आज समाज डिजिटल ,दिल्ली:
1.भीमा कोरेगांव हिंसा: गौतम नवलखा की जमानत अर्जी खारिज
मुंबई की एक विशेष एनआईए अदालत ने भीमा कोरेगांव के आरोपी गौतम नवलखा की जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि वो प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के सदस्य था। विशेष राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के न्यायाधीश राजेश कटारिया ने कहा कि यह मानने के लिए उचित आधार थे कि नवलखा के खिलाफ आरोप प्रथम दृष्टया सही है। अदालत ने कहा कि “पूरक चार्जशीट और अभियोजन पक्ष द्वारा दिए गए दस्तावेजों से प्रथम दृष्टया पता चलता है कि नवलखा प्रतिबंधित संगठन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का सक्रिय सदस्य है और वह उक्त संगठन के उद्देश्य को आगे बढ़ाने में गतिविधियों को अंजाम देता है। नवलखा के घर की तलाशी के दौरान इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से विभिन्न दस्तावेज जब्त किए गए हैं। चार्जशीट के साथ पेश किए गए दस्तावेज अपराध में उसकी सक्रिय संलिप्तता और साजिश में भागीदारी को दर्शाते हैं, यह भी दर्शाता है कि उसने अन्य आरोपियों के साथ हथियार चलाने का प्रशिक्षण भी लिया था।’
सत्र अदालत ने चार्जशीट पर भी विचार किया, जिसमें नवलखा और कश्मीरी अलगाववादी सैयद गुलाम नबी फई के साथ-साथ पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) जनरल के बीच संबंध का खुलासा हुआ। नवलखा की ज़मानत अर्ज़ी को ख़ारिज करते हुए, अदालत ने टिप्पणी की करते हुए कहा “सामग्रियों की समग्रता को ध्यान में रखते हुए, नवलखा की भूमिका को मामले में सह-अभियुक्तों की भूमिका से अलग नहीं किया जा सकता है और यह मानने के लिए उचित आधार हैं कि नवलखा के खिलाफ आरोप प्रथम दृष्टया सत्य हैं।” अगस्त 2018 में, मानवाधिकार कार्यकर्ता और पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (पीयूडीआर) के पूर्व सचिव नवलखा को गिरफ्तार किया गया था। 10 नवंबर, 2022 को शीर्ष अदालत ने एक महीने के लिए हाउस अरेस्ट पर लौटने के उनके अनुरोध को मंजूर कर लिया। 13 दिसंबर को इसे बढ़ा दिया गया था।
वह वर्तमान में नवी मुंबई के ठाणे जिले में रह रहा हैं। 5 सितंबर, 2022 को विशेष एनआईए अदालत द्वारा उनकी जमानत अर्जी खारिज किए जाने के बाद नवलखा ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि जमानत अर्जी पर विशेष अदालत के समक्ष नई सुनवाई की आवश्यकता है और मामले को वापस भेज दिया था।
2. बॉम्बे हाईकोर्ट क्रिकेटर पृथ्वी शॉ और पुलिस को जारी किया नोटिस
बॉम्बे हाईकोर्ट ने भारतीय क्रिकेटर पृथ्वी शॉ और शहर की पुलिस को नोटिस जारी किया, जिसमें सोशल मीडिया इनफ्लूएंसर सपना गिल द्वारा दायर याचिका पर उनकी प्रतिक्रिया मांगी गई। इसमें उनके खिलाफ कथित रूप से हमला करने और पैसे मांगने के लिए दर्ज की गई एफआईआर रद्द करने की मांग की गई थी।
यह FIR इस साल फरवरी में दर्ज की गई थी जब मुंबई के एक होटल के बाहर सपना गिल और उनके दोस्तों का शॉ व उनके दोस्तों के साथ सेल्फी लेने पर विवाद हो गया था। सपना गिल ने बाद में 23 साल के बल्लेबाज के खिलाफ जवाबी शिकायत दर्ज कराई थी।
जस्टिस एसबी शुक्रे और एमएम साठे की डिविजन बेंच ने गुरुवार को पुलिस और शॉ को उनके खिलाफ FIR रद्द करने की गिल की याचिका पर नोटिस जारी किया और मामले की सुनवाई जून के लिए स्थगित कर दी। गिल के वकील अली काशिफ खान ने बेंच से कहा कि पुलिस ने मुंबई के क्रिकेटर से हाथ मिलाया और सपना गिल के खिलाफ फर्जी मामला दर्ज किया।
अली काशिफ खान ने पुलिस को अंधेरी में होटल के अंदर से सीसीटीवी फुटेज हासिल करने और सुरक्षित रखने के लिए पुलिस को निर्देश देने की मांग की, ताकि यह दिखाया जा सके कि हाथापाई से पहले वास्तव में क्या हुआ था। गिल ने याचिका में पुलिस को निर्देश देने की भी मांग की कि मामले में उनके खिलाफ आरोपपत्र दाखिल नहीं किया जाए।
