Legally Speaking: मनी लॉन्ड्रिंग मामला: पूजा सिंघल के खिलाफ आरोप तय करने को लेकर बहस पूरी, 10 अप्रैल को अगली सुनवाई, पढ़े पूरी खबर विस्तार से

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आज समाज डिजिटल, नई दिल्लीः

1. मनी लॉन्ड्रिंग मामला: पूजा सिंघल के खिलाफ आरोप तय करने को लेकर बहस पूरी, 10 अप्रैल को अगली सुनवाई

निलंबित आईएएस अधिकारी पूजा सिंघल के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग मामले में चार्ज फ्रेम (आरोप गठन) पर बुधवार को रांची की जिला अदालत में सुनवाई पूरी हो गई है। दोनों पक्षों की ओर से सुनवाई होने के बाद कोर्ट ने आरोप तय के लिए 10 अप्रैल की तिथि तय की है।

अगर पूजा सिंघल के खिलाफ आरोप तय होते है तो उनके खिलाफ के खिलाफ ट्रायल शुरू किया जा सकता है। इससे पहले ईडी की विशेष कोर्ट ने 3 अप्रैल को अपना फैसला सुनाते हुए पूजा की बरी करने की याचीका को खारिज कर दिया था। डिस्चार्ज याचिका खारिज होने से पूजा सिंघल को बड़ा झटका लगा था। ईडी कोर्ट के विशेष न्यायाधीश पीके शर्मा की कोर्ट में मनरेगा घोटाला मामले में सुनवाई चल रही है।

पूजा सिंघल फिलहाल प्रोविजनल बेल पर है।सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें कई शर्तों के साथ 2 महीने की अंतरिम जमानत दी है। इससे पहले कोर्ट ने पूजा सिंघल को 1 महीने की अंतरिम जमानत दी थी।

दरअसल पिछले साल 6 मई को ईडी ने पूजा सिंघल के आवास और उनसे जुड़े दो दर्जन से भी ज्यादा ठिकानों पर छापेमारी की थी। इस दौरान पूजा के पति के सीए सुमन कुमार के ठिकानों से 19 करोड़ से ज्यादा नकद बरामद किये गये थे। इस मामले में पूछताछ के बाद ईडी ने 11 मई को पूजा सिंघल को गिरफ्तार कर लिया था। पिछले साल 5 जुलाई को ईडी ने पूजा सिंघल, उनके पति अभिषेक झा और सीए सुमन सिंह के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी।

2.कोर्ट रूम पहुंचने में 10 मिनट की देरी पर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने मांगी माफी, वाकया हो गया वायरल!

सॉरी मैं लेट हो गया… यह कहते हुए जिस व्यक्ति ने माफी मांगी है, वह कोई और नहीं बल्कि वह चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डी वाई चंद्रचूड़ हैं। कोर्ट रूम में महज 10 मिनट की देरी पर पहुंचने पर उन्होंने ये बड़ा दिल दिखाया है। दरअसल, सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ समय के बहुत पाबंद हैं और इसका पालन करते हुए वह अन्य जजों और प्रशासनिक अधिकारियों को अपनी ड्यूटी को लेकर बड़ा संदेश देते रहे हैं। यह वाक्या कुछ दिन पहले का बताया जा रहा है।

एक साप्ताहिक मैग्जीन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एक दिन चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ को कोर्ट रूम में पहुंचने में 10 मिनट देरी हो गई थी। रिपोर्ट में बताया गया है कि जब वह पहुंचे तो सबसे पहले उन्होंने कोर्ट में मौजूद सभी से सॉरी बोला। CJI ने कहा, ‘क्षमा कीजियेगा, मैं साथी जजों के साथ कुछ डिस्कस कर रहा था… इसलिए लेट हो गया।’ सुप्रीम कोर्ट के किसी जज के लिए इतनी सी देरी पर माफी मांगना कोई सामान्य बात नहीं है।

सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ बेहद अनुशासित हैं और कानून का सख्ती से पालन करते हैं। वह दूसरों से भी समय का पूरा ध्यान रखते हुए कोर्ट पहुंचने की उम्मीद रखते हैं। जस्टिस चंद्रचूड़ के दूसरे साथी जज भी कहते हैं कि उन्हें सच्चाई कहने से जरा सी गुरेज नहीं होती है और मुस्कुराते हुए सच कह देते हैं। उनकी यह खासियत ही उन्हें सबसे अलग और बेहद सरल मिजाज का व्यक्ति बनाती है।

3.तमिलनाडु में बिहारी मजदूरों के साथ भेदभाव का मामला, BJP नेता प्रशांत उमराव दाखिल की सुप्रीम कोर्ट में याचीका

तमिलनाडु में बिहार के प्रवासी मजदूरों के साथ कथित भेदभाव और हिंसा के मामले में तमिलनाडु पुलिस द्वारा बीजेपी नेता प्रशांत उमराव के खिलाफ दर्ज मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है।
प्रशांत उमराव पर आरोप है कि उन्होंने तमिलनाडु के कुछ ऐसे कथित वीडियो वायरल किए हैं जिसमें हिस्सों बिहार के श्रमिकों के साथ हिंसात्मक व्यवहार किया जा रहा है। हालांकि पुलिस ने इन वीडियोज को फर्जी करार दिया है।

इन्हीं आरोपों में तमिलनाडु की पुलिस ने प्रशांत उमराव के खिलाफ अलग-अलग स्थानों पर एफआईआर दर्ज की है। प्रशांत उमराव ने अलग-अलग राज्यों में दर्ज सभी FIR को क्लब करने की मांग की है। सुप्रीम कोर्ट प्रशांत उमराव की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के लिए तैयार। कोर्ट 6 अप्रैल को याचिका पर करेगा सुनवाई।

प्रशांत उमराव ने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन और बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव की मुलाकात की तस्वीर शेयर करते हुए दावा किया था कि बिहार के 12 प्रवासियों को हिंदी में बोलने के लिए तमिलनाडु में लटका दया गया था।

जिसके बाद तमिलनाडु पुलिस ने दो लोगों के खिलाफ फेक न्यूज फैलाने के आरोप में मुकदमा दर्ज किया था। तमिलनाडु पुलिस पहले ही कह चुकी है कि इज़ संबंध में सोशल मीडिया पर जो वीडियो शेयर किए गए वो फर्जी और भ्रामक था।

4. दिल्ली वकील हत्याकांड मामला: सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) ने  एडवोकेट्स प्रोटेक्शन एक्ट जल्द पारित करने की मांग की।

सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) की कार्यकारी समिति ने बुधवार को एक बयान जारी कर दिल्ली के एक वकील की हाल ही में हुई हत्या की निंदा की और कहा कि इस मामले की जांच शीघ्र और निष्पक्ष तरीके से की जानी चाहिए। SCBA की कार्यकारी समिति ने नई दिल्ली में प्रैक्टिस कर रहे अधिवक्ता वीरेंद्र कुमार नरवाल पर क्रूर हमले की निंदा की है। एडवोकेट नरवाल की हाल ही में दिल्ली के द्वारका इलाके में बाइक सवार 2 हमलावरों ने कथित तौर पर गोली मारकर हत्या कर दी थी। SCBA ने यह भी कहा कि अगर जरूरत पड़ी तो मामले को संभालने के लिए एक एसआईटी का गठन किया जाना चाहिए।
SCBA ने एक प्रेस बयान जारी किया जिसमें कहा गया है कि “वकील समाज का अभिन्न अंग रहे हैं, और वकीलों पर इस तरह का हमला बड़े पैमाने पर जनता के विश्वास को पूरी तरह से चकनाचूर कर देगा, अगर कानून के शासन की रक्षा करने वाले लोगों पर इस तरह से हमला किया जाता है। अधिवक्ता अन्यथा समाज के कमजोर तबके भी हैं जिनके पास कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं है।” एससीबीए की कार्यकारी समिति ने बयान में संकल्प लिया कि वकील संरक्षण विधेयक, 2021, जो लगभग 2 वर्षों से अपने संसदीय अधिनियमन के लिए लंबित है, को जल्द से जल्द पारित किया जाए, ताकि वकीलों की सुरक्षा और सुरक्षा सुनिश्चित हो सके और वे अपने पेशेवर दायित्वों का निर्भीकता से पालन कर सकें।

