका दाखिल करने को कहा। याचीका में कहा गया है कि सुदीप्तो सेन द्वारा निर्देशित और विपुल अमृतलाल शाह द्वारा निर्मित ‘द केरल स्टोरी’ फिल्म ने यह दावा किया है कि केरल की लगभग 32,000 महिलाओं को धोखे से इस्लाम में परिवर्तित किया गया और आईएसआईएस में शामिल होने के लिए मजबूर किया गया।

याचीका में कहा गया है कि केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन, राज्य की सत्तारूढ़ सीपीआई (एम), और विपक्षी कांग्रेस सभी ने फिल्म के खिलाफ बात की है, यह दावा करते हुए कि यह सांप्रदायिक नफरत को भड़काने और केरल को नकारात्मक रोशनी में चित्रित करने के लिए झूठा प्रचार फैलाती है

3. आबकारी नीति घोटाला: सीबीआई मामले में मनीष सिसोदिया की अंतरिम जमानत अर्जी पर दिल्ली हाईकोर्ट ने सीबीआई से मांगा जवाब

दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा दायर दिल्ली आबकारी शराब घोटाला मामले में अंतरिम जमानत के लिए बुधवार को दिल्ली उच्च न्यायालय का रुख किया। न्यायमूर्ति दिनेश कुमार शर्मा ने सीबीआई से गुरुवार तक मामले में रिपोर्ट दाखिल करने को कहा ताकि सिसोदिया की नियमित जमानत याचिका के साथ याचिका पर विचार किया जा सके, जो उसी दिन निर्धारित है। सिसोदिया ने पत्नी की खराब तबीयत का हवाला देते हुए अंतरिम जमानत मांगी है।  31 मार्च को दिल्ली की एक राऊज एवेन्यू कोर्ट ने सिसोदिया की जमानत अर्जी खारिज कर दी थी।
विशेष सीबीआई न्यायाधीश एमके नागपाल ने कहा कि, प्रथम दृष्टया, पूर्व आबकारी मंत्री कथित दिल्ली आबकारी नीति घोटाले से जुड़े आपराधिक षड्यंत्र में शामिल है, ऐसा प्रतीत होता है। सीबीआई ने 26 फरवरी को सिसोदिया को गिरफ्तार किया था। ईडी ने उन्हें 9 मार्च को गिरफ्तार किया था। यह दावा किया जाता है कि सिसोदिया और आम आदमी पार्टी (आप) के अन्य सदस्यों ने रिश्वत के बदले कुछ व्यापारियों को शराब के लाइसेंस जारी करने की साजिश रची। केंद्रीय एजेंसियों के अनुसार, आबकारी नीति में बदलाव किया गया और लाभ मार्जिन को इस तरह से बदला गया जिससे कुछ व्यापारियों को फायदा हुआ और इसके बदले रिश्वत ली गई।

4.पंजाब के CM बेअंत सिंह के हत्यारे बलवंत राजोआना की मौत की सजा कर करने से SC  का इंकार, केंद्र से कहा दया याचिका पर तुरंत करो फैसला*

पंजाब के मुख्यमंत्री सरदार बेअंत सिंह के हत्यारे बलवंत सिंह राजोआना की पिटीशन पर  सुप्रीम कोर्ट ने सजा कम करने से इंकार कर दिया है। बलवंत सिंह राजोआना को सजा-ए-मौत की सजा दी गई है। उसकी दया याचिका 2012 से लंबित है। सुप्रीम कोर्ट ने उसकी याचिका को निस्तारित करते हुए भारत सरकार के गृह मंत्रालय से शीघ्र ही कोई निर्णय लेने को कहा है।

बलवंत सिंह राजोआना ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली थी कि उसकी सेहत और परिस्थितियों को देखते हुए सजा-ए-मौत को आजीवन कारावास में तब्दील कर दिया जाए। राजोआना ने अपनी सजा को परिवर्तित करने के लिए कई आतंकियों की सजा का हवाला भी दिया। जिनकी सजा को कोर्ट ने कम किया है। राजोआना ने दया याचिका भी डाली हुई है। राजोआना ने अपनी याचिका में यह भी कहा कि उसे कुछ दिनों की पैरोल दे दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने राजोआना की दोनों ही मांग स्वीकार करने से इंकार कर दिया।

