आज समाज डिजिटल ,दिल्ली:
1.केंद्र सरकार की आपत्ति को सुप्रीम कोर्ट ने किया दरकिनार, शुरू की सेम सेक्स मैरिज पर बहस
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने एक बार फिर केंद्र सरकार की दलीलों को दरकिनार करते हुए सेम सेक्स मैरिज की याचिकाओं पर बहस जारी रखी। सरकार की ओर पेश हुए सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि उनकी आपत्तियां गुणों पर नहीं हैं। यदि योग्यताओं पर विचार किया जाना है तो तर्कों का एक अलग सेट है। ये केवल यह तय करने के लिए हैं कि कौन सा मंच निर्णय लेगा और कौन सा मंच उपयुक्त मंच होगा और संवैधानिक रूप से एकमात्र स्वीकार्य मंच होगा।” जहां यह बहस हो सकती है। इसलिए आपत्ति की प्रकृति के अनुसार, मेरे सम्मानजनक निवेदन में, इसे पहले सुना जाना चाहिए। सॉलीसीटर की इतना गिड़गिड़ाने के बावजूद सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं की विचारणीयता पर अपनी प्रारंभिक आपत्तियों को सुनने के लिए केंद्र की याचिका को स्वीकार करने से इनकार कर दिया है।
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति एसके कौल, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की संविधान पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं द्वारा मामले में अपनी दलीलें खोलने के बाद प्रारंभिक आपत्तियों को सुनना है या नहीं, इस पर बाद में विचार किया जाएगा। हालांकि बहस के दौरान एक समय ऐसा भी आया जब सालिसीटर जनरल ने कहा कि अगर पीठ उनकी बात सुनने के लिए तैयार नहीं है तो उन्हें और समय चाहिए तैयारी के लिए। इस पर जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा कि क्या वो बहस से बाहर जा रहे हैं। इस पर सालीसीटर जनरल ने कहा कि वो बहस छोड़ कर नहीं जा रहे लेकिन उन्हें सरकार से बात करनी होगी और सरकार के तर्क जानने होंगे। बहरहाल कुल मिलाकर यह हुआ कि केंद्र सरकार की आपत्तियों वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने सिरे से उड़ा दी और सेम सेक्स मैरिज को बैधता मिलनी चाहिए वाली याचिका पर बहस शुरू कर दी।
आज बहस के दौरान एडवोकेट सौरभ किरपाल सुप्रीम कोर्ट में शुरू से लेकर आखिर तक मौजूद रहे। बुधवार को भी बहस जारी रहेगी।
2.बॉम्बे हाई कोर्ट का बड़ा फैसला, सास-ससुर के मैनटेनेंस भुगतान की जिम्मेदारी विधवा बहू की नही
बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने अपने एक फैसले में कहा कि एक विधवा बहू को सास-ससुर (अपने मरे हुए पति के माता-पिता) को मैनटेनेंस के लिए भुगतान करने की जरूरत नहीं है। जस्टिस किशोर संत की सिंगल बेंच ने 30 साल की महिला शोभा तिडके की याचीका पर फैसला सुनाया। शोभा तिडके ने लातूर की एक निचली अदालत के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।
लातूर की एक निचली अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि महिला को रखऱखाव के लिए अपने मरे हुए पति के माता-पिता को भुगतान करना होगा।
दरसअल शोभा के पति महाराष्ट्र स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन में काम करते थे, जिनकी बाद में उनकी मौत हो गई थी। जिसके बाद उनकी पत्नी शोभा ने सरकारी हॉस्पिटल जेजे हॉस्पिटल मुंबई में काम करना शुरू किया। 68 साल के किशन राव टिडके और 60 साल की कांताबाई तिड़के, शोभा के सास-ससुर हैं। इन दोनों ने अदालत में दावा किया कि उनके पास कमाई का कोई और जरिया नहीं है। इसी वजह से उन्होंने अपने मैनटेनेंस के लिए पैसों की मांग की थी।
वहीं शोभा तिडके ने हाई कोर्ट में दावा किया कि उनके सास-ससुर के पास गांव में जमीन और अपना एक घर है, और पति की मौत के बाद उन्हें ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट से 1.88 लाख रुपये भी दिए गए थे। इस दलील के बाद कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि जो जॉब शोभा कर रही हैं वह अनुकम्पा के जरिए नहीं दी गई है।
