Legally Speaking: 300 रुपये की घूसखोरी! 18 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने साबित किया निर्दोष, हाईकोर्ट के आदेश को पलटा

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आज समाज डिजिटल, नई दिल्ली :

1.300 रुपये की घूसखोरी! 18 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने साबित किया निर्दोष, हाईकोर्ट के आदेश को पलटा

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐसे व्यक्ति को निर्दोष साबित किया है जो मात्र 300 रुपये की घूसखोरी का आरोप 18 साल से अपने सिर पर ढो रहा था। ट्रायल कोर्ट ने 2005 में उसे रिश्वत लेने का दोषी ठहराया दिया था।

न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की पीठ ने कहा कि इस मामले में घूस मांगने का कोई सबूत नहीं है। साथ ही ऐसा कोई तथ्य नहीं है जिसे स्वीकार किया जाए और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत सजा दी जाए।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “उच्च न्यायालय ने इस धारणा पर अपना फैसला पारित किया है कि अपीलकर्ता से पैसा वसूल किया गया था। पैसा वसूलना और घूस मांगना दोनों अलग है। यह ऐसा मामला नहीं है जहां घूस की मांग को साबित करने के लिए परिस्थितिजन्य साक्ष्य उपलब्ध हों।

दरअसल, याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से 2010 के पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अपील की थी। जिसमें हाईकोर्ट ने 2005 में दिए गए सेशन कोर्ट के फैसले को यथावत रखा गया था और उसे भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दोषी ठहरा दिया गया था।

याचिकाकर्ता पर आरोप था कि घटना 2003 में मृत्यु प्रमाण पत्र बनाने के लिए कथित रूप से 300 रुपये की रिश्वत मांगी थी। यह भी आरोप था कि एक विजिलेंस टीम ने घूस में दिए गए नोटों पर कैमिकल लगाया था और उसे कथित रूप से रंगे हाथ पकड़ा था।

याचिकाकर्ता ने कहा कि वो संबंधित कार्यालय में एक सफाईकर्मी था। उसके पास मृत्यु प्रमाण पत्र बनाने या जारी करने का अधिकार ही नहीं था तो वो उसके रिश्वत किस आधार पर वसूल सकता था।

पंजाब सरकार के वकील ने कहा कि मामले में रिश्वत मांगने का अनुमान लगाया जा सकता है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसा लगता है कि यह मामला व्यक्तिगत रंजिश का है क्योंकि कि ट्रायल कोर्ट ने भी स्वीकार किया कि अभियुक्त द्वारा पैसे मांगने का कोई सबूत नहीं था। इसके अलावा, जब पैसा कथित तौर पकिया गया था वो आरोपी ने मांगा नहीं था। नतीजतन, अपील मंजूर की गई, और सजा को खत्म कर दिया गया। मगर, एक निर्दोष को न्याय के लिए 18 साल इंतजार करना पड़ा।

2.इलाहाबाद हाईकोर्ट से AIMIM चीफ असदउद्दीन ओवैसी को बड़ी राहत, 24 अप्रैल तक दण्डात्मक कार्रवाई पर रोक

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के चीफ असदुद्दीन ओवैसी को बड़ी राहत दी है। कोर्ट ने यूपी सरकार को आदेश दिया है कि सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ उनकी विवादास्पद टिप्पणी के मामले में 24 अप्रैल, 2023 तक कोई दंडात्मक कार्रवाई न की जाए।

इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति राजीव गुप्ता की पीठ ने ओवैसी की याचिका पर यह आदेश पारित किया।

ओवैसी के वकील ने तर्क दिया कि उन पर भारतीय दंड संहिता की धारा 153 (ए) के तहत अपराध के लिए मुकदमा चलाया जा रहा है, हालांकि, धारा 196 (1) सीआरपीसी के तहत संबंधित प्राधिकरण से आवश्यक मंजूरी नहीं ली गई थी और इस तरह, पूरी कार्यवाही कानून की नजर में गलत है।

एकल न्यायाधीश की पीठ ने कहा कि इस मामले पर विचार करने की आवश्यकता है। इसलिए, पीठ ने मामले में शिकायतकर्ता को नोटिस जारी किया और मामले को सुनवाई के लिए 24 अप्रैल, 2023 को सूचीबद्ध कर दिया।

