Legally News:बिहार जातीय गणना का मामला पहुँचा सुप्रीम कोर्ट, बिहार सरकार ने दाखिल की याचीका, हाई कोर्ट ने अंतरिम रोक लगाने के फैसले को दी चुनोती

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आशीष सिन्हा
आशीष सिन्हा

Aaj Samaj, (आज समाज),Legally News,नई दिल्ली :

9.अगर मामला व्याभिचार का है तो पति के निजता के अधिकार से बड़ा है सबूत तलब कराने का पत्नी का अधिकार*

दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक फैसले ने कहा है कि अगर पत्नी, पति के व्याभिचार के कारण तलाक ले रही है तो पत्नी उस स्थान के सीसीटीवी फुटेज को साक्ष्य के तौर पर तलब करने की याचना कर सकती है। ऐसे सुबूतों को मंगाना पत्नि का हक है। अदालत ने कहा कि इसमें पति के निजता के ऊपर पत्नी के अधिकार हैं।

इस मामले में पति ने अपने कथित व्यभिचार के संबंध में पारिवारिक अदालत द्वारा पारित दो आदेशों को चुनौती दी थी। पत्नी ने व्यभिचार और क्रूरता के आधार पर तलाक के लिए एक होटल में अपने पति की मौजूदगी के सबूत का हवाला देते हुए तलाक के लिए अर्जी दी थी, जहां वह कथित रूप से व्यभिचार में लिप्त था। फैमिली कोर्ट ने होटल से सीसीटीवी फुटेज के संरक्षण और होटल के कमरे के रिकॉर्ड को तलब करने के लिए उसके आवेदन को स्वीकार कर लिया था।

इन आदेशों को चुनौती देने के लिए पति ने हाईकोर्ट का रुख किया। उनके वकील ने व्यभिचार और क्रूरता के आरोपों के खिलाफ तर्क दिया, यह दावा करते हुए कि उनका मुवक्किल केवल एक दोस्त से मिलने आया था जो अपनी बेटी के साथ होटल में रह रहा था। इसके अलावा, उन्होंने विरोध किया किपत्नी द्वारा मांगी गई निजी जानकारी का प्रकटीकरण उनके निजता के अधिकार और इसमें शामिल अन्य व्यक्तियों का उल्लंघन करेगा।

हालांकि, अदालत ने कहा कि कानूनी रूप से विवाहित पति से संबंधित रिकॉर्ड के लिए एक पत्नी की याचिका, जिस पर वह व्यभिचार में लिप्त होने का आरोप लगा रही थी, को एक जीवित वैवाहिक संबंध में पति के निजता के अधिकार पर प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

अदालत ने यह भी कहा कि दूसरी महिला, जिसके साथ पति कथित रूप से व्यभिचार में रह रहा था, और उसके नाबालिग बच्चे के निजता के अधिकार के उल्लंघन का कोई सवाल ही नहीं था, क्योंकि पारिवारिक अदालत ने केवल पति से संबंधित रिकॉर्ड मांगे थे।

न्यायमूर्ति पल्ली ने माना है कि पारिवारिक न्यायालय के समक्ष साक्ष्य मांगने के पत्नी के अधिकार को पति के निजता के अधिकार पर वरीयता दी जानी चाहिए। अदालत ने पाया कि पत्नी केवल अपने कानूनी रूप से विवाहित पति के बारे में जानकारी मांग रही थी, जिस पर उसने एक होटल के कमरे में दूसरी महिला के साथ व्यभिचार का आरोप लगाया था।

अदालत ने स्वीकार किया कि एक पति के पास निजता का अधिकार हो सकता है, पत्नी की उचित आशंका है कि उसका पति व्यभिचार में लिप्त था, अदालत को कदम उठाने की आवश्यकता थी।

अदालत ने कहा कि निजता पूर्ण अधिकार नहीं है और इसे पति और पत्नी के परस्पर विरोधी अधिकारों के बीच संतुलन बनाना चाहिए। इस मामले में, चूंकि पत्नी की प्रार्थना हिंदू विवाह अधिनियम और पारिवारिक न्यायालय अधिनियम के तहत दिए गए विशिष्ट अधिकारों पर आधारित थी, इसलिए अदालत ने विवादित आदेशों में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं पाया और कहा कि पत्नी का अधिकार प्रबल होना चाहिए।

10.बिहार जातीय गणना का मामला पहुँचा सुप्रीम कोर्ट, बिहार सरकार ने दाखिल की याचीका, हाई कोर्ट ने अंतरिम रोक लगाने के फैसले को दी चुनोती

बिहार जातीय गणना का मामला एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट पहुँच गया है। बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचीका दाखिल कर पटना हाई कोर्ट के अंतरिम आदेश को चुनोती दी है। पटना हाई कोर्ट ने जाति आधारित गणना पर अंतरिम रोक लगा दी थी।

दरअसल 4 मई को बिहार सरकार पटना हाई कोर्ट से बड़ा झटका लगा था। पटना हाई कोर्ट ने जाति आधारित गणना पर रोक लगा दी थी।जातीय गणना के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पटना हाईकोर्ट ने अंतरिम आदेश दिया था। पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस मधुरेश प्रसाद की पीठ ने इस मामले पर बहस पूरी होने के बाद गुरुवार को फैसला सुनाया था।

दरसअल पटना हाईकोर्ट में जातीय गणना के खिलाफ दायर याचिकाओं पर बहस के दौरान नीतीश सरकार ने कहा कि राज्य सरकार को गणना कराने का अधिकार है। यह जनगणना नहीं है। इसमें आर्थिक रूप से पिछड़े समेत अन्य लोगों की गणना करनी है। उन्होंने कहा कि जाति आधारित गणना में लोगों से 17 प्रश्न पूछे जा रहे हैं। इनसे किसी की भी गोपनीयता भंग नहीं हो रही है।