SCBA ने यह भी कहा कि हम आशा करते हैं कि हमारी मांगों पर प्राथमिकता से विचार किया जाएगा जिससे दोषियों को तुरंत गिरफ्तार किया जाएगा और अखिल भारतीय अधिवक्ता संरक्षण अधिनियम जल्द ही संसद द्वारा प्राथमिकता पर पारित किया जाएगा।

5. एनडीपीएस अधिनियम के तहत अपराध तय करते समय गांजे में बीज, पत्तियों और डंठल का वजन शामिल नहीं किया जा सकता: बॉम्बे हाई कोर्ट

बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा कि नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सबस्टेंस एक्ट (एनडीपीएस एक्ट) के तहत अपराध तय करने के लिए गांजे के वजन का पता लगाते समय, बीज के पत्तों और पौधे के डंठल के वजन को बाहर रखा जाना चाहिए।

एकल-न्यायाधीश न्यायमूर्ति अनुजा प्रभुदेसाई ने कहा कि एनडीपीएस अधिनियम की धारा 2 (iii) (बी) के अनुसार, बीज और पत्ते ‘गांजा’ की परिभाषा के तहत कवर नहीं किए जाएंगे, जब तक कि वे भांग के पौधे के फूल या फलने वाले शीर्ष के साथ न हों।”

अदालत ने कहा कि “मामला यह है कि पूरे पदार्थ को एक साथ तौला गया था, फूल या फलने वाले शीर्ष के वजन को निर्धारित किए बिना, यह संदेह पैदा करता है कि क्या याचिकाकर्ता से जब्त ‘गांजा’ एनडीपीएस अधिनियम के धारा 20 (सी) के तहत प्रावधान के तहत वाणिज्यिक मात्रा का था।

वही अभियोजन का मामला आवेदक अभियुक्त के पास 20 किलोग्राम से अधिक गांजा था, जो एनडीपीएस अधिनियम के अनुसार वाणिज्यिक मात्रा के बराबर था। कोर्ट ने रिकॉर्ड से जांच की कि जांच एजेंसी ने दोनों बैगों से स्वतंत्र रूप से नमूने नहीं लिए थे, बल्कि दोनों बैगों में पूरे प्रतिबंधित पदार्थ को मिला दिया था। इसमें से एक नमूना लिया गया और विश्लेषण के लिए केंद्रीय फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला भेजा गया। रिकॉर्ड से पता चला कि जब्त किए गए पदार्थ का कुल वजन 21 किलोग्राम था जिसमें बीज, पत्तियों और डंठल का वजन शामिल था, जो कि प्रथम दृष्टया फूल या फलने वाले हिस्से के साथ नहीं थे।

उपरोक्त टिप्पणी के साथ अदालत ने आरोपी को ₹50,000 की राशि के मुचलके पर जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया।

6.केरल की अदालत ने आदिवासी व्यक्ति मधु की लिंचिंग और हत्या के 13 दोषियों को 7 साल की जेल की सजा सुनाई

केरल की एक अदालत ने बुधवार को 2018 में मधु नाम के एक आदिवासी व्यक्ति की लिंचिंग और हत्या के लिए तेरह लोगों को सात साल की जेल की सजा सुनाई। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम (एससी/एसटी अधिनियम) के तहत मामलों की सुनवाई के लिए स्थापित एक विशेष अदालत ने कल मामले में आरोपित सोलह लोगों में से चौदह को दोषी ठहराया था। 16वें आरोपी को केवल भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 352 के तहत दोषी पाया गया, जिसमें अधिकतम तीन साल की जेल की सजा है।

अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार, पलक्कड़ के अट्टापदी में एक मानसिक रूप से विक्षिप्त आदिवासी किशोर मधु को बांधकर बेरहमी से पीट-पीटकर मार डाला गया था। मधु पर किराने की दुकान से चावल चुराने का आरोप लगाने के बाद, आरोपी ने कथित तौर पर उसे पास के जंगल से अगवा कर लिया और उसके साथ मारपीट की। विशेष अदालत द्वारा आज दोषी पाए गए अभियुक्तों पर धारा 143, 147, 148, 323, 324, 326, 294(बी), 342, 352, 364, 367, 368 और 302 आर/डब्ल्यू 149 के तहत दंडनीय अपराध का आरोप लगाया गया। भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), साथ ही अनुसूचित जाति और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (पीओए) अधिनियम की धारा 3(1) (डी), (आर) (एस), और 3(2) (वी)। हालांकि हाईकोर्ट ने पहले उन्हें कई शर्तों के साथ जमानत दी थी।

7.राम मंदिर की तरह श्रीकृष्ण जन्मभूमि वाद हाईकोर्ट में ही क्यों न चले जवाब के लिए मुस्लिम पक्ष को आखिरी मौका

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मुस्लिम पक्ष को एक आखिरी मौका दिया है कि वो श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद को मथुरा की अदालत से उच्च न्यायालय में स्थानांतरित करने की मांग वाली याचिका पर अपना जवाब में 7 अप्रैल तक दाखिल करें। यदि मुस्लिम पक्ष की ओर से जवाब नहीं आता है तो मामला उच्च न्यायालय में सुना जाएगा।

दरअसल, मधुरा में जहां मस्जिद ईदगाह बनी है उस जमीन पर हिंदू श्रद्धालुओं ने अपना हक जताया है। याचिकाकर्ताओं ने अनुरोध किया है कि वाद का मूल परीक्षण उच्च न्यायालय द्वारा ही किया जाना चाहिए।

अदालत ने प्रतिवादियों को कृष्ण जन्मभूमि मंदिर के बगल में शाही मस्जिद ईदगाह, श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट, कटरा केशव देव, डीग गेट, मथुरा और श्रीकृष्ण जन्म स्थान सेवा संस्थान का प्रबंधन करने वाली समिति को निर्देश देते हुए मामले में सुनवाई की अगली तारीख 11 अप्रैल तय की। कटरा केशव देव को 7 अप्रैल तक हाईकोर्ट के ई-मोड के माध्यम से अपना जवाब दाखिल करने के लिए कहा गया है।

इसलिए, अदालत ने याचिकाकर्ताओं को ई-मोड के माध्यम से जवाबी हलफनामा प्राप्त करने के बाद अपना प्रत्युत्तर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया।

भगवान श्रीकृष्ण विराजमान द्वारा कटरा केशव देव खेवत मथुरा (देवता) में अपनी करीबी मित्र रंजना अग्निहोत्री और सात अन्य के माध्यम से दायर स्थानांतरण याचिका दाखिल की थी जिस पर , न्यायमूर्ति अरविंद कुमार मिश्रा ने कहा, “मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, विशेष रूप से न्याय के हित में, अधिक समय नहीं दिया जा सकात है, फिर भी वाद की संवेदनशीलता को देखते हुए प्रतिवादी पक्ष को आखिरी मौका 7 अप्रैल, 2023 तक दिया गया है।

इस मामले में ई-मोड के माध्यम से जवाबी हलफनामा दायर किया जाए और इस तरह के फाइलिंग से पहले पार्टियों को प्रतियां प्रदान की जाएं। यदि संबंधित पक्षों को जवाबी हलफनामे की कोई प्रति नहीं दी जाती है, तो अदालत अगली तय तारीख पर मामले को आगे बढ़ाएगी।”

इससे पहले 15 मार्च को इस अदालत ने इस मामले के सभी प्रतिवादियों को अपना-अपना जवाब दाखिल करने का आखिरी मौका दिया था। मंगलवार को जब मामले की सुनवाई हुई तो अदालत ने पाया कि अब तक कोई जवाब पेश नहीं किया गया है।