दरअसल, पृथ्वी शॉ अपने दोस्तों के साथ एक होटल में डिनर करने गए थे। तब सपना गिल और उनके दोस्तों ने क्रिकेटर के साथ सेल्फी लेने की मांग की थी। पृथ्वी शॉ ने पहली बार में सेल्फी के लिए हां कर दी थी। इसके बाद उनके दोस्तों ने मैनेजर से बात करके प्राइवेसी बरकरार रखने का आग्रह किया। इस बीच सपना और उसके दोस्त दोबारा क्रिकेटर से सेल्फी लेने की मांग करने लगे।
दूसरी बार में पृथ्वी शॉ ने सेल्फी लेने से इंकार कर दिया। तब सपना के दोस्तों ने पृथ्वी शॉ के कार की दोस्त का पीछा किया और उसमें तोड़फोड़ की। रिपोर्ट्स में कहा गया कि पृथ्वी शॉ और उनके दोस्तों को ब्लैकमेल करके पैसे मांगने की धमकी भी दी गई। कुछ वीडियोज सामने आए, जिसमें आपस में मारपीट के दृश्य भी देखने को मिले।
3. SCBA के कार्यक्रम में बोले CJI DY चंद्रचूड़, सुप्रीम कोर्ट किसी जागीर नहीं, कोई पद बेवजह रिक्त नहीं रहेगा
सुप्रीम कोर्ट किसी की जागीर नहीं है और न ही सुप्रीम कोर्ट में कोई गार्ड बाबू ही रहेगा। सुप्रीम कोर्ट में कोई भी पद बेवजह रिक्त नहीं रहेगा। सुप्रीम कोर्ट में जैसे ही वेकेंसी होती है वैसे ही जजों की नियुक्ति करवाई जाएगी। एससीबीए के एक कार्यक्रम में यह जानकारी सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने दी। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति उनका मिशन है।
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि जब हाईकोर्ट के जज के तौर पर पहली बार शपथ ली थी तो उनके चीफ जस्टिस ने उन को गार्ड बाबू बताया था। तब के चीफ जस्टिस मूलरूप से पटना हाईकोर्ट से थे।
चंद्रचूड़ ने तफसील से बताया कि दरअसल जब वो पहली बार जज बने तो बॉम्बे हाईकोर्ट में उस वक्त 42 जज थे। उनका नंबर आखिरी था। चंद्रचूड़ ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में सबसे आखिर में नियुक्त होने वाले जज को गार्ड बाबू कहा जाता है। सीजेआई ने मजाकिया लहजे में कहा कि हमारे पास सुप्रीम कोर्ट में फिलहाल सात गार्ड बाबू हैं, लेकिन वो उनको इस कैटेगरी में ज्यादा दिनों तक नहीं रहने देंगे। उनका कहना था कि कॉलेजियम के जरिये सुप्रीम कोर्ट में रिक्त हर पद को भरा जाएगा। नए जज आ जाएंगे तो फिर ये सात जस्टिस गार्ड बाबू की श्रेणी से निकल जाएंगे।
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि वो सुनिश्चित करने जा रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट अपनी पूरी क्षमता से काम करे। यानि जजों का कोई भी पद बेवजह खाली न रहने पाए। अक्सर सुप्रीम कोर्ट में जजों की पूरी नियुक्तियां नहीं हो पाती। लेकिन अब ऐसा नहीं होने दिया जाएगा। उनका कहना था कि सुप्रीम कोर्ट में जजों के खाली पदों को भरना उनके लिए एक मिशन की तरह से है। वो इसमें कोई समझौता नहीं करने जा रहे हैं।
सीजेआई चंद्रचूड़ ने ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में अभी तक सारी चीजें चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के इर्द गिर्द घूमती रही हैं। लेकिन उनका मानना है कि ऐसा नहीं होना चाहिए। उनका कहना था कि चीफ जस्टिस अपने साथी जजों का एक बेहतरीन दोस्त होता है। उन्होंने एक लैटिन शब्द का इस्तेमाल कर बताया कि चीफ जस्टिस सभी जजों में सबसे पहला होता है। उनका कहना था कि इस प्रथा का अंत होना चाहिए। उन्हें ये पता है कि कैसे उनके साथी आधी रात के दौरान अपना तेल फूंककर सुनिश्चित करते हैं कि स्पेशल लीव पटीशन खारिज न करके सही तरीके से निपटा दी जाए।
सीजेआई चंद्रचूड़ का कहना था कि वो एक चीज को लंबे अरसे से महसूस कर रहे हैं कि जब जज किसी हाईकोर्ट में होते हैं तो उनके सामने तमाम तरह की चीजें पेश आती हैं। वो इसके आधार पर अनुभवी होते जाते हैं। उनके पास एक बेहतरीन अनुभव होता हैं वहां का। लेकिन जब वो सुप्रीम कोर्ट में आते हैं तो केवल अपने काम से बंधकर रह जाते हैं। जो कुछ उन्होंने हाईकोर्ट से सीखा होता है उसका इस्तेमाल वो यहां पर नहीं करते। ऐसा नहीं होना चाहिए। CJI का कहना था कि सुप्रीम कोर्ट चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की कोई निजी जागीर नहीं है। जजों को ये बात अपने जहन में रखनी चाहिए।
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