आज समाज डिजिटल ,दिल्ली:
1. पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने सरकार के आदेश को पलटा, ड्राईवर को राहत
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि सड़क दुर्घटनाओं के मामले में यह मानना उचित नहीं होगा कि ड्राइवर नैतिक अधमता से जुड़े अपराध का दोषी है। ड्राइवर से दुर्घटनावश एक व्यक्ति की मौत हो गई थी।
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट न्यायमूर्ति अनिल क्षेत्रपाल की पीठ राज्य परिवहन पंजाब के निदेशक द्वारा पारित आदेशों को रद्द करने की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसे परिवहन विभाग के सचिव ने बरकरार रखा।
इस मामले में, याचिकाकर्ता ने 23.06.1997 को पंजाब रोडवेज में ड्राइवर के रूप में ज्वाइन किया और 30.05.2008 को एक दुर्घटना हुई।
धारा 279, 337, 338, 304-ए और 427 आईपीसी के तहत दर्ज प्राथमिकी में दोषी ठहराए जाने के कारण याचिकाकर्ता की सेवाएं समाप्त कर दी गई हैं। उन्हें आईपीसी की धारा 304-ए के तहत दोषी ठहराया गया और 5000 रुपये के जुर्माने के साथ 2 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई। अपील में विचारण न्यायालय के निर्णय की पुष्टि की गई।
पीठ के समक्ष विचार के लिए मुद्दा था कि सचिव, परिवहन विभाग द्वारा पारित आदेश में हस्तक्षेप की आवश्यकता है या नहीं?
पीठ ने ऋषि देव बनाम हरियाणा राज्य और अन्य के मामले का उल्लेख किया, जहां यह कहा गया है कि “एक बस का चालक जिसे अदालत द्वारा तेज और लापरवाही से चलाने का दोषी ठहराया गया है, वह बहाली का हकदार नहीं है।”
हाईकोर्ट ने कहा कि सड़क दुर्घटनाएं अक्सर निर्णय की त्रुटि या यांत्रिक विफलताओं का परिणाम होती हैं। वे दूसरे वाहन की गलती के कारण भी हो सकते हैं। ऐसे मामलों में, यह मानना न्यायोचित या तर्कसंगत नहीं होगा कि चालक मनमर्जी के अभाव में नैतिक अधमता से जुड़े अपराध का दोषी है, हालांकि, साथ ही, अदालत को इस तथ्य को ध्यान में रखना आवश्यक है कि चालक, यदि सेवा में बहाल किया जाता है, तो वह फिर से भारीवाहन चलाएगा जो सार्वजनिक सुरक्षा को खतरे में डाल सकता है।
पीठ ने आगे जरनैल सिंह बनाम पंजाब राज्य और अन्य के मामले का उल्लेख किया जहां यह माना गया है कि ऐसे मामलों में, बर्खास्तगी के आदेश को संशोधित करने और सेवा से अनिवार्य-समय से पहले सेवानिवृत्ति के आदेश में पुनः परीक्षण-पेंशनरी लाभों की पात्रता के साथ परिवर्तित करने की आवश्यकता है। ।
उपरोक्त के मद्देनजर, हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता की सेवा से बर्खास्तगी के आदेश को संशोधित किया और सेवा से अनिवार्य/पूर्व-परिपक्व सेवानिवृत्ति के आदेश में इसके रूपांतरण का आदेश दिया।
2. ज्ञानवापी मामला: सुप्रीम कोर्ट का निर्देश, वजू को लेकर मस्जिद कमिटी और प्रशासन मंगलवार को बैठक कर आपसी सहमति से हल निकाले।
वाराणसी ज्ञानवापी मस्जिद क्षेत्र में ‘वजू’ (हाथ-पैर धोना) करने के लेकर सुप्रीम कोर्ट ने वाराणसी के जिला अधिकारियों से रमजान के दौरान ज्ञानवापी मस्जिद क्षेत्र में वजू की वैकल्पिक व्यवस्था के लिए मंगलवार को एक बैठक बुलाने के लिए कहा है।
सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच के समक्ष इंतजामिया कमेटी की ओर से वरिष्ठ वकील हुजैफा अहमदी ने वजू के लिए वैकल्पिक स्थान की मांग की।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मस्जिद कमेटी और अथॉरिटी इस संबंध में आपस में बैठकर बात कर सकते हैं वही यूपी सरकार की ओर से एसजी तुषार मेहता ने कहा हम आपस में बात करके हल निकाल सकते हैं। जिसपर अदालत ने कहा कि वो मंगलवार को आपस में बैठक कर हल निकाले।
दरसअल सुप्रीम कोर्ट से मस्जिद कमिटी ने उत्तर प्रदेश के वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद में सील एरिया को रमजान के चलते खोलने की मांग की है। मस्जिद कमिटी ने अपनी अर्जी में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने पिछले आदेश में नमाजियों के वुजू के लिए पर्याप्त व्यवस्था के लिए कहा था।
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल नवंबर में उस क्षेत्र की सुरक्षा अगले आदेश तक बढ़ा दी थी, जहां हिंदू पक्ष ने कहा था कि वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद में वुजू वाली जगह एक ‘शिवलिंग’ पाया गया है। कोर्ट ने पूरे वजू इलाके को सील करने का आदेश भी दिया था।
3. ज्ञानवापी-मां श्रृंगार गौरी मामला: वाराणसी जिला जज का आदेश, सभी सातों मामले की सुनवाई एक साथ होगी
वाराणसी के जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश ने सोमवार को अपने आदेश में कहा कि ज्ञानवापी-मां श्रृंगार गौरी से जुड़े सभी सात मामलों की सुनवाई अब एक साथ होगी। मां श्रृंगार गौरी मामले की चार याचिकाकर्ताओं लक्ष्मी देवी, सीता साहू, मंजू व्यास और रेखा पाठक की ओर से कोर्ट में अर्जी दी गई थी और कहा गया था कि किरन सिंह विसेन व अन्य की ओर से ज्ञानवापी-मां श्रृंगार गौरी के संबंध में दाखिल मुकदमों को जिला जज की कोर्ट में स्थानांतरित कर एक साथ सुना जाए।
इस अर्जियों पर सभी पक्षों की दलील सुनने के बाद आदेश के लिए तिथि तय कर दी गई थी। लक्ष्मी देवी, सीता साहू, मंजू व्यास और रेखा पाठक के अधिवक्ता सुभाष नंदन चतुर्वेदी, सुधीर त्रिपाठी ने लीगली स्पीकिंग को बताया कि उन्होंने मामलों की सुनवाई एक साथ किए जाने के पक्ष में अपनी बात अदालत में रखी थी। उन्होंने बताया कि ज्ञानवापी के सभी मामले एक जैसे हैं। इनकी अलग-अलग सुनवाई नहीं होनी चाहिए।
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