कोर्ट ने इस दौरान टिप्पणी करते हुए कहा कि मृतक के माता-पिता के पास गांव में घर और जमीन भी है, और उन्हें उनके बेटे की मौत के बाद ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट से भी मुआवजा भी मिला था। कोर्ट ने इन सभी दलीलों को मानते हुए कहा कि माता-पिता के पास कोई ठोस आधार नहीं है कि वह महिला से मैंनटेनेंस की मांग करें।
3. भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन को राहत, 14 साल पुराने आचार संहिता उल्लंघन के मामले में अदालत ने बरी किया
भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन को भागलपुर अदालत से बड़ी राहत मिल गई है। साल 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान आदर्श आचार संहिता उल्लंघन के मामले में दर्ज मुकदमे को अदालत ने खारिज कर दिया है। लोकसभा चुनाव में
चुनाव ड्यूटी कर रहे तत्कालीन मजिस्ट्रेट के लिखित आवेदन पर नवगछिया में केस दर्ज किया गया था। इस मामले में भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सह पूर्व उद्योग मंत्री शाहनवाज हुसैन के अलावा बिहपुर के विधायक ई शैलेंद्र सहित चार लोगों को आरोपित बनाया गया था। 14 साल पुराने इस मामले में भागलपुर कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए भाजपा नेता शाहनवाज हुसैन, विधायक ई शैलेंद्र सहित चारों आरोपियों को बरी कर दिया गया। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि साक्ष्यों के आधार पर इन्हें बरी किया गया है।
दरअसल नवगछिया के झंडापुर स्थित पेट्रोल पंप के समीप एनएच की जमीन पर मंटू कुमार मोदी की चाय दुकान थी, जहां 15 मार्च 2009 को भाजपा नेता शाहनवाज हुसैन और ई शैलेंद्र की तस्वीर लगी पोस्टर मिली थी। जिस पर तत्कालीन मजिस्ट्रेट ने संज्ञान लेते हुए आदर्श आचार संहिता उल्लंघन का केस दर्ज कराया था।
4. अतीक और अशरफ की हत्या की जांच की मांग वाली याचीका पर 24 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट करेगा सुनवाई
माफिया अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की प्रयागराज में हुए हत्या के मामले में दाखिल जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट 24 अप्रैल को सुनवाई करेगा। वकील विशाल तिवारी ने जनहित याचिका दाखिल कर पूर्व जज की निगरानी में अतीक और अशरफ की हत्या की जांच की मांग की है। इतना ही नही याचिका में उत्तर प्रदेश में 2017 के बाद हुए सभी 183 एनकाउंटरों की जांच की मांग की भी गई है।
वकील विशाल तिवारी ने अपनी याचीका में मांग की है कि अतीक और उसके भाई अशरफ की हत्या की जांच के लिए एक स्वतंत्र समिति का गठन किया जाए। याचिका में आरोप लगाया गया है कि पुलिस मुठभेड़ लोकतंत्र के लिए खतरा बनने के साथ ही कानून के राज के लिए भी खतरनाक हैं।
दरसअल अतीक अहमद की शनिवार को प्रयागराज में गोली मारकर हत्या कर दी गई थीं। याचिका में 2020 विकास दूबे मुठभेड़ मामले की सीबीआई से जांच की मांग की गई है। इससे पहले माफिया अतीक अहमद की सुरक्षा को लेकर सवाल खड़ा करती एक याचिका को सुनने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया था।
5.केंद्र ने हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति तरलोक चौहान की नियुक्ति की अधिसूचना जारी की
केंद्र सरकार ने मंगलवार हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान की नियुक्ति की अधिसूचना जारी कर दी है।
न्यायमूर्ति चौहान ने चंडीगढ़ में पंजाब विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री हासिल की और 1989 में हिमाचल प्रदेश बार काउंसिल के सदस्य बने। 2014 में, उन्हें हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के रूप में न्यायमूर्ति चौहान की नियुक्ति न्यायमूर्ति सबीना की सेवानिवृत्ति से पहले हुई है, जो वर्तमान में उच्च न्यायालय की कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश हैं। 7 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने हिमाचल प्रदेश के मुख्य न्यायाधीश के पद के लिए उनके नाम की सिफारिश की थी।