इससे पहले, याचिकाकर्ताओं (हिंदू पक्ष) के वकीलों ने तर्क दिया कि मामला भगवान कृष्ण के करोड़ों भक्तों से संबंधित हैं और यह मामला राष्ट्रीय महत्व का है। कानून के पर्याप्त प्रश्न और संविधान की व्याख्या से संबंधित कई प्रश्न जो पूर्वोक्त मुकदमों में शामिल हैं, उच्च न्यायालय द्वारा संवैधानिक न्यायालय होने के कारण आसानी से तय किए जा सकते हैं।
इसके अलावा, याचिकाकर्ताओं के वकील ने दलील दी कि इस मामले में इतिहास, धर्मग्रंथों, हिंदू और मुस्लिम कानून की व्याख्या और संविधान की व्याख्या से संबंधित कई सवाल शामिल हैं।
इसलिए, याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि निचली अदालत के समक्ष लंबित सभी मुकदमों को उच्च न्यायालय में स्थानांतरित किये जाने चाहिए।

8.कर्नाटक हाईकोर्ट ने BJP विधायक रेणुकाचार्य के खिलाफ FIR खारिज करने से इनकार किया

कर्नाटक हाईकोर्ट  ने भाजपा नेता एम. पंचाक्षर्या रेणुकाचार्य के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के कथित आरोप को खारिज करने से इनकार कर दिया है।

न्यायमूर्ति के नटराजन की एकल पीठ ने भाजपा विधायक याचिका को खारिज करते हुए कहा कि इस याचिका को मेरिट के आधार पर दाखिल नहीं किया गया है। इसलिए यह खारिज किए जाने योग्य बनती है।
दरअसल, पुलिस ने गुरुपदैया द्वारा दर्ज की गई एक निजी शिकायत के आधार पर, 30 नवंबर 2015 को प्राथमिकी दर्ज की थी जिसमें रेणुकाचार्य पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने 2004 से 2008 तक विधान सभा के सदस्य रहते हुए अपनी आय के ज्ञात स्रोत से अधिक संपत्ति अर्जित की थी।

शिकायतकर्ता ने आरोप लगाए हैं कि “कर्नाटक राज्य सरकार में मंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान आय और संपत्ति में वृद्धि हुई थी, उन्होंने अपने भाई के साथ शिमोगा में बापूजी शैक्षिक संस्थान के नाम से शैक्षिक संस्थान की स्थापना की थी और जब याचिकाकर्ता विधायक थे तब भाइयों ने भी बड़ी संपत्ति अर्जित की थी।

9.प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट कानून के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट जुलाई में करेगा सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट 1991 प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट कानून के कुछ प्रावधानों की वैधता को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं पर अब जुलाई में सुनवाई करेगा। बुधवार को मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट को बताया गया कि अभी तक केंद्र सरकार ने इन मामले में जवाब दाखिल नही किया है। जिसपर कोर्ट ने कहा कि वो कि तीन जजों की पीठ जुलाई में इस मामले की सुनवाई करेगा।

दरसअल सुप्रीम कोर्ट में आठ से ज्यादा जनहित याचिकाएं दाखिल कर 1991 प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट के कुछ प्रावधानों की वैधता को चुनोती दी गई है।
दरसअल 1991 में लागू किया गया यह प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट कहता है कि 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में आए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म के पूजा स्थल में नहीं बदला जा सकता है। इतना ही नही यदि कोई इस एक्ट का उल्लंघन करने का प्रयास करता है तो उसे जुर्माना और तीन साल तक की जेल भी हो सकती है।

प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट कानून तत्कालीन कांग्रेस प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव सरकार 1991 में लेकर आई थी।

10. ममता सरकार को कलकत्ता हाई कोर्ट की दो टूक:हनुमान जयंती पर बंगाल पुलिस से न संभले तो पैरा मिलिट्री तैनात करें

कलकत्ता हाई कोर्ट ने बुधवार को हनुमान जयंती के संबंध में ममता बनर्जी सरकार को दो टूक कहा कि अगर बंगाल पुलिस हालात नहीं संभाल पा रही है तो केंद्रीय बलों को तैनात किया जाए। दरसअल पश्चिम बंगाल में रामनवमी पर शोभायात्रा के दौरान हिंसा के बाद ममता बनर्जी सरकार विपक्ष और अदालत के सवालों के घेरे में है। रामनवमी पर हावड़ा के बाद हुगली में भी हिंसा हुई थी। इस मामले में कलकत्ता हाई कोर्ट ने ममता सरकार से रिपोर्ट तलब की थी।