3.सलमान खान की याचिका पर बॉम्बे हाईकोर्ट में सुनवाई पूरी, 30 मार्च को आदेश सुनाया जाएगा

बॉम्बे हाई कोर्ट ने अंधेरी मजिस्ट्रेट कोर्ट द्वारा जारी समन के खिलाफ भारतीय सिनेमा अभिनेता सलमान खान की याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया है। सम्मन एक पत्रकार द्वारा अभिनेता पर मारपीट और कदाचार का आरोप लगाने वाली शिकायत पर जारी किया गया था।

सुनवाई के दौरान बॉम्बे हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति भारती डांगरे ने कहा, हर किसी की अपनी निजता है,चाहे वह अभिनेता, वकील हो या न्यायाधीश हों। हम में से कोई भी कानून से ऊपर नहीं है। न तो कोई अभिनेता और न ही कोई मीडिया पर्सन। सभी कानून का पालन करने के लिए बंधे हुए हैं।

अंधेरी कोर्ट जारी समन के अनुसार, सलमान खान ने मुंबई में साइकिल चलाते समय पत्रकार का मोबाइल फोन छीन लिया। घटना उस समय हुई जब शिकायतकर्ता अपनी फोटो क्लिक कर रहा था। अभिनेता ने कथित तौर पर बहस की और पत्रकार को धमकी दी।

हाईकोर्ट ने दस्तावेद देखने के बाद कहा कि शिकायतकर्ता जर्नलिस्ट के बयान में बदलाव है, पहले केवल उसका फोन छीने जाने का जिक्र था और हमले के बारे में कुछ नहीं था।

बाद में जब उसने मजिस्ट्रेट के सामने शिकायत दर्ज कराई तो कथित तौर पर मारपीट का भी जिक्र किया। न्यायमूर्ति डांगरे ने पूछा, “क्या आपको हमला करनेका एहसास दो महीने के बाद हुआ?

जर्नलिस्ट की ओर से पेश हुए अधिवक्ता फाजिल शेख ने कहा कि पहली शिकायत में भी ऐसा उल्लेख किया गया था। “बयानों में लिखा है, झपटा मरते हुए, वह (सलमान खान) जबरन फोन लेकर चला गया। सलमान खान ने हाथापाई की। उसने बल का प्रयोग किया। जब पत्रकार ने पुलिस कंट्रोल को 100 नंबर डायल किया, तब उसने फोन वापस कि

4.देश के 14 राजनीतिक दलों ने सुप्रीम कोर्ट से की केंद्र सरकार की शिकायत, 5 अप्रैल को मामले की सुनवाई

सड़क से लेकर संसद तक विफल रहने के बाद अब 14 विपक्षी दलों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। विपक्षी दलों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई है कि सरकार ईडी और सीबीआई का राजनीतिक उपयोग कर रही है। ये सभी 14 दलों के नेता की बात को वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी के ने चीफ सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के सामने रखा।

सीजेआई ने प्रकरण सुनने के बाद आश्वासन दिया कि वो इस मामले पर 5 अप्रैल को सुनवाई करेंगे। अभिषेक मनु सिंघवी ने गिरफ्तारी और बेल पर कोर्ट दिशानिर्देश तय करने का आग्रह कोर्ट से किया। उन्होंने आरोप लगाया कि लगातार विपक्षी नेताओं को निशाना बनाया जा रहा है।

इससे पहले, दिल्ली आबकारी नीति मामले में मनीष सिसोदिया के गिरफ्तार होने के बाद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी समेत विपक्ष के नौ नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखा था।

प्रधानमंत्री को संबोधित इस पत्र में विपक्षी नेताओं लिखा था कि विरोधी दलों के सदस्यों के खिलाफ केंद्रीय एजेंसियों के घोर दुरुपयोग से लगता है कि हम लोकतंत्र से निरंकुशता में परिवर्तित हो गए हैं। दरअसल, 26 फरवरी 2023 को दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को सीबीआई ने शराब नीति घोटाले में संबंध में गिरफ्तार किया था।

प्रधानमंत्री को लिखे गए पत्र पर भारत राष्ट्र समिति के प्रमुख और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव, नेशनल कान्फ्रेंस के नेता और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के प्रमुख शरद पवार और शिवसेना (UBT) के प्रमुख उद्धव ठाकरे ने हस्ताक्षर किए थे।