6. कर्नाटक में मुस्लिम आरक्षण खत्म करने पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई टली, 25 अप्रैल को होगी सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को कर्नाटक सरकार के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई टल गई है, जिसमें श्रेणी 2 बी के तहत मुसलमानों को प्रदान किए गए लगभग तीन दशक पुराने 4% ओबीसी आरक्षण को रद्द कर दिया गया था। जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच अगले मंगलवार को मामले की सुनवाई करेगा।
कर्नाटक सरकार ने 4% आरक्षण को समाप्त कर दिया और इसे वीरशैव-लिंगायतों और वोक्कालिगाओं के बीच समान रूप से 2% पर वितरित कर दिया। वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने वोक्कालिगा और लिंगायत समूहों की ओर से तर्क दिया कि मुद्दा केवल आरक्षण को रद्द करने का नहीं है बल्कि एक अलग समुदाय को आरक्षण आवंटित करने का भी है। उन्होंने दावा किया कि जीओ पर अंतरिम रोक लगाने से लिंगायतों और वोक्कालिगाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
पिछली सुनवाई में अदालत ने कहा था कि राज्य में मुस्लिम लंबे समय से इस आरक्षण का लाभ उठा रहे थे और कोटा खत्म करने का आदेश प्रथम दृष्टया गलत धारणाओं पर आधारित था। राज्य सरकार को फटकार लगाते हुए कोर्ट ने कहा था कि आपके फैसले की बुनियाद ‘त्रुटिपूर्ण और अस्थिर’ लगती है।
दरसअल बेल्लारी के रहने वाले एक मुस्लिम व्यक्ति के राज्य सरकार के मुस्लिम कोटा खत्म करने के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है।
7. दिल्ली दंगे 2020ः दिल्ली हाई कोर्ट के जज अनूप जयराम भंभानी ने मामले की सुनवाई से खुद को किया अलग
दिल्ली हाईकोर्ट के जज अनूप जयराम भंभानी ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों के आरोपी आसिफ इकबाल तन्हा की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया। यही नहीं उन्होंने यह भी कहा कि अदालत की कार्रवाई का न्याय प्रणाली की विश्वसनीयता पर कभी भी हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। यह याचिका 2020 में हुई सांप्रदायिक हिंसा के पीछे ‘बड़ी साजिश’ के लिए तन्हा के इकबालिया बयान के कथित लीक से संबंधित है।
मालूम हो कि पूर्व में न्यायमूर्ति भंभानी ने न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन (NBDA) के साथ ‘पहले के अपने जुड़ाव’ के कारण मामले में संगठन की हस्तक्षेप अर्जी की सुनवाई पर आपत्ति प्रकट की थी। उनका कहना था कि अदालत के विचार को व्यवस्था की विश्वसनीयता को बनाए रखने के पक्ष में खड़ा होना चाहिए। यह ‘तथ्य में निष्पक्षता’ से प्राप्त होता है।
न्यायाधीश भंभानी ने कहा कि न्याय प्रणाली की समग्र विश्वसनीयता के व्यापक हित को देखते हुए उन्होंने मामले से अलग होने का फैसला किया है। इसके साथ ही उन्होंने मुख्य न्यायाधीश के आदेशों के तहत याचिका को 19 अप्रैल को एक अन्य बेंच के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने का निर्देश जारी किया। उन्होंने कहा कि वह मामले के गुण-दोष पर कोई राय व्यक्त नहीं कर रहे हैं।
गौरतलब है कि तन्हा ने निचली अदालत द्वारा संज्ञान लिए जाने से पहले अपने कथित इकबालिया बयान को 2020 में कुछ मीडिया संस्थानों द्वारा प्रसारित करने के खिलाफ हाईकोर्ट का रुख किया है। तन्हा ने इस मामले में NBDA के हस्तक्षेप पर इस आधार पर आपत्ति जताई है कि जब शिकायत की गई थी, कथित इकबालिया बयान के प्रसारण के मुद्दे में ‘रुचि नहीं’ रखने वाली एसोसिएशन ने हस्तक्षेप अर्जी दायर की ताकि न्यायाधीश के मामले से अलग होने की घटना सच हो। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि एसोसिएशन की हस्तक्षेप अर्जी के मसले पर फैसला लेते वक्त भी निष्पक्षता के सिद्धांत का पालन करना चाहिए।
8.पंजाब महिला आयोग की अध्यक्ष पद की नियुक्ति पर हाईकोर्ट ने अगले आदेश तक लगाई रोक, नोटिस जारी
पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने पंजाब महिला आयोग अध्यक्ष पद पर अगले आदेश तक नियुक्ति पर रोक लगाते हुए पंजाब सरकार व अन्य प्रतिवादियों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि पंजाब सरकार यदि नियुक्ति की प्रक्रिया जारी रखना चाहती है तो रख सकती है लेकिन नियुक्ति कोर्ट के आदेश के बिना नहीं होगी।
मनीषा गुलाटी ने पंजाब राज्य महिला आयोग की चेयरपर्सन के पद से हटाने के पंजाब सरकार के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट में मामला आने के बाद पंजाब सरकार ने गुलाटी को हटाने का आदेश वापस लिया था। बाद में पंजाब सरकार ने गुलाटी के सेवा विस्तार को रद्द करने की अधिसूचना जारी कर दी। इसके खिलाफ गुलाटी ने दोबारा याचिका दायर कर इसे रद्द करने का आग्रह किया था। याचिका में कहा गया कि सरकार बिना कोई कारण उनका सेवा विस्तार रद्द नहीं कर सकती।
कैप्टन अमरिंदर सिंह की अगुवाई वाली पूर्व कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में मार्च 2018 में मनीषा गुलाटी को चेयरपर्सन नियुक्त किया गया था। वर्ष 2020 में उनके कार्यकाल में तीन साल बढ़ा दिए गए थे। 20 फरवरी 2022 को वह भाजपा में शामिल हो गई थीं और अपने पद पर बनी हुई थीं। मनीषा गुलाटी ने कहा था कि जिस अथॉरिटी और एक्ट के तहत उन्हें नियुक्ति दी गई है, उसी के तहत उन्हें एक्सटेंशन भी दी जा सकती है। हाईकोर्ट की एकल बेंच ने उनकी याचिका को खारिज करते हुए पंजाब सरकार के आदेश पर मुहर लगा दी थी। अब सिंगल बेंच के आदेश को चुनौती देते हुए मनीषा गुलाटी ने खंडपीठ में अपील दाखिल की है।
गुलाटी की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने पंजाब सरकार को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है। साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया कि सरकार चाहे तो इस पद पर नियुक्ति प्रक्रिया को जारी रख सकती है लेकिन नियुक्ति हाईकोर्ट के आदेश के बिना नहीं होगी।
9. रिश्वत के आरोपी आईआरएस अधिकारी की जमानत सुप्रीम कोर्ट ने की खारिज, कहा- भ्रष्टाचार समाज के लिए नासूर
सुप्रीम कोर्ट ने भ्रष्टाचार के एक मामले में भारतीय राजस्व सेवा (Indian Revenue Service- IRS) के एक अधिकारी को हाईकोर्ट से दी गई अग्रिम जमानत को खारिज करते हुए कहा कि भ्रष्टाचार समाज के लिए एक गंभीर खतरा है और इससे सख्ती से निपटना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भ्रष्टाचार न केवल सरकारी खजाने को भारी नुकसान पहुंचाता है, बल्कि सुशासन को भी प्रभावित करता है।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेके माहेश्वरी की पीठ ने IRS अधिकारी संतोष करनानी को हाईकोर्ट से मिली अग्रिम जमानत केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) की याचिका पर रद्द कर दी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘कथित अपराध की प्रकृति और गंभीरता को गुजरात हाईकोर्ट को ध्यान में रखा जाना चाहिए था। भ्रष्टाचार हमारे समाज के लिए एक गंभीर खतरा है और इससे सख्ती से निपटना चाहिए। यह न केवल सरकारी खजाने को भारी नुकसान पहुंचाता है, बल्कि सुशासन को भी प्रभावित करता है।’ सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आम आदमी सामाजिक कल्याण योजनाओं के लाभ से वंचित हैं और करप्शन से सबसे ज्यादा प्रभावित है। अदालत ने कहा कि ‘यह ठीक ही कहा गया है कि भ्रष्टाचार एक ऐसा पेड़ है, जिसकी शाखाएं हर जगह फैल जाती हैं। इसलिए और अधिक सतर्क रहने की जरूरत है।
सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि उसने गिरफ्तारी से पहले जमानत देने से इनकार करने या मंजूरी देने के सीमित उद्देश्य के लिए आरोपों की मेरिट पर केवल प्रथम दृष्टया राय प्रकट की है। गौरतलब है कि राज्य के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो, अहमदाबाद ने 4 अक्टूबर, 2022 को एक शिकायत पर प्राथमिकी (FIR) दर्ज की थी। FIR पर कार्रवाई करते हुए स्थानीय पुलिस ने उसी दिन जाल बिछाया था और 30 लाख रुपये की रिश्वत बरामद की थी। बाद में मामले की जांच CBI को सौंप दी गई।