कलकत्ता हाई कोर्ट ने कहा कि इस बात का विशेष ध्यान रखा जाए कि जिस इलाके में धारा 144 लगी है, वहां से होकर जुलूस न निकले।

हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान एक महिला वकील ने दलील दी कि शोभायात्रा के दौरान पथराव में उन्हें चोटें आई थीं। कलकत्ता हाई कोर्ट ने सुनवाई के दौरान राज्य सरकार से पूछा कि हनुमान जयंती की क्या तैयारी है? कोर्ट ने साथ ही राज्य सरकार को निर्देश दिया कि जहां-जहां धारा 144 लगी हो, वहां से हनुमान जयंती का जुलूस या शोभायात्रा न निकाली जाए। वही कोर्ट ने जुलूस के दौरान ममता सरकार को सुरक्षा इंतजाम दुरुस्त करने के निर्देश दिए हैं।

11. विपक्षी दलों को सुप्रीम झटकाः ED-CBI के इस्तेमाल पर गाइड लाइन की मांग वाली 14 दलों की याचिका SC ने कर दी खारिज

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कांग्रेस के नेतृत्व वाली 14 पार्टियों की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें विपक्षी नेताओं के खिलाफ केंद्रीय जांच एजेंसियों के मनमानी का इस्तेमाल करने और भविष्य के लिए दिशानिर्देश मांगने का आरोप लगाया गया था।

मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पर्दीवाला की पीठ ने कहा कि “किसी मामले के तथ्यों के संबंध के बिना सामान्य दिशा-निर्देश देना खतरनाक होगा”।

याचिका पर विचार करने में शीर्ष अदालत की अनिच्छा को भांपते हुए राजनीतिक दलों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता ए एम सिंघवी ने याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी।

सीजेआई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि “याचिकाकर्ताओं के वकील इसी स्तर पर याचिका वापस लेने की अनुमति चाहते हैं। इसलिए याचिका खारिज की जाती है। ,

पीठ ने कहा, ‘जब आपके पास व्यक्तिगत आपराधिक मामला या मामलों का समूह हो तो आप कृपया हमारे पास वापस आएं।’

याचिका में विपक्षी राजनीतिक नेताओं और असहमति के अपने मौलिक अधिकार का प्रयोग करने वाले अन्य नागरिकों के खिलाफ जबरदस्त आपराधिक प्रक्रियाओं के उपयोग में खतरनाक वृद्धि का आरोप लगाया गया है।

कांग्रेस के अलावा, जो दल संयुक्त कदम का हिस्सा हैं, वे हैं DMK, RJD, BRS, तृणमूल कांग्रेस, AAP, NCP, शिवसेना (UBT), JMM, JD (U), CPI (M), CPI, समाजवादी पार्टी और जे-के नेशनल कॉन्फ्रेंस।

12. *तमिलनाडु में बिहारी मजदूरों पर हमले वाले फर्जी वीडियो वायरल करने के आरोपी यूट्यूबर मनीष कश्यप पहुंचे सुप्रीम कोर्ट*

तमिलनाडु में बिहारी मजदूरों पर हमले का फर्जी वीडियो वायरल करने के आरोप में गिरफ्तार यूट्यूबर मनीष कश्यप  ने  सुप्रीम कोर्ट का दरबाजा खटखटाया है।

मनीष कश्यप के वकील ने  सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर अंतरिम जमानत के साथ अपने खिलाफ विभिन्न राज्यों में दर्ज एफआईआर को एक साथ क्लब करने की मांग भी की है ।

दरअसल. तमिलनाडु में बिहारी मजदूरों पर हमले का फर्जी वीडियो शेयर करने मामले में आरोप में मनीष कश्यप अभी तमिलनाडु पुलिस की कस्टडी में है। पिछले सप्ताह तमिलनाडु पुलिस की टीम कोर्ट से प्रोडक्शन वारंट लेकर उसे अपने साथ ले गई थी। वहां मदुरई कोर्ट से रिमांड पर लेकर तमिलनाडु पुलिस मनीष कश्यप से पूछताछ कर रही है।