सरदार बेइंत सिंह का हत्यारा बलवंत सिंह पिछले 27 साल से जेल में बंद है। उसने 2012 में सरकार के सामने दया याचिका लगाई थी, लेकिन अभी तक उस पर कोई फैसला नहीं हो सका है। सुप्रीम कोर्ट ने एक बार सरकार से कहा है कि राजोआना की दया याचिका पर जल्द से जल्द फैसला की जाए।

5.*मनमानी करने वाले जजों पर चला सुप्रीम कोर्ट का हैमर, कार्यभार छीन कर ज्यूडीशियल एकेडेमी वापस भेजा*

सुप्रीम कोर्ट ने आरोपियों को जमानत नहीं देने पर एक सेशन जज को सजा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को हाईकोर्ट से कहा कि जज से न्यायिक जिम्मेदारियां वापस ली जाएं और उन्हें अपनी स्किल में सुधार करने के लिए न्यायिक अकादमी भेजा जाए।

सुप्रीम कोर्ट ने 21 मार्च को चेतावनी दी थी कि अगर कोई बार-बार ऐसे फैसले सुनाता है तो उससे न्यायिक काम की जिम्मेदारी ले ली जाएगी और उसे न्यायिक अकादमी भेज दिया जाएगा। जस्टिस संजय किशन कौल और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच को बताया गया था कि जज निर्देशों का पलन नहीं कर रहे हैं। न्याय मित्र के तौर पर अदालत का सहयोग कर रहे एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा ने दो ऐसे मामले कोर्ट के सामने रखे थे, जिसमें जमानत के आदेश नहीं दिए गए थे।

एक केस शादी से जुड़े विवाद का था। लखनऊ के सेशल जज ने आरोपी और उसकी मां की याचिका पर उसे जमानत देने से इनकार कर दिया था, जबकि उनकी गिरफ्तारी भी नहीं हुई थी। वहीं, दूसरे मामले में एक आरोपी कैंसर पीड़ित था और गाजियाबाद की सीबीआई कोर्ट ने उसे जमानत देने से इनकार कर दिया था।

इन केसों पर निराशा जताते हुए बेंच ने कहा कि ऐसे बहुत सारे आदेश पारित किए जाते हैं जो कि हमारे आदेशों से मेल नहीं खाते। बेंच ने कहा कि कोर्ट में कानून के आधार पर फैसले सुनाए जाते हैं और उसका पालन करना जरूरी है। उत्तर प्रदेश में हालत बहुत खतरनाक है। 10 महीने पहले भी फैसला देने के बाद भी इसका पालन नहीं किया जा रहा है।

बेंच ने कहा कि 21 मार्च को हमारे आदेश के बाद भी लखनऊ कोर्ट ने इसका उल्लंघन किया। हमने इस आदेश को इलाहाबाद हाईकोर्ट के संज्ञान में भी डाला। हाईकोर्ट को जरूरी कार्रवाई करनी चाहिए और जजों की न्यायिक कुशलता को सुधारने की कोशिश करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में पुलिसिया शासन की जरूरत नहीं है जहां कि लोगों को फालतू में गिरफ्तार कर लिया जाए।

कोर्ट ने निर्देश दिए थे कि जहां कस्टडी की जरूरत ना हो ऐसे सात साल से कम सजा का प्रावधान वाले केसों में गिरफ्तारी की जरूरत नहीं है। अगर कोई आरोपी गिरफ्तार नहीं किया गया है और वह जांच में सहयोग कर रहा है तो केवल चार्जशीट फाइल होने के बाद ही उसे हिरासत में लिया जाना चाहिए। जुलाई में कोर्ट अपने एक फैसले में कह चुका है, ट्रायल कोर्ट की जिम्मेदारी है कि संविधान की गरिमा को बनाए रखें।