10.बीबीसी की डॉक्यूमेंटरी विवाद में फंसे रिसर्च स्कॉलर लोकेश चुघ की याचिका पर हाईकोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट से मांगा जवाब
दिल्ली उच्च न्यायालय ने रिसर्च स्कॉलर और नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (NSUI) के सचिव लोकेश चुघ की याचिका पर मंगलवार को दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू तीन कार्य दिवसों के भीतर अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। चुघ को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी पर प्रतिबंधित बीबीसी डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग में कथित रूप से शामिल होने के लिए 1 साल के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया था।
दिल्ली हाईकोर्ट के जज न्यायमूर्ति पुरुषेंद्र कुमार कौरव ने आदेश दिया, “श्री रूपल जवाबी हलफनामा दायर करना चाहते हैं, इसे दाखिल करने के लिए कल से 3 कार्य दिवस का समय दिया जाता है। याचिकाकर्ता के वकील यदि कोई हो तो अपना जवाब दाखिल कर सकते हैं। इसलिए अब इस मामले को 24 अप्रैल के लिए सूचीबद्ध किया जाता है।
सुनवाई के दौरान, विवादित आदेश के अवलोकन पर, एकल-न्यायाधीश की पीठ ने मौखिक रूप से टिप्पणी की, “समिति द्वारा अनुशासनात्मक जांच के बाद, यह दिल्ली विश्वविद्यालय का कर्तव्य था कि वह निष्कर्षों का फिर से अध्ययन करे,वही आदेश में परिलक्षित नहीं होता है”।
न्यायाधीश ने कहा, “आक्षेपित आदेश विश्वविद्यालय द्वारा सोच समझ कर लिया गया फैसला नहीं दिखता।” एकल न्यायाधीश की पीठ ने 13 अप्रैल को दिल्ली विश्वविद्यालय को नोटिस जारी कर याचिका पर जवाब मांगा था।
चुघ ने अधिवक्ता नमन जोशी के माध्यम से याचिका दायर करते हुए कहा कि 27 जनवरी को दिल्ली विश्वविद्यालय के कला संकाय (मुख्य परिसर) में कुछ छात्रों द्वारा विरोध प्रदर्शन किया गया था।
याचिका में कहा गया है कि चुग पीएचडी हैं। मानव विज्ञान विभाग, विज्ञान संकाय, दिल्ली विश्वविद्यालय के शोधार्थी भी हैं। यह भी कहा गया कि प्रासंगिक समय पर, चुघ विरोध स्थल पर मौजूद नहीं थे और न ही उन्होंने किसी भी तरह से स्क्रीनिंग में भाग लिया।
चुघ ने अपनी दलील में कहा कि वह उस समय एक लाइव साक्षात्कार दे रहे थे जब वृत्तचित्र की स्क्रीनिंग की जा रही थी और उसके बाद, पुलिस ने कुछ छात्रों को वृत्तचित्र की स्क्रीनिंग के लिए हिरासत में लिया और उन पर क्षेत्र में शांति भंग करने का आरोप लगाया। याचिका में कहा गया है, “विशेष रूप से, याचिकाकर्ता (चुग) को न तो हिरासत में लिया गया और न ही पुलिस द्वारा किसी भी प्रकार की उकसाने या हिंसा या शांति भंग करने का आरोप लगाया गया।”
याचिका में कहा गया है कि चुग को बहुत धक्का लगा और निराशा हुई, उन्हें 16 फरवरी को प्रॉक्टर द्वारा कारण बताओ नोटिस जारी किया गया था, जिसमें उन्हें तीन दिनों के भीतर स्क्रीनिंग और उसके बाद के विरोध में उनकी कथित संलिप्तता के बारे में जवाब देने के लिए कहा गया था। उन्होंने 20 फरवरी को अपना जवाब दाखिल किया।
इसके अलावा, दलील में कहा गया है कि चुग डीयू के एक ईमानदार और मेधावी छात्र हैं, और उनका एक अनुकरणीय अकादमिक रिकॉर्ड है। इसलिए विवादित ज्ञापन याचिकाकर्ता से विभिन्न शैक्षणिक और व्यावसायिक अवसरों को खो जाने की संभावना है। “निश्चित रूप से, बीबीसी डॉक्यूमेंट्री की कथित स्क्रीनिंग याचिकाकर्ता को अकादमिक उत्कृष्टता के अवसर से वंचित करने का एक कारण नहीं हो सकती है।”
याचिका में चुघ के अनुकरणीय अकादमिक रिकॉर्ड को देखते हुए 10 मार्च के ज्ञापन को रद्द करने, 16 फरवरी के कारण बताओ नोटिस को रद्द करने और अनुशासनात्मक कार्यवाही में की गई टिप्पणियों को हटाने की प्रार्थना की गई थी।
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