5.राहुल गांधी की लोक सभा सदस्यता रद्द, ‘मोदी’ उपनाम की मानहानि के आरोप में हुई थी 2 साल जेल की सजा

‘मोदी’ उपनाम को लांछित किए जाने के आरोप में सूरज की जिला अदालत द्वारा दोषी साबित किए जाने और दो साल की सजा जेल की सजा सुनाए जाने के एक दिन बाद ही लोक सभा के स्पीकर ओम बिड़ला ने राहुल गांधी की लोक सभा सदस्यता रद्द कर दी। राहुल गांधी केरल की वायनाड लोकसभा सीट से सांसद थे।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी को उनकी कथित ‘मोदी सरनेम’ टिप्पणी को लेकर उनके खिलाफ दायर 2019 के आपराधिक मानहानि के मामले में सूरत जिला अदालत ने दोषी ठहराते हुए दो साल की जेल की सजा का ऐलान किया था। संवैधानिक प्राविधानों के मुताबिक यदि किसी सांसद को न्यायालय से सजा का ऐलान होते ही निर्वाचन आयोग उस सदस्य की सदस्यता को रद्द कर सकता है।

दरअसल, 13 अप्रैल 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले कर्नाटक के कोलार में एक रैली में राहुल गांधी ने मोदी ‘उपनाम’ पर कथित टिप्पणी की थी। इस टिप्पणी पर भाजपा विधायक और गुजरात के पूर्व मंत्री पूर्णेश मोदी ने न्यायालय में राहुल गांधी के खिलाफ मुकदमा किया था। गुजरात की सूरत जिला अदालत ने सुनवाई पूरी करने के बाद 23 मार्च यानी आज का दिन फैसला सुनाने के लिए तय किया था।

सूरत कोर्ट की ओर से सजा का ऐलान होने के बाद राहुल गांधी अब बीजेपी के निशाने पर आ गए हैं। बीते दिनों कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में अपनी विवादित टिप्पणी पर घिरे कांग्रेस सांसद के लिए ये बड़ा झटका कहा जा सकता है। वहीं, सजा मिलने के बाद बीजेपी नेता अश्विनी चौबे ने कहा कि राहुल गांधी कोर्ट के कटघरे में हैं, वे लोकतंत्र के कटघरे में भी हैं। इस मंदिर में आकर माफी मांगने की भी हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं।

6. 9 साल की बच्ची के साथ बलात्कार और हत्या के मुजरिम को गाजियाबाद की जिला अदालत ने सुनाई सजा-ए-मौत

रेप और मर्डर के एक मामले का फैसला सुनाते हुए उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिला अदालत ने कहा कि आरोपी का अपराध बेहद जघन्य प्रकृति का है और मानवता के लिए शर्मनाक है, अगर ऐसी आपराधिक मानसिकता वाला व्यक्ति समाज में जीवित रहेगा तो महिलाओं और मानवता के लिए गंभीर संकट खड़ा हो जाएगा। इस लिए 9 साल की बच्ची के साथ बलात्कार और हत्या के लिए दोषी को सजा-ए-मौत दी जाती है।

न्यायाधीश अमित कुमार प्रजापति की अध्यक्षता वाली विशेष पॉक्सो अदालत ने अभियुक्त को धारा 363, 376 एबी, 323, 302 और पॉक्सो अधिनियम की धारा 6 के तहत दोषी ठहराते हुए उसे यह कहते हुए मौत की सजा सुनाई कि अभियोजन पक्ष अपने मामले को एक सीमा से परे साबित करने में सक्षम है।

दरअसल, 25 साल के आरोपी कपिल ने 18 अगस्त 2022 की रात गाजियाबाद के पास मोदीनगर में अपने गांव से दो लड़कियों को आइसक्रीम खिलाने के बहाने अगवा कर लिया था। इन दो लड़कियों में एक उसके चंगुल से भागने में सफल रही जबकि 9 वर्षीय पीड़िता के साथ उसने गन्ने के खेत में ले जाकर बलात्कार किया और फिर गला घोंट कर उसे मार डाला।

रिकॉर्ड पर उपलब्ध साक्ष्यों के समग्र विश्लेषण पर, न्यायालय ने कहा कि इससे यह तथ्य स्थापित होता है कि मृतक के अपहरण के संबंध में चश्मदीदों के मौखिक बयानों की पुष्टि इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों और सीसीटीवी फुटेज से होती है और उनके बयानों के एक-दूसरे के अनुरूप हैं।