6.लंच-डिनर और ब्रेक फास्ट वाले रेस्टोरेंट्स में  हुक्का बार चलाने की अनुमति नहीं दी जा सकतीः मुंबई हाईकोर्ट

लंच-डिनर और ब्रेक फास्ट परोसने वाले रेस्टोरेंट्स के लायसेंस में को हुक्का बार चलाने की अनुमति नहीं दी जा सकती*

लंच-डिनर और ब्रेक फास्ट परोसने का लायसेंस वाले रेस्टोरेंट्स को हुक्का बार चलाने का अनुमति नहीं दी जाएगी। अगर कोई रेस्टोरेंट ऐसा करता है तो उसका लाइसेंस रद्द कर दिया जाएगा।  यह फैसला मुंबई हाईकोर्ट ने किया है। मुंबई हाईकोर्ट ने कहा है कि ऐसे साधारण तौर पर रेस्टोरेंट्स में परिवार लंच-डिनर के लिए आते हैं। जिन्हें हुक्के का धुंआ से चिढ़ या परेशानी हो सकती है।

बंबई हाईकोर्ट ने हर्बल हुक्का परोसने वाले रेस्टोरेंट्स को राहत देने से इनकार करते हुए कहा कि इसमें हुक्का या हर्बल हुक्का परोसने की अनुमति स्वत: शामिल नहीं है। न्यायमूर्ति जीएस कुलकर्णी और न्यायमूर्ति आरएन लड्डा की खंडपीठ ने कहा कि हुक्का उस रेस्तरां में परोसी जाने वाली वस्तुओं में शामिल नहीं किया जा सकता, जहां बच्चे, महिलाएं और बुजुर्ग जलपान या भोजन के लिए जाते हैं।

हाईकोर्ट में रेस्टोरेंट्स को हुक्का बार के लिए रियायत की मांग वाली याचिका सायली पारखी की ने दायर की थी। जिसमें बृहन्मुंबई नगर निगम द्वारा पारित 18 अप्रैल, 2023 के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें कहा गया था कि अगर हुक्का/हर्बल हुक्का परोसने का सिलसिला जारी रहता है तो उसके रेस्तरां ‘द ऑरेंज मिंट’ को दिया गया भोजनालय का लायसेंस निरस्त कर दिया जाएगा। नगरीय निकाय का दावा था कि रेस्तरां हर्बल हुक्का गतिविधि के लिए लौ या जले हुए चारकोल का उपयोग कर रहा था, जो सार्वजनिक सुरक्षा को खतरे में और ग्राहकों की जान जोखिम में डाल रहा था।

अदालत ने बीएमसी के आदेश पर रोक लगाने से इनकार करते हुए कहा कि रेस्तरां को हुक्का गतिविधियां संचालित करने से रोकने का आदेश बिल्कुल सही है। अदालत ने कहा, ‘एक बार जब यह स्पष्ट हो जाता है कि हुक्का गतिविधियां भोजनालय लायसेंस की शर्तों का हिस्सा नहीं हैं, तो ऐसी गतिविधि की अनुमति नहीं दी जा सकती है।

7.*यूपी सरकार को बड़ी राहत, कोर्ट ने धार्मिक कार्यक्रमों के आयोजन को चुनौती देने वाली याचिका कर दी खारिज*

उत्तर प्रदेश में सरकार के सौजन्य से होने वाले सांस्कृति और धार्मिक कार्यक्रमों पर प्रतिबंध की मांग वाली याचिका को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है। यह याचिका राजीव कुमार यादव नाम के एक शख्स ने लगाई थी। उसका कहना था कि देश पंथ निरपेक्ष है, किसी सरकार को धार्मिक कार्य करने का अधिकार नहीं है, ऐसा करना संविधान की पंथ निरपेक्षता के मूलभूत सिद्धांतों का हनन है। इसी शख्स ने पहले ऐसी ही याचिक लखनऊ पीठ में डाली थी लेकिन खण्ड पीठ ने भी उसे खारिज कर दिया। इसके बाद याचिकाकर्ता ने मुख्यपीठ के सामने फिर से प्रयास किया, लेकिन कोर्ट ने याचिका को सुनने से ही इंकार कर दिया।

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