वही याचिकाकर्ताओं ने अदालत में दलील देते हुए कहा कि नीतीश सरकार ने इस बात का कहीं भी जिक्र नहीं किया कि जातीय गणना क्यों कराई जा रही है। इतना ही नही इसके लिए आपातकालीन फंड से 500 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं, जबकि इससे पैसा निकालने के लिए कानूनी प्रक्रिया का पालन करना अनिवार्य होता है।

11.रिटायर्ड कर्मचारी की विधवा को पेंशन देने में सरकार ने लगा दिए 12 साल, कोर्ट ने सरकार पर लगा दी कॉस्ट, 6% ब्याज के साथ पेंशन भी देनी होगी*

पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने  कहा है कि रिटायर्ड लोगों की पेंशन और पेंशन लाभ राज्य की अनुकंपा या ईनाम बल्कि यह अनुच्छेद 300-ए के तहत उनका संवैधानिक अधिकार है। पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने हाल ही में पेंशन जारी करने में देरी के लिए दो अलग-अलग मामलों में पंजाब सरकार पर 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है।
उच्च न्यायालय के संज्ञान में आया किृ एक मामले में विधवा 12 साल से अपनी पेंशन का इंतजार कर रही थी और दूसरे मामले में आर्ट शिक्षक की पेंशन जारी करने में 4 साल की देरी हुई थी।

न्यायमूर्ति जसगुरप्रीत सिंह पुरी ने कहा कि भारत एक “कल्याणकारी राज्य” है और राज्य और इसकी संस्थाओं को कानून के अनुसार पेंशन और पेंशन लाभ प्रदान करने के लिए “उचित” और “प्रभावी” कदम उठाने चाहिए।

पहले मामले में, याचिकाकर्ता सुरजीत कौर, एक विधवा, ने याचिका दायर की थी जिसमें कहा गया था कि उसके पति, सिंचाई विभाग, बीबीएमबी, सुंदरनगर में कार्यरत थे, उनका निधन 2011 में हो गया था। पति की मृत्यु के बाद, विधवा को उसके लाभ से वंचित कर दिया गया था। जिसकी वो हकदार थी। मगर विभाग की और से नो ड्यूज सर्टिफिकेट रोके जाने के कारण उसे  पेंशन के लिए 12 साल तक इंतजार करना पड़ा।

अदालत ने कहा, “बीबीएमबी की याचिकाकर्ता के बेबाकी प्रमाणपत्र को लंबे समय तक रोके रखने की कार्रवाई पूरी तरह से मनमाना और अवैध और कानून के किसी भी अधिकार के बिना थी।”

बीबीएमबी अधिकारियों ने याचिकाकर्ता के पति को आवंटित घर को तुरंत खाली न करने पर लगभग 3 लाख का जुर्माना भी लगाया था। अदालत ने बीबीएमबी द्वारा जुर्माना लगाने की कार्रवाई को “उचित नहीं” बताया। अदालत ने कहा सरकार उसे जुर्माने की वो राशि भी ब्याज सहित वापस करे जो उससे अनुचित रूप से वसूली गई है।
एक अन्य मामले में, याचिकाकर्ता परमजीत कौर 2019 में एक शिल्प शिक्षक के रूप में सेवानिवृत्त हुईं। यह आरोप लगाया गया था कि बिना किसी औचित्य के पेंशन और ग्रेच्युटी का भुगतान नहीं किया गया था।

अदालत ने कार्रवाई को “पूरी तरह से कानून के विपरीत” घोषित किया। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता की ओर से किसी भी धोखाधड़ी या गलत बयानी का कोई आरोप नहीं है और बल्कि राज्य ने खुद याचिकाकर्ता को ग्रेड पे दिया है।

“अन्यथा भी, चूंकि याचिकाकर्ता श्रेणी- III में आता है और पहले ही सेवानिवृत्त हो चुका है, इसलिए याचिकाकर्ता से ऐसी कोई वसूली नहीं की जा सकती है,” यह जोड़ा।

अदालत ने यह भी कहा कि यह अपने पेंशनरों के प्रति राज्य की ओर से “मनमानी का उत्कृष्ट मामला” है।

“चौंकाने वाली बात” याचिकाकर्ता, जो एक महिला है, चार साल पहले सेवानिवृत्त हो गई थी और उसे “बिना किसी कारण के” पेंशन और ग्रेच्युटी का भुगतान नहीं किया गया था।

दोनों मामलों में अदालत ने यह भी देखा कि, “पेंशन और पेंशन संबंधी लाभ राज्य का इनाम नहीं है बल्कि यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 300-ए के तहत एक संवैधानिक अधिकार है।”

दोनों मामलों में उपरोक्त टिप्पणियों के आलोक में, अदालत ने 6% साधारण ब्याज के साथ पेंशन राशि का भुगतान करने का आदेश दिया। अदालत ने कहा कि अनुपालन करने में विफल होने की स्थिति में, राज्य पर अतिरिक्त 9% ब्याज लगाया जाएगा।

मामलों का निपटान करते हुए और 1 लाख रुपये की लागत लगाते हुए, अदालत ने राज्य को “संबंधित अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करने और कानून के अनुसार सख्ती से और आवश्यक प्रक्रिया का पालन करके उनसे लागत वसूल करने की स्वतंत्रता दी।”