न्यायालय ने यह भी पाया कि अपहरण के अपराध से संबंधित सबूतों के संबंध में अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किए गए गवाह पूरी तरह से विश्वसनीय गवाह थे। इसके अलावा मृतक के शरीर पर चोट के निशान डॉक्टर के साक्ष्य, मेडिकल रिपोर्ट और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से साबित हुआ कि अपराध जघन्य तरीके से किया गया था।

7.गैर कानूनी संगठन के सदस्य पर UAPA के तहत कार्रवाई जायज, सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी भी व्यक्ति का किसी गैरकानूनी संगठन का सदस्य होना भी अपराध की श्रेणी में आता है और गैरकानूनी संगठन का सदस्य होना ही यूएपीए के तहत कार्रवाई का आधार बन सकता है। खास बात ये है कि सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दिए फैसले में साल 2011 का दिया अपना ही फैसला पलट दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने अरूप भुयन बनाम असम सरकार, इंदिरा दास बनाम असम सरकार और केरल सरकार बनाम रनीफ मामलों में दिए अपने फैसले में कहा था कि गैरकानूनी संगठन का सदस्य होना ही गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल होने का आधार नहीं हो सकता, जब तक कि वह किसी हिंसा की घटना में शामिल न हो।

जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस संजय कौल की बेंच ने अपने फैसले में गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 की धारा 10(A)(1) को भी सही ठहराया है, जो गैरकानूनी संगठन की सदस्यता को भी अपराध घोषित करती है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि 2011 का फैसला जमानत याचिका पर दिया गया था, जहां कानून के प्रावधानों की संवैधानिकता पर सवाल नहीं उठाया गया था। साथ ही गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम और आतंकवाद और विघटनकारी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम की संवैधानिकता को भी सही ठहराया गया था।

8. संभाजीनगर! सुप्रीम कोर्ट ने नाम बदलने के खिलाफ डाली गई याचिका को सुनने क्यों किया इंकार? देखें रिपोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को औरंगाबाद शहर का नाम बदलकर ‘छत्रपति संभाजीनगर’ करने को चुनौती देने वाली एक याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को पहले बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका पर आने वाले फैसले का इंतजार करना चाहिए। , इस वाद को सुनने वाली पीठ में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला शामिल थे।

याचिका में भारत सरकार और महाराष्ट्र राज्य द्वारा संभागीय आयुक्त, औरंगाबाद के पत्र दिनांक 4 मार्च 2020 को दी गई मंजूरी को चुनौती दी गई थी। इसी पत्र के माध्यम से अधिसूचित किया गया था कि औरंगाबाद शहर का नाम बदलकर ‘छत्रपति संभाजीनगर’ कर दिया गया है।

जैसे ही सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई शुरू की वैसे ही महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश हुए अधिवक्ता बीरेंद्र सराफ ने जानकारी दी कि यह मामला बॉम्बे हाईकोर्ट में भी 27 मार्च को सूचीबद्ध है। इतना सुनने के बाद सीजेआई ने कहा कि मामला हाईकोर्ट में लंबित है इसलिए उनकी पीठ इस याचिका पर विचार नहीं करेगी।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट से मामले को अगले हफ्ते के पहले दिन यानी सोमवार को लिस्ट करने की मांग की तो सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा हाईकोर्ट ही जाइए।

याचिकाकर्ता के अनुसार, उन्होंने 1996 में औरंगाबाद का नाम बदलने के इसी तरह के प्रयास को चुनौती दी थी। याचिका में कहा गया था कि उक्त मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया, उस वक्त अदालत ने यथास्थिति का आदेश दिया। हालाँकि, बाद में अधिसूचना को राज्य सरकार द्वारा वापस ले लिया गया। याचिका में तर्क दिया गया कि शहर का नाम बदलने के वर्तमान प्रयास को उनके द्वारा एक जनहित याचिका के माध्यम से फिर से चुनौती दी गई थी जो बॉम्बे उच्च न्यायालय में लंबित है। इस बात को नजरअंदाज करते हुए भारत सरकार ने शहर के नाम में प्रस्तावित परिवर्तन को मंजूरी दे दी।

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